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श्रमणिडा
१०९४
श्रान्तः
श्रमणिडा (स्त्री०) श्रमणी, सन्यासिनी। (मुनि० ११) श्रमभारः (पुं०) थकावट, थकान। (जयो० १३/७५) श्रमलवः (पुं०) पसीने की बूंद। (जयो० ६/५९) श्रमपारिषातित (वि०) प्रस्वेद युक्त। (जयो० ७३/७७) श्रमहा (वि०) श्रमहर्जी, थकान दूर करने वाली। (जयो०
२२/४२) श्रमी (स्त्री०) परिश्रमी। (वीरो० १८/५७) श्रमणाभासः (पुं०) संयत होता हुआ भी वस्तु तत्त्व से प्रति
अश्रद्धानी। श्रमणी (स्त्री०) साध्वी, आर्यिका। भिक्षुणी, सन्यासिनी। श्रमनीरनिर्झरः (पुं०) स्वेद जल पुर, पसीने की धारा। (जयो०
१३/७६) श्रमारम्भः (पुं०) स्वेद जल। (जयो० १९/९९) श्रम्भू (अक०) उपेक्षक होना, असावधान होना, उपेक्षा
करना। लापरवाह होना। श्रयः (पुं०) [श्रि+अच्] शरण, आश्रय, आधार, सहारा। श्रयणं (नपुं०) [श्रि+ल्युट्] शरण, सहारा, आश्रय, आधार। श्रणणीय (वि०) ग्रहण करने योग्य। (जयो० २८/१०६) श्रयंतु (विधि) चाहे, सेन को। (जयो० २/७१) श्रयेत् (वि०) अध्ययन करे। श्रवः (पुं०) [श्रु+अप्] सुनना, श्रवण करना। श्रवणः (पुं०) कर्ण, कान। श्रवणं (नपुं०) सुनने की क्रिया। (समु०४/२२) ____ ख्याति, प्रसिद्धि, कीर्ति। श्रवणकुमारः (पुं०) एक मातृ-पितृ भक्त कुमार। श्रवणकार्यः (पुं) सुनने का कार्य। श्रवणगत (वि०) कर्णभाग को प्राप्त हुआ। श्रवणगोचर (वि०) कर्णभाग में समाहित। श्रवणगोचरः (पुं०) सुनाई देने की सीमा। श्रवणपथः (पुं०) कर्णपथ। श्रवणपथागत (वि०) कर्णमार्ग का आया हुआ। (जयोवृ०
१/६४) श्रवणपालिः (स्त्री०) कर्ण भाग, कान का हिस्सा। श्रवणपूरः (पुं०) कर्ण से उत्पन्न, कर्णपथा श्रवणसम्भव।
(जयो०६/८९) श्रवणपूरमुपेत्य विलासिनी
हृदयमाशु ददावकनाशिनी। (जयो० ९/७८) श्रवणविषयीकृत (वि०) कर्ण प्रान्त गत। (जयो० १/६९) ।
श्रवणशील (वि०) सुनने वाला। (जयो०वृ० १/२६) श्रवणसन्निहित (वि०) कर्णप्रानल में समाहित। (वीरो०२/१३) श्रवणसुभग (वि०) कर्णप्रिय। । श्रवणासुभग (वि०) सुनने में बुरा। (दयो० ६४) श्रवःसुचः (पुं०) कर्णपात्र। (जयो० २७/१९) श्रवस् (नपुं०) [श्रु+असि] कर्ण, कान। (वीरो० ३/१४) __ ख्याति, प्रसिद्धि।
०धन, वैभव। श्रवसोस्तृप्तिः (स्त्री०) कर्णतृप्ति वदत्यपि जनस्तस्यै
श्रवसोस्तप्तिकारणम। (वीरो०८/३६) श्रवस्यं (नपुं०) [श्रवस्+यत्] कीर्ति, यश, प्रसिद्धि, ख्याति। श्राविष्ठा (स्त्री०) [श्रवः ख्याति:, अस्ति अस्याः
श्रव+मतुप्-इष्ठनि मतुवो लुक्] घनिष्ठा नक्षत्र
० श्रवणा नक्षत्र। श्रव्य (वि०) [श्रु+यत्] सुनने योग्य। (वीरो०१८/३१) श्रा (अक०) पकाना, उबालना, परिपक्व करना।
०भोजना बनाना। श्राण (वि०) [श्रा+क्त] पकाया हुआ। परिपक्व किया हुआ। ____ ०आर्द्र, गीला, तर। श्राणा (स्त्री०) [श्राण+टाप्] कांजी, यवागू। श्राद्ध (वि०) [श्रद्धा हेतुत्वेनास्त्यस्य अण्] निष्ठावान्, श्रद्धावान्,
विश्वास करने वाला। ____० श्रद्धापूर्वक आदि देने वाला। (जयो० १८/५) श्राद्धं (नपुं०) अनुष्ठेय संस्कार। (जयो० २।८८) श्राद्धकर्मन् (नपुं०) अन्त्येष्ठि संस्कार। (वीरो० १५/६१) श्राद्धक्रिया (स्त्री०) अन्त्येष्ठि संस्कार। श्राद्धकृत् (स्त्री०) अन्त्येष्ठि संस्कार करने वाला। श्राद्धदः (पुं०) श्राद्ध का उपहार। श्राद्धदिन् (पुं०) सम्मान दिवस, पुण्यतिथि। श्राद्धदिनं (नपुं०) पुण्यतिथि। श्राद्धदेवः (पुं०) अष्ठिात्री देव। श्राद्धिक (वि०) श्राद्ध सम्बंधी। (वीरो० २०/२२) श्राद्धीय (वि०) श्राद्ध संबंधी। श्रान्त (भू०क०कृ०) [श्रम्+क्त]
०थका हुआ, परिश्रम युक्त। ०क्लान्त, परिश्राक्त। (दयो० १८)
शन्त, सौम्य। श्रान्तः (पुं०) संयत, श्रमण, साधु।
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