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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ११ ] णमित्यादि ॥ श्रीनिशीथ चूर्णो दशमी शके एवं यत्र कुत्रापि पर्यूषणानिरूपणम् तत्र भाद्रपदविशेषितमेव नतु काप्यागमे भवयसुद्वपंचमीए पज्जोसविज्ज इति पाठवत् अभिवद्विअ वरिसे सावणसुद्ध पंचमीए पज्जोसविज्जइति पाठ उपलभ्यते ततः कार्तिकमासप्रतिबद्द चतुर्मासिकः कृत्य करणे यथा नाधिकमासः प्रमाणं तथा भाद्रमासप्रतिबड पर्युषणा करणेऽपि नाधिकमासः प्रमाणमिति त्यजकदाग्रहम् । श्रीविनयविजयजी कृत उपरके पाठका संक्षिप्त भावार्थ:अन्तरा विपत्ति इत्यादि कहने से आषाढ़ पूर्णिमासे पचास में दिन भाद्रपद शुक्ल पञ्चमी जिसके अन्तरमे कारण योगे पर्युषणा करना कल्पे परन्तु पञ्चमीको उल्लङ्घन करना नही कल्पे वर्षाकाल में सर्वथा एकस्थान में निवास करना सो पर्युषणाजिसमें योग्यक्षेत्र के अभाव से पांच पांच दिनको वृद्धि करते दशपर्व तिथि में यावत् पचासमें दिन भाद्रपद शुक्ल पञ्चमीको परन्तु श्रीकालकाचार्य्यजी से चतुर्थी की गृहस्थी लोगोंकों साधुके वर्षाकालका निबास अर्थात् पर्युषणाकी मालुम होती थी सो चन्द्रसंवत्सर की अपेक्षा से परन्तु मास वृद्धि होनेसें अभिवर्डितनाम संवत्सर में वीशदिने गृहस्थीलोगोंको साधुके निवास (पर्युपणा) की मालुम होती थी सो जैन टिप्पनाके अनुसारे एकयुग के मध्य में पोषकी तथा अन्तमें आषाढ़ की वृद्धि होती थी इसके सिवाय और मासों के बुद्धिका अभावथा तब चन्द्रमें पचास दिनका तथा अभिवर्द्धितमें वीशदिनका नियम था, परन्तु अब वर्त्तमानकाले जैन टिप्पना नहीं वर्तता है तथा लौकिक टिप्पनामें हरेकमासोंकी वृद्धि होती है इस लिये - पंचाशतैश्च दिनैः पर्युषणायुक्तेति वृद्धा: - अर्थात् इस For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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