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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ( ४५ ) उपर में डिबी सोही तेरह चंद्रमास के अभि वर्द्धितसंवत्सर का प्रमाणको बारह भाग में करने से एक भाग में ३१।१२४ १२९ होता है सेाही प्रमाण एक अभिवर्द्धित मासका जानना, याने ३१ अहोरात्र और एक अहोरात्रि के १२४ भाग करके उपरके तीन भाग छोड़कर बाकी के १२१ भाग ग्रहण करना अर्थात ३१ दिन तथा ५८ घटीका और ३३ पलसे दश अक्षर उच्चारण में न्यून इतने प्रमाणका एक अभिवर्द्धित मास होता है सेा अवयवोंके उच्चारणसे अभिवर्द्धित मास कहते हैं अर्थात् जिस संवत्सर में जब अधिक मास होता है तब तेरह चंद्रमास प्रमाणे अभिवर्द्धित संवत्सर कहते है उसी के तेरहवा चंद्रमास के प्रमाणको बारह भागों में करके बारह चंद्रमा के साथ मिलानेसे बारह चंद्रमासेंामें तेरहवा अधिकमास के प्रमाण ( अवयव ) की वृद्धिहुई इसलिये अबयवाके उच्चारणसे मासका नाम अभिवर्द्धित कहाजाता है एसे बारह अभिवर्द्धित मासेंासे को हुवा - संवत्सरका प्रमाण उसीको अभिवर्द्धित संवत्सर कहते हैं परंतु अधिक मास के कारणसे तेरह चंद्रमास से अभिवर्द्धित संवत्सर होता है सेा गिनती के प्रमाणमेता तेरहाही मास गिनेजायेंगे साता श्रीप्रवचनसारोद्वार, श्रीचंद्रप्रज्ञप्तिवृत्ति, श्रीसूर्यप्रज्ञप्ति वृत्ति श्रीसमवायांगजी सत्रवृत्ति के जो पाठ उपर में छपगये हैं उनपाठासे खुलासा दिखता है । और पांचाही प्रकारके मासेांके निज निज मास प्रमाण से निज मिज संवत्सरका प्रमाण तथा निज निज मासके और निज निज संवत्सर के प्रमाणसे पांच वर्षोंसे एक युगके १८३० दिनांकी गिनती का हिसाब संबंधी आगे यंत्र ( कोष्टक) लिखने में आयेंगे जिससे पाठक वर्गको सरलता पूर्वक जलदी अच्छी तरह से समझ में आसकेगा । For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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