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शाला
१०६४
शास्
शाला (स्त्री०) [शाल+अच्+टाप्] ०कक्ष, स्थल, बैठक,
प्रकोष्ठ। (सुद० २/९) ०मण्डपशाला। (जयो० ३/७७)
घर, आवास, आलय, निवास। ०वृक्ष की शाखा, वृक्ष का तना। शालाकः (पुं०) पाणिनि। शालाञ्जिरः (पुं०) मिट्टी का सकोरा। शालामृगः (पुं०) गीदड़। शालावृकः (पुं०) कुत्ता, श्वान, कुक्कर।
भेड़िया, हरिण। बिल्ली।
०वानर, बंदर। शालाकिन् (पुं०) [शालाक+इन्] बींधारी, भालायुक्त व्यक्ति।
गश्ती, पहरेदार।
०नाई। शालातुरीयः (पुं०) [शालातुर+छ] पाणिनि। शालारं (नपुं०) [शाला+स्+अण] सीढ़ी, जीना, पायदान।
पिंजरा। सोपान। शालिः (स्त्री०) [शाल+णिनि] धान्य, एक प्रकार का चावल। शालि-ओदन: (पुं०) शालिधान्य के चावल की भात। शालि ओदनं (नपुं०) देखो ऊपर। शालिकः (पुं०) शालीधान्य। (वीरो० २१/१०) शालिकः (पु०) [शालि+के+क] जुलाह, तन्तुकार। ०मार्गकर। शुक्ला
कृषक, किसान। (जयो० २/३१) (जयो० ४/५७) शालिगोपी (स्त्री०) शालिरक्षिका, धान्यखेत रक्षिका। शालिचूर्ण:/शालिचूर्ण (पुं०/नपुं०) चावल का आटा। शालिन् (वि०) सहित, युक्त, सम्पन्न।
चमकीला, चमकदार। शालिनी (स्त्री०) [शालिन् ङीप्] गृहिणी, मालकिन।
रमणीया। (जयो० १३/५२) ०एक छन्द का नाम, इस छन्द में ग्यारह वर्ण होते
हैं-555, 551, 551, 55 शालिपिष्टं (नपुं०) स्फटिक। शालिभवनं (नपुं०) धान्य खेत। धान्यागार शालिमालः (पुं०) धान्य समूह, धान्य की क्यारियां। (वीरो०
२१/१०)
शालिवाहनः (पुं०) एक प्रसिद्ध राजा। शालिहोत्रिन् (पुं०) अश्व, घोड़ा। शालीन (वि०) [शाला+खञ्] लज्जालु, विनीत, विनम्र, नत।
शालीनः (पुं०) गृहस्था | शालः (पुं०) [शाल+उण] मेंढक, दर्दुर।
शालु (नपुं०) कुमुदिनी की जड़। शालुकं (पुं०) कुमुदिनी की जड़, जायफल। शालुकः (पुं०) मेंढक, दर्दुश। शालूर (पुं०) [शाल्+ऊर्] मेंढक। शालेयं (नपुं०) [शालि+ढक्] धान्य क्षेत्र। शालोत्तरीयः (पुं०) पाणिनि। शाल्मलः (पुं०) सेमल तरु। शाल्मलिः (स्त्री०) सेमलतरु। (भक्ति० ३७) शाल्मलिस्थः (पुं०) गरुड़। शाल्मली (स्त्री०) सेमल तरु। नरक की भूमि। शाल्वः (पुं०) [शाल्+व] एक देश। शाव (वि०) [शव+अण] शव सम्बन्धी। मृत्यु से उत्पन्न। शावः (पुं०) शावक, पुत्र, जानवर का बच्चा। (जयो०६/४५) शावकः (पुं०) शावक, पुत्र बच्चा। जानवर का छोटा बच्चा। शाश्वत: (पुं०) महादेव, शिव।
सूर्य। शाश्वत (वि०) [शश्वद् भवः अण] निरन्तर, सदा ही।
नित्य, ध्रुव, चिरस्थायी। शाश्वतं (अव्य०) नित्य, निरन्तर. सदैव, सदा के लिए, फिर
से। शाश्वतबुद्धिः (स्त्री०) नित्यबुद्धि। (जयोवृ० १/४२) शाश्वतस्थितिः (स्त्री०) आनन्त्यदशा, नित्यदशा। (भक्ति०
पृ० २) प्राग् स्थिति। शाश्वतिक (वि०) [शाश्वत+ठक्] नित्य, स्थायी. सतत्,
__ * सनातन। शाश्वती (स्त्री०) [शाश्वत+ङीप्] पृथ्वी। शाष्कुल (वि०) मांस भक्षी। शाष्कुलिकं (नपुं०) [शष्कुली+ठक्] पूरियों का ढेर। शास् (सक०) पढ़ाना, लिखाना। (जयो० २/४२) ०अध्यापन
करना, शिक्षण प्रदान करना, प्रशिक्षित करना, सीख देना।
शासन करना, अनुशासित करना, नियंत्रित रखना। वारितं तु परचक्रमु द्यत:, साम-दाम-परिहार भेदतः। प्राभवाभिबलमन्त्रशक्तिमान् शास्ति सम्यगवनिं पुमानिमाम्।
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