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पंदित्तासूत्रचूर्णि-श्राद्धदिनकृत्यसूत्रवृत्ति-पंचाशकचूर्णि-वृत्ति-विचारामृतसंग्रह-धर्मसंग्रहवृत्ति-संबोधसत्तरी प्रकरणवृत्ति-जयसोमोपाध्याय जी कृत 'ईयोपधिकी षट्त्रिंशिका विवरण', श्रावकप्राप्ति वृत्ति इत्यादि अनेक शास्त्रानुसार श्रीजिनदासगणिमहात्तराचार्यजीपू. र्वधर, श्रीहरिभद्रसूरिजी,अभयदेवसरिजी,हेमचंद्राचार्य जी, देवेंद्रस्रिजी, देवगुप्तसूरिजी, वगैरह सर्व गच्छोंके प्राचीन पूर्वाचार्योंने सामायिक विधिमे प्रथम करेमिमंतेका उच्चारण किये बाद पछिस इ. रियावही करके स्वाध्याय, ध्यानादि धर्मकार्य करनेका बतलाया है, यहीषात जिनाशानुसारह.पहिले सर्व गच्छोंमें इसीप्रकारसही सामा. यिकविधि करतेथे, मगर पीछेसे कितनेही चैत्यवासियोंने अपनी मतिकल्पना मुजव प्रथम इरियावही पीछेकरेमिभंते स्थापन करनेका आग्रहचलायाथा, उनकीपरंपरामुजब अबीभी कितनेकमहाशय प्रथम इरियावही पीछे करेमिभंतेका स्थापन करने के लिये अन्य कोई भी प्रकर अक्षरवाले शास्त्रप्रमाण न मिलनेसे महानिशीथ-दशवैकालिकादिकके अधूरे २ पाठासे संबंध विरुद्ध अर्थ करके सामायिक प्रथमहरियावही पीछेकरेमिभंते ठहराते हैं ,परंतु उससे अनेक दोष आ. ते है, उसका विचारभी कभी नहीं करते हैं. देखो - विसंवादी शास्त्रोकों व विसंवादी कथन करनेवालीको शास्त्रों में मिथ्यात्वी कहेहैं, इसलिये जैन शास्त्रोको व पूर्वाचार्योंको अविसंवादी कहने में आतेहैं,
और आवश्यकचूर्णिआदि अनेकशास्त्रामसामायिकम प्रथमफरेमिभंते पीछेहरियावहीके पाठमौजूद होनेपरभी महानिशीथ-दशवकालिकादिसे प्रथम इरियावही पीछे करेमिभंते ठहरानेस सर्वक्ष शास्त्रोमें विसंवादरूप यह प्रथमदोषआताहै.और आवश्यक रडी टीका, महा निशीथका उद्धार, दशवकालिक बडीटीका यह सर्वशास्त्र श्रीहरिभ. दसूरिजी महाराजने किये हैं, इसलिये आवश्यक बड़ी टीकाके विरुद्ध महानिशीधसे प्रथम इरियावही ठहरानेसे इन महाराजक कथनमें घिसंवाद आनेरूप यह दूसरा दोषआताहै. आवश्यकादिमे सामा. यिकके नामसे प्रथमफरेमिभंते पीछेहरियावही खुलाला लिखीहै,महा. निशीथके तीसरेअध्ययनमें उपधानसंबंधी चैत्यवंदन स्वाध्यायादि. करनेकापाठहै, दशवैकालिककी टीकामें साधुके गमनागमन (जाने आने) संबंधी इरियावही करके स्वाध्यायादि करने का पाठहै, इस. प्रकार भिन्न २ अपेक्षा वाले शास्त्रोके पाठौके संबंध विरुद्ध होकर अ. धूरे २ पाठोंसे सामायिकौमी प्रथम दरियावही बहरानेसे शास्त्रोंकी
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