________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri B randir व्रजेत् // // तथाच॥ ततोरुणोदयस्यांतेस्नानार्थनिःसरेहाहः॥ कीर्तयनरा मनामानितीर्थगच्छेदनातुरः॥२॥गत्वातीर्थोदकंतत्रनिक्षिप्यस्नानसाधनं // अ थशौचादिकंकर्तुमाहरेन्मृत्तिकांबुधः॥३॥ // अथमृत्तिकाहरणविधिः॥ तद्यथापुलस्त्यसंहितायां // // मृद्गौराब्राह्मणानांचवैष्णवानांविशेषतः॥ नृपाणांलोहिताज्ञेयावैश्यानांतुहरिच्छुभा // स्त्रीशूद्राणामंत्यजानांकृष्णवर्णा| प्रतिष्ठिता // 4 // ॥सरोजगलिकायां // विनाकाष्ठेनलोहेनउद्धृतागाचमृत्ति / का // श्वानविष्टासमाज्ञेयाशौचकालेविवर्जयेत् // 5 // पूर्वसंप्रार्थ्यपृथिवींनित्यं / वैमंत्रपूर्वकं // शुद्धमृत्तिकामानीयत्रिभागंकुर्याद्बुधः॥६॥आद्यंलिंगेगुदेदेशेहि तीयंकरपादयोः // तृतीयंभागमादायस्नानकालेप्रलेपयेत् // 7 // // इतिमृत्ति काहरणविधिः॥ // त्वंधरेसर्वभूतानांक्षमायुक्तासिनित्यशः॥ नित्यकर्मक For Private And Personal