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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशालदानं १००२ विशुद्धाश्रय विशालदानं (नपुं०) परिपूर्ण दान। विशालधनं (नपुं०) अत्यधिक वैभव। विशालनन्दि (पुं०) राजगृहनगर के एक ब्राह्मण का पुत्र। __ (वीरो० ११/१२) विशालभूति (पुं०) राजगृहनगर का एक ब्राह्मण। (वीरो० ११/१२) विशालमति (स्त्री०) प्रशस्त बुद्धि। विशालयोगः (पुं०) उत्तम संयोग। विशालवक्षः (पुं०) विस्तीर्ण वक्षस्थल। विशालहृदयः (पुं०) बृहत्मन (जयो० ७/५९) (जयो० ६/६०) विशाला (स्त्री०) उज्जयिनी नगरी का एक नाम। विशाला (वि०) शाला रहित। (जयो० ३/७८) विशिख (वि०) [विगता शिखा यस्य] मुकुटरहित, बिना चोटी का। * अस्तित्व हीन। कूट रहित। * नग्न। * शिखावर्जित। (जयो० ९/२५) विशिखा (स्त्री०) [विशिख+टाप्] फाबड़ा। * नकुवा। * सुईया पिन। * तीक्ष्ण बाण। * राजमार्ग। * नापित भार्या। विशित (वि०) [वि+शो+क्त] * तीव्र, तीक्ष्ण। * प्रवीण, इष्ट। विशित (वि०) देवालय, मंदिर। * आवासस्थल, गह, निवासस्थान। विशिष्ट (भू०क०कृ०) [वि+शिष्+क्त] * विशेष, असाधारण, असामान्य। (जयो० १/) * प्रशस्त। (सम्य० ८४) मनोरम, रमणीय। * अतिशय, अधिक। (जयो०५/५७) श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, प्रमुख, उत्कृष्ट, परम। (जयो०१० १/१२) विभा (जयो० १/१३) महान्, उन्नत, समीचीन। * बढवारी। (समु० १/८) । * विशेष लक्षण युक्त, विलक्षण। विशिष्टगीतः (पुं०) प्रशस्त गीत, मनोरम गीत। विशिष्टजाति: (स्त्री०) उन्नत जाति। विशिष्टज्योतिः (स्त्री०) पवित्र ज्योति। विशिष्ट ज्ञानी (वि०) असामान्य ज्ञानी। विशिष्ट तपः (पुं०) अतिशय तप। - विशिष्तालः (पुं०) परमशोभन ताल-विशिष्टतां लातीति। विशिष्टदानं (नपुं०) सर्वोत्तम दान। विशिष्टदाता (वि०) प्रमुख देने वाला। विशिष्टधी (स्त्री०) प्रकृष्ट बुद्धि, महान बुद्धि। विशिष्टपुण्यबन्धः (पुं०) प्रशस्त शुभ बन्ध। (सम्य० ८४) विशिष्टप्रभा (स्त्री०) विशेष कान्ति। विशिष्टभावः (पुं०) अतिशय भाव। (जयो० ६/५७) विशिष्टमतिः (स्त्री०) उत्तम बुद्धि। विशिष्टयोगः (पुं०) परम योग। विशिष्टरलं (नपुं०) विलक्षण रत्न, उन्नत रत्न। विशिष्ट शब्दं (नपुं०) पक्षी कलरव। (जयो०वृ० १३/३) विशिष्टाद्वैतवादः (पुं०) रामानुज का एक सिद्धांत। विशिष्टि (वि०) विशेषता। लोको निन्दतु पूजतादुत ततस्ते का __विशिष्टः प्रभो? (मुनि० १४) विशीर्ण (भू०क०कृ०) [वि+ऋ+क्त] * खण्डित, त्रुटित, बाधित। * छिन्न-भिन्न हुआ, मुझाया हुआ। * संकुचित, सिकुड़ा हुआ। विशीर्णपर्णः (पुं०) नीम का वृक्ष। विशीर्णमूर्ति (स्त्री०) खण्डित मूर्ति। विशुद्ध (वि०) [वि+शुध्+क्त] * स्वच्छ, पवित्र, निर्मल, विमल। (जयो०७० ३/२४) * निर्दोष, दोष विमुक्त। * उन्नत, सर्वोत्तम, अतिशय। विशुद्धकामना (स्त्री०) उन्नत कामना। * प्रबुद्ध विचार। विशुद्धगात्रं (नपुं०) स्वच्छ शरीर। विशुद्धभावना (स्त्री०) निर्दोष भावना। विशद्धभोजनं (नपुं०) सात्त्विक भोजन। विशुद्धपाणी (स्त्री०) निर्दोष एड़ियां, चरणपृष्ठदेश। (जयो० ११/१७) विशुद्धमतिः (स्त्री०) निर्मल बुद्धि। * प्रकर्ष मति। विशुद्धयोगः (पुं०) सर्वोत्तम योग। विशुद्धरत्नत्रय (वि०) विशुद्ध रत्नत्रय युक्त, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप रत्नत्रय से युक्त। विशुद्धवृत्तं (नपुं०) विमल आचरण। 'विशुद्ध निर्दोषं विमलं च वृत्तमाचरणं यस्य' (जयो०० ३/२४) विशद्धाचरणं (नपुं०) विमल आचरण, निर्दोष आचरण। विशुद्धात्मन् (वि०) पवित्र आत्मावाला। विशुद्धाधार (वि०) अतिशय आधार युक्त। विशुद्धाश्रय (वि०) अच्छे आश्रय वाला। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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