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स्नेह प्रत्ययः
स्नेह प्रत्यय: (पुं०) प्रेम का कारण । स्नेह प्रवृत्तिः (स्त्री०) प्रेम भाव, स्नेहभाव।
स्नेहप्रिय (वि०) अत्यधिक प्रिय ।
स्नेहबन्धनं (नपुं०) प्रेम प्रवाह । (जयो० १ / ७१)
स्नेहभाव (पुं०) आसक्ति परिणाम |
स्नेहामात्मन् (पुं०) स्नेहभाव, आत्मीय भाव। (सुद० १३५) स्नेहरङ्गः (पुं०) तिल |
स्नेहराग: (पुं०) पुत्रादि के प्रतिराग
वाला। (दयो० ९८ )
स्नेहव्यक्ति (वि०) स्नेह, प्रेमी
स्नेहरुद्र: (पुं०) स्नेहासक्ति । (वीरो० २२/२)
स्नेहवत् (वि०) वात्सल्य की तरह (जयो० १२/११९) स्नेहवर्तिका ( स्त्री०) वत्ती । स्नेहस्तैलं यत्र सा सुस्नेहा चासौ दशा वर्तिका । (जयो०वृ० ६ / १३१)
स्नेहविमर्दित (वि०) तैल चुपड़ने वाला प्रेम के भण्डार ।
स्नेहसन्निधानी (वि० ) ० प्रेम रखने वाला |
० प्रेम के भण्डार वाला (दयो० ९८)
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स्नेहित (भू०क० कृ० ) [ स्निह् + णिच्+क्त] • कृपालु, स्नेही, प्रिय । स्नेहिन् (वि० ) [ हिन्+ णिनि] अनुरक्त, स्नेह युक्त। स्नेहिन् (पुं०) चित्रकार लेप करने वाला। स्नेहः (पुं० ) [ स्निह् + उन्] शशि, चन्द्र। स्नै (अक० ) बांधना, लपेटना, परिवेष्टित करना। स्नैग्ध्य (वि० ) [ स्निग्ध+ ष्यञ् ] चिकनाहट, स्निग्धता । • सुकुमारता, प्रियता ।
स्पन्द् (अक० ) धड़कना, हिलना, कांपना, ठिठुरना। ० कंपकंपी, थरथराहट, गति।
स्पन्दनम् (नपुं० ) [ स्पन्द् + ल्युट् ] कांपना।
स्पन्दित (भू०क०कु० ) [ स्पन्द+क्त] कंपित, कप कपाया हुआ, ठिठुरा हुआ।
स्पर्द्धन (वि०) ईर्ष्याकरण । (जयो० १४/१३) स्पर्द्धाकारिन् (पुं०) प्रतिशत्रु, प्रतिपक्षी । (जयो०वृ० १६ / ३३ ) स्पर्द्धित (वि०) स्पर्धायुक्त । (जयो० २० / ७२) स्पर्थ (अक० ) स्पृहा करना, बराबरी करना, होड़ लगाना। ● प्रतियोगिता करना । ललकारना, उपेक्षा करना। स्पर्धन् (वि०) ईर्ष्याकरण, बराबरी करना। (वीरो० ३ / २६ ) स्पर्धा ( स्त्री० ) [ स्पर्ध- अङ्+टाप्] बराबरी, आपसी टक्कर। • प्रतियोगिता, होड़।
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चुनौती सामना |
ईर्ष्या, कुह ।
स्पष्टभेदः
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स्पर्धिन् (वि० ) [ स्पर्धा + इनि] प्रतिद्वन्द्विता करने वाला, करने वाला ।
० समानता करने वाला।
० सामना करने वाला।
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स्पर्धिन् (पुं०) प्रतियोगी ।
स्पर्श (अक० ) मिलना, लेना, संयुक्त होना।
० आलिंगन करना ।
स्पर्श: (पुं०) छूना, संपर्क करना ।
० आलिंगन, संयोग, सघर्ष
स्पर्शक (वि०) छूने वाला, स्पर्श करने वाला। (दयो० ३७) स्पर्शन (वि०) छूने वाला, हाथ लगाने वाला। स्पर्शनम् (नपुं० ) ०छूना, ०स्पर्श करना, ०संपर्क, ० संयोग ।
आत्मना स्पृश्यतेऽनेनेति स्पर्शनम् स्पृशतीति स्पर्शनम् । • स्पर्शन इन्द्रिय, स्पर्शजन्य ज्ञान । ( सुद० १२७ )
एकेन्द्रिय स्पर्शन इन्द्रिय ।
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स्पर्शनकम् (नपुं०) त्वचा शरीर
।
स्पर्शवत् (वि० ) [ स्पर्श मतुप् ] स्पर्श किये जाने योग्य। स्पर्शनक्रिया (स्त्री०) चेतन अचेतन पदार्थ के स्पर्श का
चिंतन।
स्पशु (सक०) अवरुद्ध करना, रोकना।
० सम्पन्न करना।
० छूना ।
देखना, निहारना, भांपना, भेद करना । स्पश: (पुं० ) [ स्पश्+अच्] गुप्तचर । • युद्ध, संग्राम।
स्पष्ट (वि० ) [ स्पश्+क्त] साफ साफ, सरल, (सुद० १२५ )
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स्वच्छ ।
स्पष्टम् (अव्य०) स्पष्ट रूप से, साहस पूर्वक स्पष्टं सुधासिक्त (सुद०२/१९)
स्पष्टगर्भा (वि०) गर्भ के चिह्न युक्त
स्पष्टता (वि०) वास्तविकता, सत्यार्थता (सुद० ९) (सम्य० १४२)
स्पष्टनिवेदनम् (नपुं०) असंदिग्ध कथन (जयो० २ / १३७) स्पष्टपरिभाषणं (नपुं०) स्पष्ट कथन, गर्जन (जयो०वृ० १२/४७)
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स्पष्टप्रतिपत्तिः (स्त्री०) स्पष्ट प्रतीति, वास्तविक ज्ञान । स्पष्टभाषिन् (वि०) साफ-साफ कहने वाला। स्पष्टभेदः (पुं०) यथार्थभेद । (वीरो० १६ / २६)