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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २ ] क्योंकि अधिक मासकी गिनती नही करनेसे बारह चन्द्रमाप्तोंसे चन्द्र संवत्सर होता है परन्तु अभिवति नाम नही बनेगा जब अधिक मासको गिनती होगा तब ही तेरह चन्द्रमासैसे अभिवति नाम संवत्सर बनेगा जिसका विस्तार उपर लिख आये हैं इस लिये अधिक मासकी गिनती तीनो मलाशयोंके वाक्यसै सिद्ध प्रत्यक्ष पने होती है और फिरभी इन तीनो महाशयोंने ( जैन टिप्पनकानुसारेण यतस्तत्र युगमध्ये पौषो युगान्त च आषाढ़ो एव वई ते नान्येमासाः तच्चाधुना सम्यग न ज्ञायते ततः पञ्चाशतैव दिनैः पर्युषणा सङ्गति शुद्धाः ) यह भी अक्षर लिखे हैं सो इन अक्षरोंसे भी सूर्यवत् प्रकाशकी तरह प्रगट दिखाव होता है कि जैन टिप्पनामें पौष और आषाढ़की वृद्धि होती थी सो टिप्यना इस कालमें नही हैं इस लिये पचास दिने पर्युषणा करना योग्य है यह श्रीतपगच्छके पूर्वज शुद्धाचार्यों का कहना है सो बातभी सत्य है क्योंकि इन तीनो महाशय के परमपूज्य श्रीतपगच्छके प्रभाविक श्रीकुलमराउन सूरिजीने भी लिखी है जिसका पाठ इसी पुस्तकके नवमें (९) पृष्ठमें छप गया हैं____ अधिक मासकी गिनती अनेक जैन शास्त्रोंसे तथा उपरके वाक्यसे भी सिद्ध होती है और पचास दिने पर्यु. षणा करना अपने पूर्वजे की आज्ञासे तीनो महाशय लिखते हैं जिससे पाठकवर्ग विचार करे तो शीघ्र ही प्रत्यक्ष मालुम हो सकता है कि वर्तमानमें दो श्रावण होतो दूजा श्रावणमें अथवा दो भाद्रव होतो भी प्रथम भाद्रवमें पचास दिनांकी गिनतीसे ही पर्युषणा करना चाहिये यह न्याय स्वयं सिद्ध है For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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