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विशिष्ट शब्द
पिण्डी- शरीर | पितृकल्प-पिता के तुल्य । पुद्धव- बड़ा बैल।
पुत्री- पुत्रयुक्त ।
पुरोगम-प्रधानपुरुष । पुलिन्द - म्लेच्छों की एक जाति ।
पुष्कर- वाद्य विशेष । ०एक सरोवर, ० एक द्वीप ।
पुष्कर - हाथी की सूंड का अग्रभाग ।
० क्षेत्र विशेष |
पुष्करार्ध कमल रूप पूजा की सामग्री । पुष्करिणी-कमलों से युक्त वापिका । पुष्पधन्वा कामदेव |
प्रजा पुत्र।
प्रणाम्या- असंमत-अप्रिय स्त्री ।
प्रतायिनी - विस्तारिणी ।
प्रतायिनी विस्तृत |
प्रतिक्रमण लगे हुए दोषों का प्रायश्चित्त लेना।
प्रतिच्छन्द- प्रतिनिधि | प्रतिपत्तृ-शिष्य श्रोता।
पुष्पवन्ती-सूर्य-चन्द्रमा पूषन्- सूर्य ।
पृथ्वी- विशाल
पोगण्ड - विकलांग |
पौलोमी इन्द्राणी।
प्रकाण्डक- यष्टि नामक हार का एक भेद प्रकाण्डकयष्टि-जिस के बीच में क्रम कम से बढ़ते हुए पांच मोती हों ऐसी एक लड़वाली माला ।
प्रकृति-प्रजा ।
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प्रतियातना -- प्रतिबिम्ब ।
प्रतिशिष्टि प्रतिनिधि-तत्सदृश ।
प्रतीक्ष्य-पूज्य ।
प्रतीन्द्र-इन्द्र से नीचे का पद धारण करने वाला।
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प्रत्यय - ज्ञान ।
प्रमित्सु नापने के इच्छुक ।
प्रवीचार - मैथुन ।
प्रवीचार - मैथुन ।
प्रव्रज्या - दीक्षा | अभिनिष्क्रमण। प्रसत्ति प्रसन्नता।
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प्रसेन- गर्भस्थ बालक के ऊपर का आवरण- जेर।
प्रस्तर- छन्द शास्त्र का एक प्रकरण-प्रत्यय। -
प्रस्नुवाना दूध देती हुई।
प्राज्या- श्रेष्ठा ।
बृहद् संस्कृत-हिन्दी शब्द कोश
प्राबोधिक- जगाने के कार्य में नियुक्त।
प्रालम्ब-हार विशेष ।
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प्रालेयांशु - चन्द्र
प्रावृषेण्य - वर्षा काल का ।
प्रांशु ऊंचा
प्रीतिंकर- प्रीति उत्पन्न करने वाला ।
फ फलकहार-अर्धमाणव हार के बीच में यदिसय मणि लगा हो तो उसे फलकहार कहते हैं।
ब
बठर-स्थूल
बद्धजीव - अष्ट कर्म से युक्त संसारी जीव ।
बन्ध आत्मा और कर्मों का नीर क्षीर के समान एक क्षेत्रावगाह
होना। बलाहकाकार-मेघ के आकार । बहुरूपक-अनेक भूमिकाओं से युक्त । बहुश्रेयान् अत्यंत कल्याण से युक्त ब्रह्मोद्या - ब्रह्म - सर्वज्ञ के द्वारा कही हुई । बीभत्सु - घृणित |
बुघ्न - मूल।
बुभुत्सा - जानने की इच्छा।
बुभुत्सु - जानने का इच्छुक । बोधि-रत्नत्रय
ब्रघ्न- सूर्य ।
ब्रध्न - सूर्य । ब्रह्मसूत्र - जनेऊ ।
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भ
भगण-नक्षत्रों का समूह ।
भव-कायर योद्धा
भरतात्मज - भरत चक्रवर्ती का प्रथम पुत्र अर्ककीर्ति ।
भागवत भगवान् सम्बन्धी । भागीरथी गंगा नदी।
भामह - काव्य-कला प्रतिपादक ।