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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहजभावः ११७३ सहायवत् सहजभावः (पुं०) स्वाभाविक परिणाम। (सुद० ३/३०) सहजभावेन सञ्जातः सुदर्शन एष भो भ्रातः। सहजमञ्जलप्रायः (वि०) सहज सुंदर स्वभाव वाली। ० प्रियांशुनी, सम्भाषिनी। (सुद०७५) सहजमेषः (पुं०) निर्ग्रन्थ, दिगम्बर। (वीरो० २२/७) सहजात (वि०) सहजभाव गत। (जयो० १२/१३७) सहजेन स्वभावेनायातासहता (स्त्री०) [सह तल+टाप] साहचर्य, मेल, मिलाप। सहत्व (वि०) साहचर्य युक्त। सहदार (वि०) विवाहित, सपत्नीक। सहदेवः (पुं०) पाण्डवों का एक भाई। (जयो० १/१८) सहधर्मः (पुं०) समान कर्त्तव्य। सहनम् (नपुं०) झेलना, सहन करना। सहपांशुक्रीडिन् (पुं०) मित्र, सखा। सहभावः (पुं०) सहकारिता (जयो० ३/७०) सहभाविन् (पुं०) मित्र, सखा, अनुचर। सहभू (वि०) सहजात, एक साथ उत्पन्न हुआ। सहमरणम् (नपुं०) सह गमन। सहयोगः (पुं०) [सहार्थेन योग:] सह भाव, सहकारिता। (सुद० ११९) ० सहभागिता। सहयोगिनी (स्त्री०) सहधार्मिणी (हि०सं० १२, वीरो० १८/३२) सहर्ष (वि०) हर्षयुक्त। (जयो० १२/२२) सहवसतिः (स्त्री०) मिलकर रहना। • मिथुन क्रीड़ा। ० संभोग। सहवासः (पुं०) मिलकर रहना। सहस् (पुं०) [सह असि] मगसिर माह, सर्दी का समय। ० शक्ति, सामर्थ्य। सहस (वि०) हास युक्त। (सुद० २/३७) सहसा (स्त्री०) अनायास, अचानक, अकस्मात्। (जयो० ६/१२८) सहज (सुद० ८१) (जयो० ३/९८) ० तभी, तव (सहायेन सहसा) (सुद० ९५) सहसानः (०) [सह्+असानच्] ० मोर, मयूर। ० यज्ञ। ० आहूति। सहसान्धकारः (पुं०) दैत्य विशेष। सहसैव (वि०) एकाएक (दयो०७) (जयो० १८/३०, २२/४०) सहस्यः (पुं०) [सहसे बलाय हितः सहस्+यत्] पौष मास। सहस्रम् (नपुं०) हजार। (वीरो० ३/३) । सहस्रकरः (पुं०) सूर्य, दिनकर। (जयो० १५/३१) सहस्रकिरणः (पुं०) दिवकान्त, सूर्य, भानु। सहस्रकाण्डः (पुं) सफेद दूब। सहस्रकृत्वम् (अव्य०) हजार बार। सहस्रद (वि०) उदार। सहस्रदीधितिः (पुं०) सूर्य। ० दिवाकर, दिनमणि। सहस्रधा (अव्य०) हजार प्रकार से। सहस्रधामन् (पुं०) सूर्य। ० दिनपति। सहस्रपत्रम् (नपुं०) कमल। (सुद० ४/१९) सहस्रपादः (पुं०) सूर्य, दिनकर। सहस्रबाहु (पुं०) नाम विशेष, एक राजा का नाम। सहस्रमरीचिः (पुं०) दिनकर, सूर्य। सहस्ररश्मिः (पुं०) सूर्य। (जयो० १५/९१) सहस्रवयस् (पुं०) हजार वर्ष। (सुद० १/४५) सहस्रशस् (अव्य०) [सहस्त्र+शस्] हजार हजार करके। बहुसंख्यक। (जयो० २१/२१) सहस्रसंभुजः (पुं०) सहस्त्रबाहु। (वीरो० ७/३०) सहस्राब्दिन् (पुं०) एक हजार वर्ष। (वीरो० १५/३०) सहस्रारः (पुं०) स्वर्ग। (समु० ४/३६) (वीरो० ११/३४) सहस्रांशु (पुं०) सूर्य। सहस्रांशुककीर्तनः (०) रजक, धोबी। (जयो० ७/९) सहस्रंशुतेजस् (नपुं०) सूर्यप्रभा। (जयो० २०/६३) सहनिन् (वि०) [सह स्त्र+इनि] हजार से युक्त, हजार संख्या तक। सहस्वत् (वि०) [सहस+मतुप्] समर्थ, शक्तिशाली। सहा (स्त्री०) [सह्+अच्+टाप्] पृथ्वी। . केतकी पुष्प। सहाभिगम (वि०) समागम, संयोग। (जयो० २५/५५) सहायः (पुं०) [सह एति-सह+इ+अच्] ० मित्र, सखा, साथी, सहयोगी। (जयो० ६/११४) ० अनुयायी, अनुगामी। ० सहायक। (भक्ति० १६ ) ० अभिभावको सहायक (वि०) सहभागी। (सम्य० १५) सहायकर (वि०) सहकारि, सहभागी। (जयो०वृ० १४/६५) सहायता (स्त्री०) [सहाय+तव्+टाप्] मैत्री, मिलाप। ० सहायता, सहयोग। (दयो० ९१) सहायधी (स्त्री०) साधनबुद्धि। (जयो० २५/५) सहायवत् (वि०) [सहाय+मतुप] मित्रों सहित, मित्रता से बंधा हुआ। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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