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समुद्गकः
११५७
समुन्नायक
समुद्गकः (पुं०) [समुद्ग+कन्] ०पेटी, संदूक।
समुद्र (वि०) [सह मुद्रया] मुद्रा सहित। मुद्रया सहितः (जयो० समुद्गमः (पुं०) [सम्+उद्+गम्+घञ्] उन्नत। (जयो० १७/५३) १२/५) मुद्रा भीरुप्यकादिभिः सहितोऽभूदिति। (जयोवृ० चढ़ाव, ऊंचाई वाला हिस्सा।
१/४) मुहर, युक्त। मुद्रांकित।। समुद्गमनम् (नपुं०) घदिङ्गण (जयो०वृ० १२/२४) समुद्रजा (स्त्री०) सरस्वती। (जयो०वृ० १९/३४) समुगिर् (सक०) कहना, बोलना। (जयो० ४/५) ऊंचाई समुद्रमेखला (स्त्री०) पृथ्वी, भूमि। की ओर गमन।
समुद्रान्त (वि०) [समुद्रेण अन्ता व्याप्ता] समुद्र पर्यन्त व्याप्त, समुगिरणय् (नपुं०) [सम्+उद्+गृ+ल्युट] उगलना, वमन समुद्र तक फैला हुआ। करना।
समुद्रान्तम् (नपुं०) समुद्रतट। समुदाहिय् (सक०) ०कहना। (जयो० ४/१) प्रतिभाषित
०जायफल। करना
समुद्रान्ता (स्त्री०) कपास का पौधा। समुद्दिश (अक०) लक्ष्य करना, निर्देश करना। (जयो० ३/७३) समुद्राम्बरा (स्त्री०) पृथ्वी, भूमि। समुदीक्ष्य (सं०क०) देखकर, अवलोकन कर। (सुद० २/९०) समुद्रारु (पुं०) मगरमच्छ। समुदैक्षत (वि०) रक्षित। (सुद० २/४९)
समुद्रोद्धारकारक (वि०) मुद्राओं का उद्धारक। (सुद० १/४४) समुद्गीतम् (नपुं०) [सम्+उद्+गै+क्त] उच्च स्वर में गाने समुद्भव (वि०) उत्पन्न हुआ। (जयो० ३/१२) __वाला।
समुद्वहः (पुं०) [सम+उद्+वह+अच] ढोना, भार वहन करना। समुद्रवत् (वि०) उड़ने वाला। (जयो० १३/८६)
समुद्वाहः (पुं०) [सम्+उद्+व+घञ्] अधिक व्याकुलता, समुद्देशः (पुं०) [सम्+उद्दिश+घञ्] निर्देश करना, विवरण आतंक। देना। (जयो० १७/१२)
समुद्वेगः (पुं०) [सम्+उद्+विज्+घञ्] अधिक व्याकुल, समुद्धत (भू०क०कृ०) [सम्+उत्+ह+क्त] उन्नत, ऊंचा आतंक, खिन्न, दुःख। हुआ।
समुद्वेलम् (अक०) उद्वेलित होना। (जयो०वृ० १०८२) उत्तेजित।
समुन्दनम् (नपुं०) [सम्+उन्द्+ल्युट] आर्द्रता, गीलापन, तरी। घमण्डी, अभिमानी।
समुन्न (वि०) [सम्+उन्द्+क्त] आर्द्र, गीला। ०अशिष्ट, असम्य।
समुन्नत (भू०क०कृ०) [सम्+उद्+नम्+क्त] अधिक ऊंचाई धृष्ट, ढीठ।
युक्त, उत्तुंगता प्राप्त, ऊंचा किया गया। (जयो० १/५) समुदह (सक०) स्वीकार करना। (जयो० २/१८)
(सुद० १/२४) समुद्धरणम् (नपुं०) [सम्+उद्+ह+ल्युट्] निवारण, उद्धार, समुन्नतत्व (वि०) उदारभाव युक्त। उन्नति युक्त। (वीरो० मुक्ति ।
३/१३) (जयो० ३/१२) ० भारोत्थापन, बोझ ढोना। (जयो० २/११५)
समुन्नतार्थ (वि०) ऊंचाई युक्त। उठाना, ऊपर करना।
समुन्नति (स्त्री०) प्रगति, अभ्युदय, विकास। सर्वतो विनयताऽसती समुद्धर्त (पुं०) [सम्+उद्+ह-तृच्] मुक्तिदाता।
सती भूरिशोऽभिनयता समुन्नतिम्। (जयो० २/११९) समुद्भवः (पुं०) जन्म, उत्पत्ति।
समुन्नद्ध (भू०क०कृ०) [सम्+उद्+न+क्त] बन्धन युक्त, समुद्यत (वि०) उद्यत हुआ, तत्पर हुआ। (सुद० १२०)
छुटा हुआ। समुद्यमः (पुं०) [सम्+उद्+यम्+घञ्] उपक्रम, समारम्भ, उन्नत, ऊंचा। कार्य प्रारम्भ।
समुक्ताङ्कः (पुं०) सम्यग्वर्णित अङ्क विधि। (जयो० ११/८८) समुद्योगः (पुं०) [सम्+उद+युज्+घञ्] सक्रिय चेष्टा, ऊर्जा | समुन्नयः (पुं०) [सम्+उद्+नी+अच] हासिल करना, प्राप्त शक्ति ।
करना। समुद्रः (पुं०) सागर, उदधि। पयोधि-पयोधि। (जयो० १२/१८) ०घटना, बात।
(जयो०वृ० १६/८२) नदीन (जयो०वृ० १४/८३) (सुद० समुन्नायक (वि०) प्रसत्तिकर, उन्नति करने वाला। (जयो० ३/४०)
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