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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पाट पाटलादि द्रव्योंका योग बननेसे यत्न करके शास्त्रोंक विधिसे द्रव्य क्षेत्र काल और भाव की स्थापना करनी जिसमें उपयोगी वस्तुओंका संग्रहसो द्रव्य स्थापना, और विहारका निषेध परन्तु आहारादि कारणसे मर्यादा पूर्वक जानेका नियम सो क्षेत्र स्थापना, और वर्षाकालमें जघन्यसै १० दिन तक तथा मध्यमसे १२० दिन तक और उत्कृष्ट से १८० दिन तक एक स्थानमें निवास करना सो काल स्थापना, और रागादि कर्मबन्धके हेतु ओंका निवारण करके इरियासमिति आदिका उपयोग पूर्वक वर्ताव करना सो भावस्थापना, इस तरहसे वो द्रव्यादि चतुर्विध स्थापना आषाढ़ पूर्णिमा करनी परन्तु योग्य क्षेत्रके अभावमें तो आषाढ़ पूणि मासे पांच पांच दिनकी वृद्धि करके दशपंचक तिथियों में क्रममें यावत् भाद्रपद सुदी पंचमी तक, आषाढ़ पूर्णिमासे दशपंचकमें परन्तु आषाढ़ सुदी १० मी के निवासकी गिनतीसे एकादशपंधकोंमें जहां द्रव्यादिका योग मिले वहां पूर्वोक्त कहे वैसे दोषोंका निमित्त कारण न होने के लिये अज्ञात पर्युषणा स्थापन क. रनी और आषाढ़ चौमासीसे ५०दिने गृहस्थी लोगोंकी नानी हुई पर्युषणा जिसमें वार्षिकातिचारोंकी आलोचना करनी, केशोंकालुंचन करना,श्रीकल्पसूत्रकासुनना था पठनकरना, अष्टमतप करना, चैत्यपरिपाटी (जिन मन्दिरों में दर्शनकरने) और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करना, और सर्व संघकोक्षामणे करना और दीक्षापर्यायके वर्षों की गिनती करना सो जातपयुषणा भाद्रपदशुक्ल पंचमी में होती थी, परन्तु युग प्रधान श्रीकालका चार्यजीमहारानके आदेशसे भाद्रशुक्र चतुर्थी के दिन करने में माती है। सो गीतार्थों की आचरणा होनेसे श्रीजिनामा For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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