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रुपक:
८९९
रेखा
०रूपता, प्रकार। 'निवृत्तिरूपं चरणं मुदे वा' (सम्य० रुपदानं (नपुं०) रुपये का दान। १३०) सद्वृत्तिरूपं चरणं श्रुतं च। (सम्य० १२८) रुपदात्री (वि०) स्वरूप प्रतिपादन करने वाली। ०स्वरूप, वस्तु स्वभाव।
रुपधुरी (स्त्री०) रूप युक्त। (सुद० १२०) प्रकार, भेद, जाति।
रुपनिधिः (स्त्री०) सौंदर्य सिन्धु। प्रतिबिम्ब, प्रतिच्छाया।
रुपमाला (स्त्री०) सौंदर्य परम्परा। (जयो० २२/८६) (जयो० सादृश्य समरूपता।
११/९२) रमणीय स्रग। ०ध्वनि, शब्द।
रुपया (स्त्री०) चमेली। ० धातुरूप, शब्द रूप।
रुपराशिः (स्त्री०) सौंदर्य समूह। (जयो० ३/६३) रुपकः (पुं०) [रूप्+ण्वुल] रुपया, सिक्का। नगर कलदार। रुपरेखा (स्त्री०) वर्णन प्रक्रिया। (वीरो० १/२९) रुपकं (नपुं०) शक्ल, आकृति।
रुपवत् (वि०) मनोहर, सुंदर। चिह्न, चेहरा-मोहरा।
शारीरिक सौंदर्य युक्त। प्रकार, जाति।
रुपवती (स्त्री०) सौंदर्यशाली। (जयो० ६/४१) ०रूपक नाट्य विशेष। 'दृश्यं तत्राभिनेयं तद्रूपारोपात्तु रूपकम्' रुपसम्पदि (स्त्री०) रूप-चेष्टा (जयो० ४/९८) (सुद० १/४१) (साहित्य दर्पण)
सौंदर्य भाव, रमणीयता। रूपक अलंकार-जिसमें उपमेय को उपमान के ठीक | रुपसुधासवित्री (वि०) रूप सुधा को जन्म देने वाली। समनुरूप वर्णित किया जाता है।
(जयो० १/६४) ०रूप सौंदर्य। रूपकं यत्र साधादर्थयोरभिदा भवेत्।
रुपाचलं (नपुं०) एक पर्वत। (भक्ति० ३६) सम्स्तं वा समस्तं वा खण्डं वाखण्डमेव वा।।
रुपाजीवा (स्त्री०) वेश्या। (सुद० ११९) (वाग्भटालंकार ४/६४) जहां धर्मसाम्य के कारण उपमेय रुपान्तूपासकाधिपः (पुं०) श्रावक शिरोमणि। (सुद० १३४) और उपमान में भेद ही न रह जाय, वहां 'रूपक' रुपाभृत (वि०) रूप वाला। (सुद० ३/९) अलंकार होता है।
रुपिणी (वि०) मनोहारिणी। (जयो० १०/३८) ०समासयुक्त।
रुपी (स्त्री०) रूप, रसादि युक्त। समास रहित।
रुप्य (वि०) [रूप+यत्] सुंदर, ललित। अपूर्ण और पूर्ण। अपूर्ण को निरङ्ग और पूर्ण को रुप्यं (नपुं०) चांदी, रुपया। साङ्गरूपक कहते हैं। (वीरो० ५/२५, जयो००० २५/२) रुप्यकः (पुं०) नाणक। (जयो० १५/४२) रुपया। हिमालयोल्लासि गुण स एव द्वीपाधिपस्येव धनु विशेषः। रुष् (सक०) अलंकृत करना, सजाना, विभूषित करना। ०रूपकयुक्तसमाभसो क्ति, रूपकयुक्तापहृति। ०पोतना, चुपड़ना, मण्डित करना, लीपना। (वीरो० २/५७) (जयो० १४/६९) रूपक श्लोषानुप्राणित रुषित (भू०क०कृ०) [रुष्+क्त] अलंकृत। (जयो०वृ० ७/६४) वाराशिवंशस्थितिरातिविभाति भोः! पाठका बिछाया हुआ। क्षात्रयशोऽनुपाती। (वीरो० २/७) (जयोवृ० ३/२३, जयो० ०खुरदरा, सूखा, रूक्ष। २१/७५, जयो० २६/६९, ६/१०४, ८/९, ८/३५, रे (अव्य०) [रा+के] सम्बोधनात्मक अव्यय, अरे, अये. ८/४२, ८/५८) संसदीह नियतो नृपासने सोऽजयज्जयनृपः (सुद०८८) (सुद० १३५) रे सम्बोधने। (जयो० १३/७९) कृपाशने। दुर्मदाचलभिद: सदा स्वतो धारक: रेकहा (स्त्री०) भंकाहर, नीचवृत्ति परिहारक। (जयो०वृ०२१/३६) क्षणलसच्चमत्कृतः।। (जयो० ३/१९)
रे रेः (अव्य०) अरे, अये। (समु०३/२९) 'रे रे कियज्जल्पसि रुपकरणं (नपुं०) रूपोद्योतन। (जयो० ४/६६)
कोऽसि' (समु० ३/२९) रुपणं (नपुं०) [रूप+ल्युट] गवेषण, परीक्षा।
रेखा (स्त्री०) [लिख्+अच्+टाप् लस्य र:] ०पंक्ति, लकीर, आलंकारिक वर्णन।
श्रेणी। रेखैकिका नैव लघुर्न गर्वी लध्व्याः परस्या भवति रुपता (वि०) स्वरूपता। (सम्य० १४४)
स्विदुर्वी। (वीरो० १९/५)
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