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वर्तिः
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वर्धमानं
वर्तिः (स्त्री०) [वृत्+इन] दशालोचन। (जयो० १०/११४) वर्त्मभू (स्त्री०) मार्ग स्थान, भूभाग। (जयो० ३/११५) पत्राली, बही।
वर्त्मविरोधिन् (वि०) मार्गविरोधी। (जयो० १३/१३) उबटन, लेप, कज्जल।
वर्त्मसद् (नपुं०) सदाचरण का मार्ग। 'वर्त्म सदाचारमार्गोऽस्ति' अंगराग, मल्हम।
(जयो० २।८) दीपक की बत्त।
वर्त्मसम्बलः (पुं०) पथ का कलेवा, मार्ग का पाथेय। (समु० ०झालर, किनारी।
४/३१) पाथेय पथ्य, पाथेय पिण्ड। वर्तित (वि० भू०क०कृ०) प्रवर्तित। (जयो० २/१५७) वर्द्धमान (वि०) बढ़ते हुए, विकास करते हुए, बृद्धि को प्राप्त। वर्तिन् (वि०) प्रवर्तित होने वाला, स्थित रहने वाला।
(समु०१/२ दयो० १/३) उद्वर्धनशील। (जयो०१८/३७) गतिशील, परिवर्तनशील।
वर्द्धमानः (पुं०) सिद्धार्थ पुत्र, त्रिशलानन्दन। युक्त। (जयो०वृ० १/११०)
कुण्डग्राम का राजकुमार, जो वैराग्य धारण कर घोर अनुष्ठाता, अभ्यास करने वाला।
तपस्वी बना और केवल ज्ञान को प्राप्त कर तीर्थंकर ०व्यवहारी, व्यापारी।
महावीर भी कहलाए। वर्तिरः (पुं०) बटेर, लबा।
वर्द्धमानस्वामिन् (पुं०) देखो ऊपर। (जयो० १९/२१) वर्तिष्णुः (वि०) [वृत्+उलच्] गतिशील रहने वाला, परिवर्तन | वर्ध (सक०) काटना, छेदना, विभक्त करना।
करने वाला, प्रवर्तित होने वाला, चलने वाला, चक्कर ०मूंड़ना, बांटना। लगाने वाला।
०पूरा करना। ०वर्तुलाकार।
वर्धः (पुं०) [वर्ध+अच्] काटना, बांधना। वर्तमान, विद्यमान।
०बढ़ाना, समृद्धि करना। वर्तुल (वि०) [वृष उलच्] गोल, कुण्डालाकार, मण्डलाकार। ०वृद्धि, बढ़ोत्तरी। वर्तुलः (नपुं०) वृत्त।
वर्धकः (पुं०) [वृध+ण्च्+िण्वुल्] बढ़ई। वर्तुलः (पुं०) मटर।
वर्धन (वि०) [वृध+णिच्+ल्युट] ०बढ़ने वाला, उगने वाला। वर्तुलभङ्ग विभङ्गाकारः (पुं०) जवलेविका, जलेबी, जो
आवर्धन, समृद्धि करने वाला। गोलाकार तीन चार घेरों से युक्त होती है। (जयो० वर्धनः (पुं०) शिव। ३/६०)
वर्धनं (नपुं०) उगना, बढ़ना, शिक्षा देना, उल्लास, उन्नति। वर्तुलाकृतिः (स्त्री०) सुवृत्त, अत्यन्त गोलाकार आकृति। वर्धनी (स्त्री०) बुहारी, झाडू। (जयो०० २४/११)
वर्धनशील (वि०) बर्धिष्णुक। (जयोवृ० ८/५२) वर्त्मन् (नपुं०) [वृत्+मनिन्] पथ, रास्ता, मार्ग। (सुद० ३/१०) वर्धमान (वि०) [वृध+शानच] बढ़ने वाला, गतिशील होने
मनोऽपि यस्य नो जातु संसारोचित वर्त्मनि। (सुद० १३२) वाला, वृद्धि कारक। रीति, पद्धति, विधि।
श्रिया सम्वर्धमानन्तमनुक्षणमपि प्रभुम्। प्रचलनक्रम, पूर्वानुक्रम।
श्रीवर्धमाननामाऽयं तस्य चक्रे विशाम्पतिः।। (वीरो०८/६) ०धार, किनारा।
वर्धमानः (पुं०) एक जिले का नाम। मर्यादा सन्निवेद्य च कुनङ्करैः कुलान्येतवाचरणामिङ्गितं अन्तिम तीर्थंकर महावीर के जीवन का प्रारंभिक नाम। बलात्। आचरेत् स्वकुल सक्तिमानियद्वर्त्मसद्भिरूपतिष्ठितं ० श्रीवर्धमाननामाऽयं तस्य चक्रे विशाम्पति' (वीरो०८/६) हि यत्।। (जयो० २।८)
वर्धमानस्य अर्हतोऽभिधानतस्तनामोच्चारणपूर्वकं अभिजनं वर्त्मनि (स्त्री०) रास्ता, मार्ग।
स्वजन्मस्थानं सम्प्राताः। (जयो० ८/२३) वर्त्मबन्धः (पुं०) पलक रोग।
अर्हत् वर्धमान, तीर्थंकर वर्धमान। वर्द्धित (भू०क०कृ०) संल्ललित. पालित। (जयो० १३/२२) | वर्धमानं (नपुं०) ढक्कन, तश्तरी। निरादरीकृत् (जयो० २१/७)
रहस्यमय रेखाचित्र।
साश
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