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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १४० 1 और भी तीनों महाशय दो भाद्रपद होनेसें प्रथम भाद्रपको अप्रमाण ठहरा कर छोड़ देना और दूसरे भाद्रपद में पर्युषणा करना कहते है इसपर मेरेकों वड़ाही आश्चर्य सहित खेद उत्पन्न होता है क्योंकि जैसे अन्य मतवाले जिस देवकी अनेक तरहसें अज्ञान दशाके कारणसें विटंबना बहोत सी करते है फिर उन्हीं देवकों अपने परमेश्वर मानकर पूजते भी है तैसेही इन तीनों महाशयोंने भी अज्ञानी मिथ्यात्वियोंका अनुकरण किया अर्थात् जिस अधिक मास को कालचुला मान्यकरके गिनतीमें नही लेना ऐसा सिद्धकरके फिर अनेक तरहके विकल्पोंसें अधिक मासको दूषण लगाके निंदते हुवे निषेध करते है फिर उन्हीं अधिक मासमें धर्मका पर्युषण पर्व करना मंजूर कर लिया, क्योंकि तीनों महाशय अधिक मासको कालचूला कहनेसें गिनती में नहीं आता है ऐसा तो पर्युषणा के सम्बधमें प्रथम लिखते हैं इसपर पाठकवर्ग बुद्धिजनपुरुष निष्पक्षपात से विचार करो कि, कालचूला उसको कहते हैं जो एक वर्षका कालके उपरमे बढ़े एक वर्षके बारह मास स्वाभाविक होते ही हैं परन्तु जब तेरहवा मास बढ़ेगा तब उसीको कालचूलाकी ओपमा होगा नतु बारहवा मासको जब तेरहवा मास को कालचूलाकी ओपमा हुई उसीकों गिनती में निषेधभी करदेना, और प्रमाणभी करलेना यह कैसी विद्वत्ताका न्याय हुवा जो कालचूलाको निषेध करेंगे तब तो दूसरा भाद्रपदको कालचूलाकी ओपना होती है उसीमें पर्युषणापर्व स्थापना नहीं बनेगा, और जो दूसरे भाद्रपद में कालचूला जानके भी पर्युषणा स्थायेंगे तब तो दो श्रावण होनेमे दूसरे श्रावणको For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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