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सौगन्धिकम्
१२०६
सौभाग्यम्
सौगन्धिकम् (नपुं०) सफेद कुमुद, नील कमल, घास विशेष। सौनिकः (पुं०) कसाई। सौगन्ध्यम् (नपुं०) सुवास, गन्ध, सुरभी। (जयो० २०/९५) सौंदर्यम् (वि०) [सुंदर+ष्यञ्] मनोहरता, रमणीयता, लावण्यता सौगन्ध्यवायु (पुं०) सुरभियुक्त पवन। (जयो० ३१)
सुंदरता। (जयो० २/१४८) (समु० ६/२५) लालित्य। सौचिकः (पुं०) दर्जी, नामदेव, नागर।
(सुद०वृ० १२०) सौजन्यम् (नपुं०) [सुजन+ष्यब] भलाई, महिमा, उदारता। ० सुरूप। (जयो० १४/२५) (जयो० १२/११, दयो० ९८)
सौन्दर्यगविष्ठ्य (वि०) लावण्य के गर्व/अहंकार से परिपूर्ण। ० कृपा, करुणा, अनुकम्पा।
वामाझ्या परिभर्त्तितः सौण्डी (स्त्री०) [शुण्डा+अण+डीप] गजपीपल।
स्ववपुषः सौन्दर्यगर्विष्ठया। (सुद० ९८) सौति (पुं०) कर्ण।
सौन्दर्यचर (वि०) रमणीयता युक्त। सौत्र (वि.) [सूत्र+अण्] सूत्र सम्बंधी, सूत्र में निर्दिष्ट। सौन्दर्यधारग (वि०) लावण्य को धारण करने वाला। सौत्रः (पुं०) ब्राह्मण का एक वर्ग।
सौन्दर्यमात्रा (स्त्री०) रमणीय सत्ता। (जयो० ३/८६) सौत्रान्तिकः (पुं०) बौद्धमत की एक विचारधारा।
सौन्दर्यमात्रारोपः (पुं०) सौन्दर्य मात्र का आरोपण। सौदर्यम् (नपुं०) [सोद+ष्यञ्] भ्रातृत्व, भाईपना।
(जयो० ३/४९) सौदामनी/सौदामिनी (स्त्री०) [सुदामा पर्वत भेदः तेन रमणीयतारोपणपरिणाम।
एकादिक्, सुदामन्+अण+डीप] विद्युत, तडित, बिजली। सौन्दर्यशालिन् (वि०) लावण्य युक्त। (दयो० १०८) (जयो० १७/१०२)
सौन्दर्यसमुद्रः (पुं०) सुरूपनिधि। (जयो० ४/४५) लावण्योदधि। सौदायिक (वि०) उपहारित वस्तु, दहेज।
(जयो० ३/६३) सौदाहवंशगत (वि.) स्वाभाविक प्रीति युक्ता सौदाहसहजप्रेम्णो सौन्दर्यसम्पत्तिः (स्त्री०) सुरूपराशि। (जयो० १४/२६) वशंगताभिः। (जयो० १९/८)
सौन्दर्यार्थिनि (वि०) रमणीयता इच्छुक। (जयो० ३/८६) सौध (वि.) [सुधया निर्मित रक्त वा अण्]
सौपर्णम् (नपुं०) [सुपर्ण+अण] सोंठ, सूखा अदरक। ० मरकत। ० अमृतमय, पीयूषसम। (जयो० ११/४९)
सौपर्गेयः (पुं०) [सुपाः विनतायाः अपत्यं सुपर्णी: ढक्] ० चूने से पुता, धवलित। शुभ्र (वीरो० ११/२७)
गरुड़ सौधम् (नपुं०) रङ्ग प्रासाद, राजमहल। (जयो०वृ० ११/४९) सौप्तिक (वि.) [सुप्ति+ठक्] निद्राजनक। ० हर्म्य। (जयो० १५/४५)
सौबलः (पुं०) [सुबल+अण्] शकुनि। ० भवन, प्रासाद। (सुद० ११७) ० विशाल भवन। सौबली (स्त्री०) [सौबल+ङीप्] धृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी। सौधकारः (पुं०) मकान बनाने वाला, भवन निर्माता। सौभम् (नपुं०) एक नगर का नाम। सौधकेतुः (पुं०) शुभ्रपताका। (वीरो०११/२७)
सौभगम् (नपुं०) [सुभग+अण] ० सौभाग्य। ० समृद्धि, धन, सौधगणग्रहीतिः (स्त्री०) प्रासाद परम्परा प्राप्ति। (जयो० वैभव। २०/३०)
सौभद्रः (पुं०) सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु। सौधपदम् (नपुं०) धवल भवन। (वीरो० २/३३)
सौभद्रेय (पुं०) अभिमन्यु। सौधशिरम् (नपुं०) छत, भवन का ऊपरी भाग।
सौभागिनेयः (पुं०) [सुभगा ढक्, इनङ् द्विपदवृद्धिः] सबसे 'सौधं हर्म्यं तस्य शिर उपरिभागम्' (जयो० १५/४५) प्रिय पुत्र। सौधसमूहः (पुं०) प्रासाद मण्डल। (सुद० १/२६)
सौभाग्यम् (नपुं०) [सुभगायाः सुभगस्य वा भाव-ष्यञ्, सौधसम्पद्दलम् (नपुं०) नागवल्ली-सुधायाश्चूर्णस्य सम्पद्यत्रतत् द्विपदवृद्धिः] ० सुलक्षण, उन्नत भाग्य, सुख-सुविधा। त्वं दलं (जयो० १२/१३४)
तस्याः प्रकृतेः प्रयोगवशतः सौभाग्यमिच्छुर्वत (मुनि० २४) सौधानः (पुं०) भवन का अग्रभाग। (वीरो० २/४५)
० संविधान। (जयो०वृ० १/५१) सौन (वि०) [सूना+अण्] कसाईपना।
० अनुग्रह। (जयो० ५/७९) सौनन्दिन् (पुं०) [सौनंद+इनि] बलराम।
० प्रसाद। (वीरो० २/३१)
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