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वराहशृंगः
९३३
वर्गशस्
वराहशृंगः (०) शिव, शंकर। वरिमन् (पुं०) श्रेष्ठता, सर्वोपरिता, प्रमुखता। वरिवसित (वि०) पूजा गया, अर्चित, सम्मनित, सत्कृत। वरिवस्या (स्त्री०) [वरिवस: पूजायाः करणं, वरि
वस्+क्यप्+अ+टाप्] पूजा, अर्चना, प्रार्थना, सम्मान, सत्कार, |
भक्ति । वरिष्ठ (वि.) [वर। उरुर्वा उरु+इष्ठन] सर्वोत्तमता. अत्यन्त
श्रेष्ठ, अत्यन्त पूज्य। (वीरो० ) ०पूज्य, प्रमुख।
अत्यन्त विशाल, अत्यन्त विस्तृत। वरिष्ठः (पुं०) तीतर पक्षी।
संतरे का वृक्षा वरिष्ठं (नपुं०) तांबा।
मिर्च। वरी (स्त्री०) [वृ+अच्+ङीष] सूर्य की पत्नी छाया, शतावरी
का पौधा। वरीतुम् (वरी+कुमुन्) वरण करने के लिए। (जयो० ५/२) वरीयस् (वि०) [वर: उरुर्षा उरु+ईयसुन्] ०अधिक समीचीन,
उत्तमोत्तम। अत्युच्चै (जयो० १३/३) ०अत्युत्तम, बहुत
अच्छा, अच्छे रूप में प्रवर्तित। (वीरो० ९/३५) वरीवर्तिन (वि०) उत्तमोत्तम। अच्छे रूप में प्रवर्तित। वरीवर्दः (पुं०) बैल, सांड। वरीषुः (पुं०) [वरः श्रेष्ठः इषु यस्य] कामदेव। वरुटः (पुं०) म्लेच्छ जाति। वरुडः (पुं०) एक जाति विशेष। वरुणः (पुं०) आदित्य, सूर्य।
०वृक्ष-सुखाशो राजतिनिशे वरुणे सुमनोरथ इति विश्वलोचनः। (जयो० २१/३२)
अन्तरिक्ष, समुद्र। वरुणपाशः (पुं०) घड़ियाल। वरूथं (नपुं०) बख्तर, कवच। वरोचितः (वि०) वरयोगय, वरण योगय, विवाह करने योग्य।
(दयो०७०) वरेण्य (वि.) [+एन्य] ०वान्छनीय, सर्वोत्तम, श्रेष्ठ, प्रमुख,
पूज्यमत। वरोटः (पुं०) [वराणिश्रेष्ठानि उटानि दलानि यस्य] मकवे का |
पौधा। वरोटं (नपुं०) बर्र, भिड़।
वर्करः (पुं०) [वृक्+अरन्] मेमना। ०बकरा, पालतू जानवर।
आमोद, क्रीड़ा विहार, मनोरंजन। वर्कराटः (पुं०) [वर्करं परिहासं अटति गच्छति
वर्कर+अट्+अण] कटाक्ष, तिरछी नजर। वर्कुटः (पुं०) कील, अर्गला, चटखनी। वर्गः (पुं०) [वृञ्+घञ्]० श्रेणी, विभाग।
एक राशि, अविभागप्रतिच्छेद। ०समूह समुदाय, समन्वय, एक रूपता। (जयो०५/२०)
अनुभाग, अध्याय, परिच्छेद, ग्रन्थ का एक अनुच्छेद/हिस्सा। कर्म प्रदेश के अनुभाग। प्रवर्ग, टोली, पक्षा भाग। (जयो० १/३) कवर्ग आदि का समूह। त्रिवर्ग भावात्प्रतिपत्तिसार: स्वयं चतुर्वर्णविधिं चकार। जनोऽपवर्ग स्थितये भवेऽद: स नाऽभिज्ञत्वममुष्य वेद।। (वीरो० ३/९) 'क-च--ट वर्गाणां भावात्सद्भावाद् ज्ञानान्तरं यः स्वयमेव चतुर्थी वर्णानां
त-थ-द-धां विधिं चकार। (जयो०७० ३/९) वर्गघनः (पं०) वर्ग का घनफला वर्गजात (वि०) समन्वय को प्राप्त हुआ। वर्गणा (स्त्री०) समूह, समुदाय, संख्या योग। (सम्य० ३४)
सब जीवों के अनन्तवें भाग प्रमाण वर्गों के समूह-वर्गसमूहलक्षणां' वर्गाणां समहो वर्गणा भण्यते। (जैन०ल० ९८३) ०असंख्यात लोक प्रमाण योगाविभाग प्रतिच्छेदों की एक
वर्गणा होती है। वर्गणाप्रदेशः (पुं०) वर्गणा नाम, वर्गणा प्रदेश। वर्गनिसर्गः (पुं०) वर्ग की रचना। (जयो० १/३) वर्गपदं (नपुं०) वर्गमूल, संख्या निकालने की पद्धति। वर्गफलः (पुं०) घनफल। वर्गबन्धः (पुं०) अनुच्छेद में विभक्त। वर्गभावः (पुं०) अनुभाग, अध्याय। वर्गमण्डित (वि०) त्रिवर्ग से सुशोभित। कु-चु-टुनामेव
समूहसेवितः, (जयो०७० ३/२०)
अपवर्ग विचारक। (जयो० ३/२०) . वर्गमूलं (नपुं०) वर्गमूल, वर्गपद। वर्गशस् (अव्य०) समूहवार।
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