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सार्थ
११८२
सावधान
सार्थ (वि०) [सह अर्थेन] सार्थक, समूह। (सुद० १/४) सार्वभौमः (पु०) सम्राट्, चक्रवर्ती। प्रयोजन भूत। ० अर्थ युक्त। (जयो० ३/१०९)
० कुबेर दिशा। सार्थः (पुं०) ० धनवान्, धनी पुरुष।
सार्वलौकिक (वि०) [सर्वलोक+ठक] सम्पूर्ण लोक में व्याप्त, सार्थक (वि०) अर्थयुक्त, अर्थपूर्ण। अर्थोऽनुरूप। (जयो०५/१२) सार्वजनिक, विश्वव्यापी। सार्थातिशयप्रभूति (स्त्री०) शिष्य मण्डली सहित। (वीरो० | सार्वकर्णिक (वि०) प्रत्येक वर्ग का, प्रत्येक जाति का। १४/१५)
प्रत्येक वर्ण वाला। ० समर्थन। (जयो०व० ३/१)
सार्वविभक्तिक (वि०) सभी विभक्तियों में घटने वाला। सार्थिक (वि०) प्रयोजन भूत। (मुनि०८)
सार्ववेदसः (पुं०) [सर्ववेदस्+अण्] सम्पूर्ण देने वाला व्यक्ति। सार्थिकः (पुं०) [सार्थ+ठक्] व्यापारी, सौदागर।
सार्षपम् (नपुं०) सरसों का तेला सार्द्र (वि.) [सह आम्रण] गोला, भीगा हुआ।
सालः (पुं०) [सल्+घञ्] एक वृक्ष नाम। सर्जवृक्षा (जयो० साईविरामः (पु०) स्वयं विश्राम। (जयो० २२।८१)
१४/७५) सालानां नाम वृक्षाणां काननं वन। (जयो० सार्ध (वि०) (सह अर्धेण] आधे से अधिक अढाई। (सुद० २१/४०) सागौन
० परकोटा, चार दिवारी, भीत। ० अर्धखण्डसहित। (जयो० १/५५)
सालकाननम् (नपुं०) सालवन, वृक्ष समूह। (समु० ६/२२, ० अर्थ सहित। (जयो० १/१३)
जयो० २१/४५) सार्धम् (अव्य) [सह ऋध्+अमु] साथ साथ, एक साथ
सालङ्कार (वि०) अलङ्कार सहित। (सुद० १/७) (जयो०वृ० १/५५) (सुद० ७१) ।
सालनम् (नपुं०) [सल्+णिच्+ल्युट्] साल वृक्ष की राल। ० समकाल (जयो०१/१३) सुवृत्तभावेन च पौर्णमास्य
सालसाक्षिन् (वि०) अलसाए नेत्र। (जयो० १८/९४) । सुधांशुना सार्धमिहोपमाऽस्य। (वीरो० २/४)
सालारम् (नपुं०) दीवार की खूटी। सार्धद्वयाब्दायुतपूर्व (वि०) अढाई हजार वर्ष पूर्व। (१/२९)
सालूरः (पुं०) मेंढक। सार्द्धम् (अव्य०) साथ साथ। (मुनि० २८)
सालेयम् (नपुं०) मैथी, सोआ। सार्पः (पुं०) [सर्पो देवताऽस्य सर्प+अण] अश्लेषा नक्षत्र।
सालोक्यम् (नपुं०) [सामानो लोकोऽस्य] उसी लोक का होना। सार्पिष्क (वि०) घी में तला हुआ।
साल्वः (पुं०) देश नाम विशेष। सार्व (वि०) सभी तरह (पतितोद्धारकस्यास्य सार्वस्य किमु
साल्विकः (पुं०) [साल्व+ठक्] सारिका, मैना। मानकाः' (वीरो० १५/१०)
सावः (पुं०) [सु+घञ्] तर्पण। सार्वकामिक (वि०) [सर्वकाम ठक्] समस्त कामनाओं को
सावक (वि०) [सु+ण्वुल्] उत्पादक, जन्म देने वाला। ___ पूरा करने वाला।
सावकः (पुं०) पशु बालक, जानवर का शिशु। सार्वकालिक (वि०) [सर्वकाल+ठक्] नित्य, शाश्वत, सदैव
सावकाश (वि.) [सह अवकाशेन] अवकाश सहित। रहने वाला।
० खाली, आकाश सहित। सार्वजनिक (वि०) व्यापक, लोक में व्याप्त। (जयो०१०४/१३)
सावग्रह (वि०) [अवग्रहेण सह] अवग्रहयुक्त, नियम सहित, सार्वज्ञम् (नपुं०) [सर्वज्ञ+अण] सर्वज्ञता, समस्त पदार्थों को
० चिह्न समन्वित। जानने वाला।
सावतीर्ण (वि०) बिखरे हुए। (जयो०८/४१) सार्वत्व (वि०) सर्वधर्मात्मकत्व। (वीरो १०/१२)
सावद्य (वि०) प्राण विघातक रूप। सार्वधातुक (वि०) सभी धातुओं में लगने वाला।
सावध (वि०) [अवद्येन सह संयमी द्वारा प्राप्त। सार्वभौतिक (वि०) [सर्वभूत+ठक] सभी प्राणवान् तत्त्वों से
सावद्ययोगः (पुं०) प्राणि हिंसा में द्धिपूर्वक उपयोग।
सावधान (वि०) [अवधानेन सह] चित्तैकाग्रता। (जयो०२/७४) सार्वभौम (वि०) [सर्वभूमि+अण] लोक व्याप्त, सम्पूर्ण क्षेत्र
दत्तचित्त, सचेत, ध्यान देने वाला। (जयो० २/८५) में व्याप्त।
'सावधानमनसा खलु शर्मकारणं' (समु० ५/२८) ० चक्री। (सम्य० ६४)
युक्त।
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