SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १०३ ] पर्युषणा किवी होवे तो उत्कष्ट से १२० दिन रहते हैं पीछे कार्तिक पूर्णिमाको अवश्य विहार करे, परन्तु वर्षादि कारणसे चिख्खल कईमादि कारण योगे अपवाद से मार्गशीर्ष पूर्णिमा तक भी रहना कल्पे पीछे तो अपवाद से भी अवश्य निकले विहार करे, नही करे तो प्रायश्चित आवे जहां आषाढमास कल्प किया होवे वहां ही चौमासी ठहरे तथा मार्गशीर्ष पूर्णिमाको बिहार करे तो उत्कृष्ट छ का कालावग्रह होता है इत्यादि 1 अब पाठकवर्ग देखिये उपरका दोनु पाठ प्राचीनकाल में पूर्वधरोंके समयका उग्रविहारी महानुभाव पुरुषोंको जैन ज्योतिषानुसार वर्तने का है जिसमें उत्सर्ग से आषाढ़ पूमा से कार्तिक पूर्णिमातक पर्युषणा करे और अपवादसे श्रावण कृष्ण । ५ । १० । ३० । श्रावण शुक्ल ५ । १० । १५ । भाद्र कृष्णा । ५ । १० । ३२ । और भाद्र शुक्ल ५ । इन दिनोंमें जहां योग्यक्षेत्र मिले वहां हो पर्युषणा करे । परन्तु पञ्चमीको उलङ्घन नहीं करे, जिससे जघन्य में 90 दिनकी पर्युषणा होती है तथा मध्य से । १५ । ८० । ८५ । ९० । ९५ । १०० । १०५ । १९० । ११५ । ऐसे नव प्रकार की पर्युषणा होती है और उत्कष्ट से १२० दिन की पर्युषणा होती है । जिसमें चन्द्र संवत्सर में अपवादसे भी पचास दिन की भाद्रशुक्ल पञ्चमीको उल्लङ्घन नहीं करे जिससे पीछाड़ी के 90 दिन रहते हैं तैसेही अभिवर्द्धित संवत्तर में अपवाद से भी बीशमें दिनकी श्रावण शुक्लपञ्चमी को उल्लङ्घन नहीं करे जिससे पीछाड़ीके कार्तिकपूर्णिमा तक १०० दिन रहते हैं और श्रावण शुक्लपञ्चमीको सांवत्सरिक For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy