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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ] इस युक्तिसे अधिक मासकी गिनती निश्चय के साथ मीतपगच्छके विद्वान् महाशयोंके कहने से भी सिद्ध होगई तथा अनेक शास्त्रानुसार ५० दिने दूजा श्रावण शुदीमें श्रीपर्युषणा पर्वका आराधन करनेवाले जिनाशा के आराधक सिद्ध हो गये और दो श्रावण होते भी भाद्रपद में ८० दिने पर्युषणा करने वाले, शास्त्रोंकी मर्यादाके विरुद्ध होनेमें कोई शंसय भी करेगा अपितु नही, तथापि इन तीनो महाशयांने ( दो श्रावण होते भी भाद्रपद तक ८० दिनकी वार्त्ता भी नही समझाना ) ऐसे मतलबको लिखा है सो कैसे सत्य बनेगा तथापि वर्तमानिक श्रीaurच्छके मुनिमहाशय विद्वान् होते भी उपरकी इस मिथ्या बातको सत्य मानके वारंवार कहते हैं जिन्हों को मृषावादका त्यागरूप दूजा महाव्रत कैसे रहेगा सो भी विचारने की बात है, इस उपरोक्त न्यायानुसार भी अधिक मासकी गिनती निषेध कदापि नही हो सकती हैं तथापि तीनो महाशय करते हैं सो सर्वथा महा मिथ्या है इसलिये दो श्रावण होनेसें भाद्रव शुदी तक प०दिन अवश्यमेव निश्चय होते हैं जिससे गिनती निषेध करना हो नही बनता है और मासवृद्धि होने से भी पर्युषणा भाद्रपद मास प्रतिबद्ध है ऐसा लिखना भी तीनो महाशयोंका सर्वथा शास्त्रों से प्रतिकुल है क्योंकि प्राचीनकाल में भी मासवृद्धि होती थी जब भी वीश दिने आवण शुक्लपञ्चमी के दिन पर्युषणा करने में आते थे जैसे चन्द्र संवत्सर में पचास दिनके उपरान्त सर्वथा विहार करना नही कल्पे तैसे ही अभिवर्द्धित संवत्सरमें बीश दिनके उपरान्त सर्वथा विहार करना नही कल्पे और वोश दिन तक अज्ञात पर्युषणा परन्तु बीशमें For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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