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वेदकसम्यक्त्वं
१०२२
वेदिका
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वेदकसम्यक्त्वं (नपुं०) वेदक सम्यक्त्व। दर्शन मोहनीय कर्म वेदबाह्य (वि०) वेद से विपरीत। (दयो०२४) (दयो० २६) के क्षयोपशम से वेदक सम्यक्त्व होता है।
वेदमातृ (स्त्री०) वैदिक मन्त्र। वेदगर्भः (पुं०) वेद ज्ञाता।
वेदमूढता (स्त्री०) पापजन्य उपदेश। वेदग्रन्थः (पुं०) वेद। (वीरो० २०/११) ०वेदशास्त्र। वेदवचनं (नपुं०) वेदवाक्य, ज्ञानसूत्र, आत्म कल्याणकारी वेदत्रयं (नपुं०) तीन वेद कर समूह।
शब्द व्यवहार। वेदध्वनि (स्त्री०) आत्म कल्याणकारक ध्वनि, द्रव्यानयोगशास्त्र वेदवाक् (नपुं०) ज्ञान वचन, सिद्धांत निरूपण, वेदज्ञान। __की ध्वनि। महर्षि पठित वाक्य। (जयो० १९८७) वेदवाक्यं (नपुं०) बोध जन्य वाक्य। (वीरो० १३/२१) वेदनं (नपुं०) [विद्+ल्युट] ०परिज्ञान, बोध।
आत्मकल्याणकारी वचन। 'सा देवता, तत्र गतो भवान्' हे छिन्नमोह जनमोदनमोदनाय,
इत्यादिभिर्वेदवाक्यैः कामोत्पादकवचनैः' (जयो०१० २४/३३) तुभ्यं नमोऽशमन संशमनोदमाय।
वेदविद् (पुं०) वेदशास्त्र प्रवीण व्यक्ति, वेदविशारदा (दयो०२४) निर्वृत्यपेक्षित निवेदन-वेदनाय,
वेदविहित (वि०) वेद निरूपित, आगम प्रतिपादित। सूर्याय मे हृदरविन्दविनोदनाय।। (जयो० १०/९६) वेदवेदाङ्ग (वि०) वेद-पुराणादि का ज्ञाता। इत्येवमेतस्य सती वेद ज्ञान। (वीरो० ३/५)
विभूतिं स वेद-वेदाङ्गविदिन्द्रभूतिः' (वीरो० १३/२५) ०दु:ख, वेदना। (जयो० १/५९, वीरो० ३/५) वेदवेदाङ्ग-पारङ्गत (वि०) वेद और वेदपङ्गों में निपुण। (दयो० भावना, संवेदन, पीडा, क्लेश, कष्ट। (सम्य० २४)
९१) ०अधिग्रहण।
वेदवेदाङ्गविद् (वि०) वेद-वेदाङ्ग का ज्ञाता। (वीरो० १३/२५) वेदना (स्त्री०) दुःख, पीड़ा, संताप, खेद। (सुद० ३/२८) वेदव्यासः (पुं०) एक वेद विचारक, जिसने वेदों के वर्तमान वेदनागत (वि०) दु:खित, पीड़ित, व्याकुल।
रूप को प्रस्तुत किया। वेदनाजन्य (वि०) कष्ट युक्त, पीड़ा सहित।
वेदसूत्रं (नपुं०) वेदपद! (वीरो० १४/३) ज्ञानसूत्र। वेदनाजन्यः (पुं०) आर्तध्यान के निदान, वेदनाजन्य, वेदानुयायिन् (वि०) हिन्दु जन, वेदशास्त्र के नियमों का
अनिष्टसंयोगज और इष्टवियोजग ये चार भेद हैं, उनमें पालक। (जयो० १४/७९) (वीरो० २२/१६) दूसरा भेद वेदनाजन्य है। (मुनि० २१)
न्याज्ञिक। (वीरो० २२/१६) ज्ञानविज्ञ, वेदविज्ञ। वेदनाधारः (पुं०) दुःख का कारण, व्याकुलता का मूल वेदाम्बुधिः (पुं०) वेदशास्त्र रूपी समुद्र। (वीरो० १३/२६) आधार।
वेद रहस्य। वेदनीय (वि०) सुख-दुःख का कारण रूप कर्म, पीड़ा, कष्ट। वेदार्थः (पुं०) वेदों का अर्थ। वेद रहस्य, ०वेदज्ञान। धूर्तेः वेदनीयकर्मन् (पुं०) वेदनीयकर्म, आठ कर्मों में तीसरा समाच्छादि जनस्य सा दृक् वेदस्य चार्थः समवादि तादृक्।
कर्म-तेद्यत इति वेदनीयम्, अथवा वेदयतीति वेदनीयम्। (वीरो०१/३२) वेदनाप्राप्त (वि०) दु:खित, पीड़ित।
वेदिः (पुं०) विद्वान्, प्राज्ञ, विज्ञ, ज्ञ, ऋषि, ज्ञानी पुरुष। वेदनाभयः (पुं०) अज्ञानता पूर्ण भय।
वेदिः (स्त्री०) वेदी, कटनी, मूर्ति स्थापना के लिए बनाई गई वेदनाभावः (पुं०) परिज्ञान भाव।
कमर के ऊपर तक ऊँचा स्थान, जो मांगलिक प्रातिहार्यों वेदनामुक्त (वि०) आकुलता रहित।
एवं सुंदरता से युक्त होती है। वेदनायुक्त (वि०) रुग्णता युक्त, आधि-व्याधि सहित। मंदिर/देवालय का उच्चासन। (जयो०वृ० ११/८५)
०सरस्वती। वेदनिन्दक (वि०) पाखण्डी, श्रद्धाहीन।
मुद्रा। वेदनिन्दा (स्त्री०) पाखण्ड, अविश्वास, ज्ञाननिन्दा।
०अंगूठी। वेदपदं (नपुं०) वेदसूत्र। वेद ऋचा। (वीरो० १४/३)
०चबूतरा, चौकोर स्थान। (जयो०१० २/७८) वेदपाठी (वि०) वेद पढ़ने वाला, आत्म ज्ञान करने वाला। | वेदिका (स्त्री०) [वेदि+कन्+टाप्] ०वेदी, चबूतरा, आसन। वेदपारगः (पुं०) वेदों में निपुण।
०लतामण्डप, निकुंज।
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