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स्फिर
१२२१
स्फुरत्
स्फिर (वि०) [स्फाय्+किरच्] • बहुत, प्रबल, प्रचुर, प्रभूत। स्फुटरूपक (वि०) स्पष्ट अर्थ करने वाली। नासीत्प्रसिद्धिः ___० असंख्य, विस्तृत, आयत।
___स्फुटरूपकायाः। (वीरो० १८/५६) स्फीत (भूक०कृ०) [स्फाय्+क्त] ० प्रशस्त, मोटा, बहुत, स्फुटशाटी (स्त्री०) हरी साड़ी। (जयो० १३/५६) अधिक, (जयो० ४/५४)
स्फुटहंसजनः (पुं०) धार्मिक जन। ० प्रबल, प्रचुर, पर्याप्त।
० उत्तम हंस समूह० सफल, समृद्ध, ० पवित्र।
स्फुटेन हंसजनेन हंसानां पक्षिणां स्फीतचन्द्रवदनीय (वि०) प्रशस्त चन्द्र वदन वाली।
पक्षे धार्मिक परमहंसानां जनेन समूहेन। (जयो०१३/५८) ० चन्द्रमुख की तरह।
स्फुटि:/स्फुटी (स्त्री०) फट जाना। स्फीतः प्रशस्तश्चन्द्र एवं वदनं मुखं यस्याः सा। (जयो०वृ० स्फुटिका (स्त्री०) [स्फुटि+कन्+टाप्] टूटा हुआ, खण्डित, ४/५४)
खण्ड, अंश। स्फीत्कारः (पुं०) अङ्गस्फालन, अङ्गविक्षेप। (जयो०२७/१८) | स्फुटित (भू०क०कृ०) स्फुट्+क्त] फटा हुआ, टूटा हुआ। स्फीतिः (स्त्री०) [स्फाय+क्तिन्] स्फूर्ति। (जयो० ८/७९) (जयो० १/५०) स्फुटितकुम्भदेव धिगस्तु न:
० प्रक्रम, पराक्रम। ० समृद्धि। स्फूर्ति। (जयो० २३/४७) ० स्पष्ट किया हुआ। ० प्रसन्न, खुश। (सुद० ७८)
स्फुटितकुम्भदेवं (नपुं०) फूटा घड़ा। ० प्राचुर्य, यथेष्टता, पुष्कलता।
स्फुटितभावः (पुं०) फूट-फूट होना, बिखर पड़ना। (सुद०९५) स्फीतिधरी (वि०) स्फूर्तिदायक। (समु० ६/२०)
स्फुटीकृत (वि०) स्पष्ट किया हुआ। अपि स्फुटीकृत विश्वविधान। स्फीतिमण्डित (वि०) आनन्द मंडित। (सुद० ८६)
(सम्य० १५२) स्फुट (अक०) फट जाना, विदीर्ण होना। दरार पड़ना, भंग स्फुटीभावः (पुं०) स्पष्ट भाव। (जयो०१० ३/५९) होना, टूटना।
स्फुट्ट (अक०) तिरस्कार करना, अपमान करना, निरादर ० खिलना, विकसित होना। (वीरो० ६/३९)
करना। ० कुसुमित होना, फूलना।
स्फुड् (सक०) ढकना, आच्छादित करना। ० भाग जाना, छलांग लगाना, तितर-बितर करना। स्फुण्ट (सक०) खोलना, फुलाना। उपहास करना, हंसी उड़ाना। ० प्रकट होना। (जयो० )
स्फुण्ड् (सक०) ढकना। ० बतलाना, स्पष्ट करना। (जयो० ५/५१)
स्फुत् (अव्य०) एक अनुकरण परक ध्वनि। स्फुट (वि०) [स्फुट्+क] स्पष्ट। (जयो० ५/५१)
स्फुर् (अक०) थरथराना, कांपना, फटकना। • खिले हुए, विकसित, कुसुमित, प्रफुल्लित। (वीरो०६/३९) ० खसोटना, संघर्ष करना, विक्षुब्ध होना। ० चमकती हुई (जयो०५/९६) ० प्रकट (जयो० १२) ० उछलना, उद्गत होना। ० स्पष्टता-सम्यग्दृशो भाव चतुष्कमेतत् पर्येत्यमीस्फुटमस्य ० चमकना, दमकना, जगमगाना। (जयो० ११/८९, जयो० चेतः (सम्य० ७९)
३/७१) शोभित होना (सुद० १/१४) ० साफ, स्पष्ट, श्वेत, शुभ्र, उज्ज्वल। (सम्य० १२१) । ० फैलना, प्रसरित होना। • फैले हुए, प्रसारित, विकीर्ण। (जैपो० ३/७४) स्फुरः (पुं०) [स्फुट् भावे घञ्] धड़कना, चमकना, देदीप्यमान • प्रत्यक्ष-उत्तमपद-सम्प्राप्तिमितीदं स्फुटमेव प्रवदाम।
होना। (सुद०७०)
स्फुरकान्तिः (स्त्री०) देदीप्यमान् प्रभा। (जयो० ३/१०४) निरंतर-जीवन्ति नः स्फुटम्। (दयो० १/४)
स्फुरणम् (नपुं०) [स्फुर् ल्युट्] चमकना, दमकना, देदीप्यमान स्फुटत्व (वि०) सुस्पष्ट। (जयो० १/२४)
होना। झलकना। स्फुटदन्तरश्मिः (स्त्री०) चमकती हई दन्त किरणावली। ० धड़कना, हिलना, कांपना। (जयो० ५/९६)
स्फुरत् (वि०) छलकने वाला। ० धड़कने वाला। स्फूर्ति स्फुटदुकूलः (पुं०) शुभ्र दुपट्टा। (जयो० १३/५६)
(जयो०८/५)
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