________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शर्करिक
१०५५
शर्करिक (वि०) कंकर, कंकड़ी, बजरीयुक्त। (जयो० २७/४९) त्रियामायां हरिद्रायोषतोरपि' इति विश्वलोचन (जयो०७० किरकिरा, कंकरीला।
२२/१७) शर्करिल: (वि०) देखो ऊपर।
शल् (सक०) हिलाना, हरकत देना। शर्करी (स्त्री०) नदी।
०क्षुब्ध करना। ____करधनी, मेखला, कंदौरा।
०कांपना। शर्धः (शृध्+घञ्) अफारा, अपानवायु का छोड़ना, पदास, पादना। | शल: (पुं०) [शल्+अच्] सांग, चन्द्र। (जयो० २४/४९) बीं। दल, समूह।
मेख। सामर्थ्य, शक्ति।
ब्रह्मा। शलं तु शल्लकीलोक्नि शलो भुङ्गिगणे विधौ शर्धजह (वि०) [शर्ध+हा+खश] अफारा उत्पन्न करने वाला, इति वि वायु विकार वाला।
शलकः (पुं०) [शल+कन्] मक्कड़ मकड़ा। शर्धजहः (पुं०) [शर्ध+हा+वश्+घञ्] उड़द, माष।
शलक्ष (वि०) चिकना। शर्धनं (नपुं०) [शृध्+ल्युट्] पादना, उदास, वायु छोड़ना। शलक्षकेशः (नपुं०) चिकने केश। (सुद० २/७) शर्ब (सक०) जाना, पहुंचना।
शलङ्गः (पुं०) [शल्-अङ्गञ्] नृप, राजा। नाश करना, क्षतिग्रस्त करना।
प्रभु, स्वामी। शर्मकारि (वि०) सुख दायक।
शलभः (पुं०) [श्ल+अभच] पतंगा। (जयो० २५/२४) शर्मन् (पुं०) [शृ+मनिन्] दास, गुप्ता।
झषचातकशलभाशी: (सुद० १/४९) अनवयन्दहनं शर्मन् (नपुं०) प्रसन्नता, आनन्द, खुशी।
शलभोऽतति वडिशमांसमितश्च झषोऽमतिः। (जयो० आशीर्वाद।
२५/७७) आश्रय, आधार। स्त्री प्रसंगादि सुख (जयो० ३/१,) शलभपंक्तिः (स्त्री०) पतङ्गावलि। (जयो० १०/११५) कल्याण, सुख। (जयो० २/४४, १२/४८)
शलभसमूहः (पुं०) पतंग समूह। शर्मरः (पुं०) [शर्मन्+रा+क] वस्त्र विशेष, परिधान विशेष। शललं (नपुं०) [शल्-अलच्] साही का कांटा। शर्मलेखिनी (स्त्री०) आनन्द समुद लेखकी। (जयो० १२/८१) शलली (स्त्री०) छोटी साही। शर्मवत् (वि०) सुख सदृश। (जयो० ७/१००)
शलाका (स्त्री०) [शल्+आ+टाप्] छोटी खूटी, कील, शर्मवारि (नपुं०) सुखपूर्ण जन। स्वच्छ जल।
टुकड़ा, सींखचा। लोह कीलक (३/१७) शर्मसूक्ति (स्त्री०) कल्याणोत्पत्ति। (जयो० २३/२१)
सलाई, अंजन आंजने की तीली। शर्माज्झिति (स्त्री०) सुख त्याग। (मुनि० १७)
बाण, तीर। शर्मार्थ (वि०) शान्तिलाभार्थ। (जयो० २३/६९)
०सांग। शर्या (स्त्री०) [शृ+यत्+टाप्] रजनी, रात्रि।
०अंकुर, फुनगी, कोंपल। अंगुली।
दंत कुदेरनी, दंत प्रक्षालिनी। श (सक०) जाना, पहुंचना।
महत् व्यक्तिव युक्त पुरुष तत्व। (जयो० १/५९) ___ क्षति पहुंचना, मारना, घात करना।
विशिष्ट व्यक्ति, वीतरागानुगामी पुरुष। शर्वः (पुं०) विष्णु।
शलाकापुरुषः (पुं०) वीतरागानुगामी पुरुष। विशिष्ट पुरुष, शर्वरः (पुं०) [शृ+ष्वरच्] कामदेव।
तीर्थंकर, चक्रवर्ती बलदेव, वासुदेव आदि। शर्वरं (नपुं०) तम, अन्धकार।
एत्तो सलायपुरिसा, तेसट्ठी सयल-भुवण विक्खादा। शर्वरी (स्त्री०) तम, अंधकार।
जायेति भरखेत्ते णरसीहा पुण्णपाकेण।। (ति०प० ४/५१७) शर्वरी (स्त्री०) [शृ+वनिप् ङीष्] रजनी, रात्रि (जयो० १५/३४) | शलाटु (वि०) [शल्+आटु] अनपका, अपरिपक्व।
(जयो० ११/९३) 'शर्वरी तु त्रियामायां हरिद्रायोषितो रपि' शलोपल: (पुं०) चन्द्र कान्तमणि। (जयो०२४/४९) इति विश्वलोचनः (जयो० १८/४७) युवती शर्वरी तु | शल्कं (नपुं०) मछली।
For Private and Personal Use Only