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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १०१ ] परन्तु वीशमें दिन श्रावतशुक्लपची निश्चय प्रसिद्ध पर्यु - पणा होवे, और चन्द्रवर्ष में पचाश दिन तक अनिश्चय पर्युषण परन्तु पचाश दिन भाद्रपद शुक्लपञ्चतीसे निश्चय प्रसिद्ध पर्युषणा होवे, सो जब आषाढ़ पूर्णिमासेही योग्यक्षेत्र मिले और उपयोगी वस्तुका योग्य होवे तो ग्रहण करके start प्रतिक्रमण किये बाद उसी रात्रिको पर्युपखा कल्प कहे याने जो अकेला साधु होवे तब तो उस रात्रिको श्री कल्पसूत्रका पठन करके अनिश्चय पर्युषणा स्थापन करे और साधुओंका रुमुदाय होवे तो सर्व साधु कायोत्सर्ग में सुने और वृद्धसाधुजी मधुर स्वर से श्रीपर्युषणा कल्पका उच्चारण करके अनिशय पर्युषणा स्थापन करे तथा योग्यक्षेत्र न मिले तो फिर पाँच दिन तक दूसरे स्थान (गांव) में जाके उपयोगी वस्तु ग्रहण करके श्रावण कृष्णा पञ्चमीको पर्युषणा करे इसी तरहसे योग्यक्षेत्राभावादि कारणे अपवादसे पांच पांच दिनकी वृद्धि करते यावत् भाद्रपद शुक्लपञ्चमीको अवश्य ही पर्युषणा निश्चय करे तथापि भाद्रपद शुक्लपञ्चमी तक योग्यक्षेत्र नही मिलेतो जङ्गल में वृक्ष नीचे भी अवश्यही पर्युषणा करे परन्तु पञ्चमीकी रात्रिको उल्लङ्घन करना नही कल्पे और भाद्रपद शुक्ल पञ्चमीके पहले आषाढ, पूर्णिमासे योग्यता मिलने से अनिश्चय पर्युषणा स्थापन करने में आते है जिसमें स्थापन करे उसी रात्रिको श्रीपर्युषण कल्प कहके पर्युषणा स्थापे जिसको गृहस्थो लोगों के न जानी हुई पर्युषणा कहते हैं और पचासमें दिन भाद्रपद शुक्लपञ्चमी की निश्चय प्रसिद्ध पर्युषणा उसीमें सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि करे जिसको गृहस्थी लोगों के For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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