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बृहद् संस्कृत-हिन्दी शब्द कोश
१२९६
विशिष्ट शब्द
सारस-सर:-सरोवर सम्बंधी।
सौमुख्य-अनुकूलता। सासार-आसार-धाराप्रवाह वर्षा से सहित।
सौरभेय-वृषभ। सितच्छदावली-हंसपंक्ति।
सौरी-सूर्य सम्बंधी। सितांशुकप्रति-सफेद वस्त्र से ढका हुआ।
स्तन्य-दुग्ध पिलाने में। सुत्रामन्-इन्द्र।
स्तम्बेरम-हाथी सम्बन्धी (स्तम्बेरमस्येदं स्तम्बेरमम) सुत्रामा( सुत्रामन्)-इन्द्र सुदती-सुंदर दांतों वाली स्त्री। स्थानीय-राजधानी का दूसरा नाम। सुधाशी-देव।
स्नानद्रोणी-स्नान करने का अप। सुधासूति-चन्द्रमा।
स्पृश्यकारु-नाई आदि। सुपर्वा-उत्तम पौरों से सहित।
स्फाति-वृद्धि। सुरकुज-कल्पवृक्षा
स्फाति-विस्तार। सुरभि-कामधेनु।
स्व:प्रष्ठ-स्वर्ग श्रेष्ठ-इन्द्र। सुरसद्मन्-स्वर्ग।
स्वभ्यस्त-अच्छी तरह अभ्यास किया हुआ। सुराग-कल्पवृक्षा
स्वर्ग्य-स्वर्ग की प्राप्ति का साधक। सुराग-कल्पवृक्षा (सुर+अग
स्वरुद्भुतगन्ध-स्वर्ग में उत्पन्न गन्ध। सुराग-कल्पवृक्षा (सुर+अग)
स्वस्रीय-भानेज। सुरेभ-सु-उत्तम रेभ शब्द से युक्त।
स्वापतैयक-घन। सुरेभ-सुइभ देवों के हाथी।
स्वायंभुवी-आदिनाथ भगवान् की वाणी। सुविधि-उत्तम भाग्य से युक्त, पक्ष में भगवान् ऋषभदेव की | स्वायंभुव-स्वयंभू भगवान् वृषभ देव-द्वारा कहा गया। पूर्व पर्याय का एक नाम।
स्रग्धरा-माला को धारण करने वाली। सुवृत्त-गोला
एक छन्द नाम। सूक्ष्मादि-सूक्ष्म, अन्तरित, दूरवर्ती। सूति-मणिमघ्या यष्टि का एक भेद एक लड़की माला जिसमें
हरि-इन्द्र। बीच में नीचे एक मणि लगा रहता है।
हरित्-दिशा। सूत्रधार-शिल्पाचार्य-मकान आदि का नाम कराने वाला।
हरिविष्टर-सिंहासन। संख्या-छन्दशास्त्र का एक प्रकरण-प्रत्यय।
हरिभद्र-आचार्य नाम। संविग्न-संसार से भयभीत होकर वैराग्य में तत्पर रहने वाले
हरिषेण-एक आचार्य विशेष। पुरुष।
हार-यष्टि-लड़ियों के समूह से बनी माला हार कहलाती है। संवृति-भ्रान्ति।
हार-जिसमें एक सौ आठ लड़ियां हों उसे हार कहते हैं। संव्यान-उत्तरीयवस्त्र।
हारिन्-सुंदर, रमणीय, कान्तियुक्त। संस्त्याय-रचनाविशेष।
हारिन्-मनोहर। संहार-प्रलयकाल।
हिमानी-अत्यधिक बर्फ, महद् हिमं हिमानी। सोपान-फलक हार में नीचे यदि सोने के तीन दाने लगे हों
हिरण्मयी-सुवर्णमयी। तो उसे सोपान कहते हैं।
हृदिशय-कामदेव। सौगन्धिक-सुगन्धित पदार्थ।
हृषीक-इन्द्रिय। सौध-अमृत सम्बन्धी, सुधाया अयं सौवः।
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