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विषाददायकः
१००८
विष्णुवर्धनः
* पक्षी।
* तीतर। विष्टपः (पुं०) [विष्+कपन्] लोक, संसार, भुवन। (जयो०
१/६६) विष्टपं (नपुं०) संसार, लोक, भुवन। विष्टपहारिन् (वि०) लोक को हर्षित करने वाला। विष्टब्ध (भू०क०कृ०) [वि स्तंभ्+क्त] * आश्रित, आधारित,
सहारा दिया गया। * अवरुद्ध, बाधा युक्त।
* गतिहीन। विष्टंभः (पुं०) [वि+स्तंभ्+घञ्] अवरोध, रुकावट, बाधा,
गतिरोध। (जयो० १९/७७)
* लकवा, ठहरना। उपद्रव। विष्टंभनिवारण (नपुं०) उपद्रव निवारण। विष्टरः (पुं०) [वि+स्तृ+अप] आसन, तह, परत।
* विस्तर।
* वृक्षा
* शोक, विष भक्षण परिणाम। (जयो०७० ३/१३) * निराशा, हताशा, नैराश्या विषादायैव तत्पश्चान्नश्यदेव प्रपश्यते। (वीरो० १०/३) * थकान, म्लान। * अवस्था ।
* मन्दता, जड़ता, संज्ञाहीनता। विषाददायकः (पु०) कष्टदायक, निराशाजनक।
(जयो०० ८/८३) विषादिन् (वि०) [विषाद+इनि] खिन्न, उद्विग्न।
* उदास, विषण्ण। (जयो० १/३५)
* विष खाने वाला। (सुद० ११२) विषादिदुर्गा (स्त्री०) दु:ख गम्या दुर्गा, रुद्ररूप दुर्गा।
(जयो० ३/८७) विषारः (पुं०) [विष+स्+अच्] सर्प, सांप। विषालु (वि०) [विष+आलच] विषैला, जहरीला। विषु (अव्य०) [विष् कु] * भिन्नतापूर्वक।
* समान, सदृश।
* दो सदृश भागों में। विषुपं (नपुं०) [विषु पा+क] विषुवत् रेखा। विषुवं (नपुं०) मेषराशि या तुलाराशि में प्रवेश होना। विषूचिका (स्त्री०) [वि+सूच्+ण्वुल टाप्] हैजा एक महामारी। विषोपयोगः (०) विष का उपयोग। (दयो० १२३) विष्क् (सक०) मारना, हनन करना वध करना, मात करना।
* देखना, प्रत्यक्ष करना। विष्कन्दः (पुं०) [वि+स्कन्द्+अच] * तितर बितर होना,
* जाना, गमन। विष्कम्भः (पुं०) [वि+स्कंभू+अच] * अवरोध, रुकावट,
बाधा। * सांकल, चटकनी।
* थूणी, स्तम्भ। विष्कम्भः (पुं०) अवान्तर कथा। विष्कम्भकः (पुं०) नाटक की कथावस्तु का स्थापन।
* विस्तार, लम्बाई। विष्कम्भित (वि०) [विष्कंभ इतच्] अवरुद्ध, बाधायुक्त। विष्कभिन् (पुं०) [विष्कभ+इनि] अर्गला, सांकल, चटखनी। विष्किटः (पुं०) [वि+कृ+क] इधर-उधर बखेरना, फाड़
डालना। * मुर्गा।
विष्टरभाज् (वि०) आसन पर बैठा हुआ। विस्टरश्रवस् (पुं०) विष्णु, कृष्ण। विष्टिः (स्त्री०) [विष्+क्तिन] व्याप्ति। (सम्य० ११०)
* कर्म, व्यवसाय।
* भाड़ा, मजदूरी। विष्ठलं (नपुं०) दूरवर्ती स्थल, दूरी वाला स्थान। विष्ठा (स्त्री०) [वि स्था+क+टाप्] * मल, पाखाना, लीद।
(मुनि० १३) विष्णुः (पुं०) विष्णु नाम विशेष। (दयो० ३१)
* अग्नि।
* पुण्यात्मा। विष्णुक्रमः (पुं०) विष्णु के पैर।। विष्णुगुप्तः (पुं०) चाणक्य। विष्णुचन्द्रः (पुं०) एक राजा का नाम। (वीरो० १५/४९) विष्णुतैलं (नपुं०) एक औषधि विशेष। विष्णुदैवत्या (स्त्री०) चान्द्रमास की एकादशी। विष्णुपदं (नपुं०) आकाश, अन्तरिक्षा विष्णुपदी (स्त्री०) गंगा। विष्णुपुराणं (नपुं०) अठारह पुराणों में एक पुराण। (दयो०३१) विष्णुरथः (पुं०) गरुड। विष्णुवर्धनः (पुं०) एक राजा। (वीरो० १५/४६)
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