________________ Shri Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri F e ndir ह॥४॥ तर्जन्यंगुष्ठसंयोगेराक्षसीमुद्रिकाभवेत॥राक्षसीमुद्रयापीतंतत्तोयंरुधि रंभवेत् // 5 // पूर्वाचमनममृतंसोमपानंतथोत्तरे॥ दक्षिणेरक्तपानंतुसुरापानंतुप श्चिमे // 6 // // तथाच बृहब्रह्मसंहितायां // ॥रतोमूत्रशकृन्मोऽह्यधोवा, युर्विमोक्षणे // परिश्रमेनतेहासेउछिष्टजनसंगमे॥७॥ उछिष्टस्पर्शनेमेध्यादर्श नेचाश्रुपातने रक्तकेशमलस्पर्शजूभायांस्वप्नदर्शने।।८॥छिक्काष्ठीवनसंक्रोधेष्वा चम्यशुचिकाम्यया॥उपक्रमोपसंहारेकर्मणोनीविबंधने ॥९॥केशवादिभिरा। चम्यसद्यःशुद्धिमवाप्नुयात् ॥अकृत्वाचमनंविप्रोनकर्मफलमाप्नुयात् // 10 // यथाऽभिषेकजाशुद्धिर्बहिरेवप्रजायते॥ मंत्रपूतमलैस्तहदाचम्यांतराशुचिः॥ // 11 // // ततोऽघमर्षणंकुर्यात् // अथाघमर्षणसंध्यामहंकरिष्ये // इतिसंकल्पः // अत्राचमनंप्राणायामंचकृत्वामूलमंत्रंपठित्वदिणाक्षहस्तेनजलं For Private And Personal