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व्यतिरेकदृष्टान्तः
१०३२
व्यथित
एक अलंकार (जयो०० १/३) जिसमें किसी विशेष दशाओं में उपमान की अपेक्षा उपमेय को श्रेष्ठतम बताया जाता है। (जयो०व०१/३) 'उपमानाद्यदन्यस्य व्यतिरेकः स एव सः' (काव्य० १०) केनचिद्यत्र धर्मेण द्वयोः संसिद्धसाम्ययोः भवत्येकतराधिक्यं व्यतिरेकः स उच्यते।। (वाग्भटालंकार ४/८३) 'गुप्तिभागिह च कामवत्तुः न, पक्षपाति च शीतरश्मिवत्पुनः। (जयो० ३/१५) भिन्न संतान, जो विसदृशता रूप अवस्था है।
कारण के अभाव में जो कार्य का भी अभाव है। (वीरो० १९/२०)
अन्वय के साथ कार्य-कारण का भाव। (हित० सं०१६) व्यतिरेकदृष्टान्तः (पुं०) साध्य के अभाव में साधन का
अभाव जहां कहा जाता है। 'साध्याभावे साधनाभावो यत्र
कथ्यते स व्यतिरेकदृष्टान्तः' (परीक्षा ३/४४) व्यतिरेकिन् (वि०) [व्यतिरेक इनि] ०आगे बढ़ जाने वाला,
आगे निकल जाने वाला। अपवर्जन करने वाला।
अभाव दर्शाने वाला। व्यतिरेकोपमा (स्त्री०) व्यतिरेक अलंकार और उपमा।
(जयो० ३/१५) व्यतिषक्त (भू०क०कृ०) [वि+अति+शञ्ज+क्त] पारस्परिक
सम्बन्धयुक्त, आपस में मिला हुआ, संसक्त, मिश्रित। व्यतिषंगः (पुं०) [वि+अति+शञ्ज+घञ्] ०संयोग, मिलाप।
पारस्परिक सम्बंध।
अन्योन्य सम्बन्ध, एकनेकता। व्यतिहारः (पुं०) [वि+अति+ह+घञ्] विनिमय।
लेन-देन।
अदला-बदली। व्यतीत (भू०क०क०) [वि+अति+इ+क्त] ०बीता हुआ हुआ।
समाप्त। (समु०४/१९) यापित। (जयो०वृ० १८८२)
विसर्जित, परित्यक्त, छोड़ा गया। व्यतीति (वि०) व्यपगम। (जयो० १८/) व्यतीत्य (वि०) हितकर। (जयो० १/६) (सुद० ११६) व्यतीपातः (पुं०) [वि+अति+पत्+घञ्] ०अनादर, अपमान,
तिरस्कार। पूर्ण प्रयाण, अति गतिशीलता। सम्पूर्ण विचलन।
व्यत्य (वि०) समाप्त। (सुद० १/४६) व्यत्ययः (पुं०) [वि+अति+इ+अच्] ०पार करना।
उस पार होना। ०अभिप्राय। (जयो० २२/५८) ०व्युत्क्रान्ति। अन्तः परिवर्तन, (जयो० ६/६९) रूपान्तरण। अवरोध, अड़चन। विरोधा
०विपर्यस्त, वैपरीत्य। व्यत्यस्त (भू०क०कृ०) [वि+अति+अस्+क्त] व्युत्क्रान्त,
विपर्यस्त। विपरीत, विरोधी। असंगत।
विकीर्णगत। व्यत्यासः (पुं०) [वि+अति+अस्+घञ्] ०विरोध, असंगत
विपरीतता।
०व्युत्क्रान्त। व्यथ् (अक०) व्यथित होना, व्याकुल होना।
०दु:खी होना, कष्ट होना। शोकाक्रान्त होना, अशान्त होना। खिन्न होना, म्लान होना।
०कांपना, भयभीत होना। व्यथक (वि०) [व्यथ् णिच्+ण्वुल] ०दु:खद, कष्टकर,
व्याकुलित। व्यथनं (नपुं०) [व्यथ्+ ल्युट्] सताना, पीड़ा देना। व्यथा (स्त्री०) [व्यथ्+अङ्-टाप] पीड़ा, कष्ट, वेदना। (जयो०
२/४८) ०भय, चिंता, व्याकुलता। विक्षोभ, अशांति।
रोग। व्यथाकथा (स्त्री०) व्यर्थ कथा। व्यथाकथामेष कुतः प्रयातु।
(वीरो० १२/३४) व्यथाकर (वि०) व्यथां करोतीति व्यथाकरः, बाधाकारक।
(जयो० २/२६) व्यथित (भू०क०कृ०) [व्यथ्+क्त] ०पीड़ित, दुःखी, कष्ट
युक्त। (जयो० १४८)
आतङ्कित। विक्षुब्धा ०अशान्त।
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