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स्कन्धचापः
१२०९
स्तननम्
० पुद्गल का एकभेद। (वीरो० १९/३६) ० स्निग्ध, रुक्षात्मक अणुओं का संघात। ० परिप्राप्त बन्ध परिणाम। (सम्य०८) स्थूलत्वेन ग्रहण निक्षेपणादि व्यापारं स्कन्धन्ति गच्छन्ति ये ते स्कन्धाः।
(त०वृति ५/२५) स्कन्धचापः (पुं०) बहंगी। स्कन्धतरु (पुं०) नारियल का पेड़। स्कन्धदेशः (पुं०) कंधा,
० स्कन्ध का अर्ध भाग।
तदर्ध देशः। (त०वा० ५/२५) स्कन्धपर्यन्त (वि०) कंधे तक। (जयो०७० २/६७) स्कन्धपरिनिर्वाणम् (नपुं०) कंधों का लोप। स्कन्धपुराणम् (नपुं०) अष्टादश पुराणों में एक नाम। (दयो०२६) स्कन्धप्रदेशः (पुं०) स्कन्ध के आधे से आधा भाग। स्कन्धफलः (पुं०) नारियल का पेड़। स्कन्धबन्धना (स्त्री०) मैथी, सोया। स्कन्धमल्लकः (पुं०) बगुला, कंकपक्षी। स्कन्धरुहः (पुं०) वट वृक्ष। स्कन्धशाखा (स्त्री०) मोटी शाखा, तना। स्कन्धशृङ्गः (पुं०) महिषी, भैंस। स्कन्धिकः (पुं०) सधा हुआ बैल। स्कन्धिन् (वि०) कंधों वाला। स्कन्न (भू०क०कृ०) [स्कन्द्+क्त] पतित गिरा हुआ।
० उतरा हुआ। ० सूख हुआ।
० फैलाया हुआ। स्कम्भ् (सक०) रोकना, रचना बनाना।
० अवरोध करना। दबाना, नियन्त्रित करना। स्कम्भः (पुं०) [स्कन्भ+घञ्] थूणी, टेक।
० आलम्ब, आधार। स्कम्भनम् (नपुं०) [स्कम्भ् ल्युट] टेक, सहारा, आश्रय,
आलम्बन। स्कान्द (वि०) स्कन्द सम्बंधी। स्कु (अक०) कूदकर चलना, उछलना। स्कुन्द् (सक०) कूदना। स्खद् (सक०) ० काटना। ० प्रताड़ित करना।
० नष्ट करना। ० टुकड़े करना। ० परास्त करना, शांत करना, कष्ट देना।
स्खदनम् (नपुं०) [स्खद्-ल्युट्] ० काटना, चोट पहुंचाना,
मारना।
० कष्ट देना, दु:खी करना। स्खल् (अक०) लड़खड़ाना, गिरना, पतित होना। (जयो०६/८९)
० डगमगाना, लहराना, इधर उधर होना। स्खलनम् (नपुं०) [स्खल+ल्युट्] लड़खड़ाना, फिसलना,
गिरना, डगमगाना। (जयो० २३/२८) ० हकलाना, रुकरुककर बोलना।
० निराशा, विफलता, असफलता। स्खलित (भू०क०कृ०) [स्खल्+क्त] भ्रष्ट। (जयो० ७/१२)
० पतित, गिरा हुआ, खिसका हुआ।
० डगमगाया हुआ, लड़खड़ाया हुआ। स्खलितेशुकम् (नपुं०) खिसके हुए वस्त्र। (जयो० १०/६२) स्खलितम् (नपुं०) ० त्रुटि, भूल, गलती।
० दोष, पाप, अतिक्रमण।
० धोखा, विश्वासघात। स्खलन्ती (वि०) लड़खड़ाती हुई। (जयो० २१/४) स्तक (अक०) टक्कर लेना, मुकाबला करना। स्तक (अक०) आवाज करना, शब्द करना, गूंजना। ० गरजना,
दहाड़ना, कराहना। स्तकम् (अव्य०) तत्काल, तुरन्त। (सुद० ३/१३) स्तन् (अक०) आवाज करना, शब्द करना, प्रतिध्वनि करना। स्तनः (पुं०) उरोज। (जयो० ११/४) पयोधर। (जयो० ११/९४)
० स्तन। (जयो० १०/६१) ० कुच। (जयो०वृ० १७/४३) थन। ० चुचूक, औड़ी।
० छाती, वक्षस्थल, स्त्रीविशेष का स्तन। (सुद० ५/४४) स्तनकः देखो ऊपर। स्तनकोरकः (पुं०) कुच कुङ्गल, कुच-कली, पयोधर। (जयो०
१७/४३) (जयो० ११/९०) स्तनगौरवः (पुं०) उन्नत पयोधर। (जयो०वृ० ११/३३) स्तनच्छलः (पुं०) पयोधर के वश। (जयो० ११/३७) स्तनजन्मन् (पुं०) दुग्ध, दूध। (सुद० ३/१८) स्तनतटः (पुं०) कुच भाग, उरोजतीर। (वीरो० १२/५) स्तनन्धय (वि०) स्तनपानशील। स्तनं धावतीति स्तनन्धय।
(जयो० १५/६९)
० स्तयपान। (जयो०वृ० १०/६१) स्तननम् (नपुं०) ध्वनन, कोलाहल।
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