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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १०५ ] आवलिका होती हैं १,६७,99,२१६ आवलिका जाने से एक मुहूर्त होता है त्रीश मुहूर्त से एक अहोरात्रिरूप दिवत होता है ऐसे पन्दरह दिवसोंसे एकपक्ष होता हैं दो पक्षसे एकमास होता है इसी तरह से अनुक्रमे वर्ष, युग, पूर्वाङ्ग, पूर्व, पल्योपम, सागरादि कालकी व्याख्या अनेक जैन शास्त्रों में विस्तारपूर्वक प्रसिद्ध है। अब इस जगह पाठकवर्ग सज्जन पुरुषोंसे मेरेको इतना ही कहना है कि श्रीदशाश्रतस्कन्धचूर्णिमें और श्रीनिशीथ चूर्णिमें खुलासा पूर्वक अधिकमासको निश्चयके साथ प्रमाण करके गिनतीमें भी लिया है और अभिवर्द्धित संवत्सरमें वीशदिने तथा चन्द्र संवत्सरमें पचास दिने निश्चय पर्युषणा कही हैं और मासवृद्धिके अभावसेही भाद्रपद शुक्ल चतुर्थीको पचास दिनके अन्तरमें कारणयोगे श्रीकालकाचार्यजीने पर्युषणा किवी सो दिखाया है और पचासदिने योग्यक्षेत्रके अभावसे जंगल में रक्ष नीचे भी पर्युषणा करनी कही है परन्तु पचासमें दिनकी रात्रिको उल्लङ्घन करना भी नही कल्पे इत्यादि विस्तारपूर्वक संपूर्ण सम्बन्धके दोनो पूर्वधर महाराज कत पाठ उपरोक्त छधगये है जिसको विचारो और श्रीधर्मसागरजी तथा श्रीजयविजयजी और श्रीविनयविजयजी इन तीनों महाशयोंने दोनों चूर्णिकार पूर्वधर महाराजके विरुद्वार्थ में वर्तमानमें मासवृद्धि दो श्रावण होनेसे भी आषाढ़ चौमासीसे यावत् ८० दिने भाद्रपदमें पर्युषणा सिद्ध करने के लिये आगे और पीछेके सम्बन्धके पाठको और अधिकमासके प्रमाण करनेके पाठको छोड़कर अधूरा बिना सम्बन्धका थोडासा पाठ लिखके भोले जीवोंको शास्त्रोंके नामसे पाठ १४ For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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