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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १२७ ] उलटे विराधक बनते हैं और मासवृद्धि दो श्रावणादि होते भी भाद्रपदमें ८० दिने पर्युषणा करणी और वर्तमानिक पाँचमास के १५० दिनका अभिवर्द्धित चौमासा होते भी पर्युषणाके पीछाडी 90 दिन रखनेका आग्रहसे हठकरना, और पर्युषणाके पीछाड़ी मास वृद्धि होनेसे १०० दिन मानने वालोंको दूषित ठहराना। और अधिक मासकी गिनती निषेध करके भी आप निर्दूषण बनना। ऐसा जो जो महाशय वर्तमानकालमें मानते है श्रद्धारखते है तथा परूपते. भी है-सो निःकेवल अनेक शास्त्रोंके विरुद्धार्थमें उत्सूत्र भाषण करते दृष्टिरागी भोलेजीवों को जिनाज्ञा विरुद्ध कदाग्रहकी भ्रमजालमें गेरके अपनी आत्माको संसारगामी करते है इसलिये अधिकमासके निषेध करने वाले कदापि निर्दूषण मही बनशकते है,-और अधिकमासका निषेध करने की ऐसी बाललीला मिथ्यात्व रूप मन कल्पमा की गपोल खीचड़ी, क्या, अनन्तगुणी अविसंवादी सर्वज्ञ महाराज अतिउत्तमोत्तम श्रीतीर्थङ्कर केवलज्ञानी भगवान् उपदेशित शास्त्रोंमें कदापि चल शकती है अपितु सर्वथा प्रकारसे नहीं, नही, नही, क्योंकि अधिकमास को श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि महाराज खुलासा पूर्वक गिनती में प्रमाण करते हैं। इसलिये तीनों महाशय तथा इन्होंके पक्षधारी वर्तमानिक महाशयोंकी अधिक मासके निषेध करनेकी सर्व कल्पना संसार वृद्धि कारक मिथ्यात्वकी हेतु हैं इसलिये वर्तमानिक श्रीतपगच्छादि वाले आत्मार्थी मोक्षाभिलाषि निर्यक्षपाती सज्जन पुरुषोंसे मेरा यही कहना है कि-हे धर्म बन्धवों तुमको संसार वृद्धिका For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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