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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्यदः १२२४ स्योतः स्यदः (पुं०) [स्यन्द्+क] तीव्रगति, अतिवेग। विधिचित्तरञ्जन:'। (हित०सं० १०) तद्व्यक्तावेव तत्त्वं स्यन्द् (अक०) टपकना, चूना, रिसना। स्यान्न च शूद्रोऽस्ति सा यदि। (हित० १४) ० त्रविह होना, बूंद बूंद गिरना। • है। सतां ततिः स्याच्छरदुक्तरीति। (सुद० १/८) ० अर्क निकालना, बहना। ० जो उभय धर्मों की व्यवस्था करने वाली है वह ० उड़ेलना, पिघलना। 'स्यात्' है। स्यन्दः (पुं०) [स्यन्द् भावे घञ्] बहना, रिसना, टपकना, अनेकशक्त्यात्मकवस्तु तत्त्वं तदेकया संवदतोऽन्यसत्त्वम्। छरना। समर्थयत्स्यात्पदमत्र भाति स्याद्वादनामैवमिहोक्तिजातिः। ० जाना, चलना। (वीरो० १९/८) ० निर्झर (जयो० ३/१०५) जल प्रवाह-'स्वर्णदी- स्यात्कार (वि०) अनेकान्तोद्योत्कार (जयो० ३/४३) सलिलस्यन्दः। स्याद्वादः (पुं०) अनेकान्तात्मक वस्तु निरूपण, अनेक धर्म ० गाड़ी, रथ। (जयो० ७/१९) प्रत्यङमुखे सखे स्यन्दे के स्वभाव का कथन। कथञ्चिवादः, अनेकान्तवाद। (वीरो० रोषो मे प्रागिहोदितः। १९/८) स्यन्दन (वि०) द्रुतगामी, प्रवाहशील, गतिमान। ० जिसमें विवक्षा की अपेक्षा से कथन होता है। विस्तार ० चुस्त, फुर्तीला। के लिए वीरोदय का उन्नीसवां सर्ग दृष्टव्य है। स्यन्दनः (पुं०) सेना, रथ, वाहन, यान। (वीरो० ६/२९) घटः पदार्थश्च पटः पदार्थः शैत्यान्वितस्यास्ति घटेन नार्थः। (जयो० २१/२४, १०/१) पिपासुरभ्येति यमात्मशक्त्या स्याद्वादमित्येतु जनोऽति ० वायु, पवन। ० तिनिश वृक्षा (जयो० २१/२५) भक्त्या।। (वीरो० १९/१५) 'स्यात् कथञ्चित् प्रतिपक्षापेक्षया स्यन्दनम् (नपुं०) गति, प्रवाह, वेग। वचनं स्याद्वादः। (जैन०ल० २०२) ० चलना, बहना। स्याद्वादतत्परः (पुं०) स्याद्वाद सिद्धान्त में लीन। (जयो० ० रिसना। १८/६५) स्यन्दनसञ्चपः (पुं०) रथ समूह। (जयो० १३/१४) स्याद्वादभाक् (नपुं०) अनेकान्तवाद का कथन स्याद्वादमनेस्यन्दनिका (स्त्री०) [स्यन्दन ङीष् कन्+टाप्] गतिमान, रिसने कान्तवाद भजतीति। (जयो० १८/६०) वाला, झरने वाला, गतिशील, द्रतगामी। स्यादवादमुद्रा (स्त्री०) चक्रनय व्यवस्था, स्याद्वाद की व्यवस्था। स्यन्दिनी (स्त्री०) लार, थूक। मुमुक्षुभिस्तीर्थतया किलेष्टा स्यादवादमुद्राङ्कितचक्रचेष्टा स्यन्न (भू०क०कृ०) [स्यन्द+क्त] रिसा हुआ, टपका हुआ (भक्ति० ५) गिरा हुआ। स्याद्वादविद्याधिपति (पुं०) वीरप्रभु, तीर्थंकर महावीर। स्यम् (अक०) शब्द करना, आवाज करना। ध्वनि करना। (वीरो० १३/१९) ० चीखना, चिल्लाना। स्यूत (भू०क०कृ०) सिला हुआ, नत्थी किया गया। ० विचार करना, चिंतन करना। स्यूतिः (सिव् भावे क्तिन्) सीना, टांकना, सिलना। स्यमन्तकः (पुं०) [स्यम्+अच्+कन्] मूल्यवान् माणिक्य, मोती। ० सन्तति-सन्ततौ सीव्यने स्यति इति विश्वलोचने। स्यमिमः (पुं०) मेघ, बादल। (जयो०वृ० १४/२३) बामी। ० उत्पत्ति। (वीरो० १९/१६) स्यमिका (स्त्री०) [स्यमिक+टाप्] नील। ० वंशावली, कुल। स्यात् (अव्य०) शायद, कदाचित्। (सुद० १/६) ० थैला। कथञ्चित्, ऐसा भी, इस तरह से भी। ऐसा करने में भी- | स्यूनः (पुं०) सूर्य। किरण। 'लोकाश्रयो भवेदाद्यः, परः स्यादागमाश्रयः। (हित०सं०३) ___० थैला, बोरा। (जयो० १८०७५) स्यूनोऽर्के किरणे इति वि। ० अस् धातु के विधिलिङ्गः के प्रथम पुरुष एक वचन स्यूमः (पुं०) [सिव्+मक्] प्रकाश किरण। में-'स्यात्' का प्रयोग होता है। 'यतः स्यात् पौत्र-दौहित्रादि स्योतः (पुं०) थैला, बोरा। 4 For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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