________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विडशनं
(९७२)
वितान
-
* ठगा गया, छल किया गया।
वितंतुः (पुं०) अश्व, श्रेष्ठ जाति का घोड़ा। * कष्ट पहुंचाया गया।
वितरणं (नपुं०) पार जाना, अलग होना, छोड़ना। * अधम, निम्नता।
* वितरण करना, उपहार देना, दान, प्राभृत, भेंट। विडशनं (नपुं०) पुरीषभाषण। (जयो० २५/२१)
* तिलाञ्जलि देना, त्याग देना। विडारकः (पुं०) [विडाल+कन्, लस्य र:] बिलाब, बिल्ली। | वितरणचेष्टा (स्त्री०) त्याग प्रवृत्ति। (जयो०वृ० १२/११८) विडालः (पुं०) बिलाव, औतुन। (जयो० २३/५५)
वितर्कः (पुं०) [वि-त+अच्] युक्ति, तर्कसंगत कथन, विडालकः (पुं०) देखो ऊपर।
निश्चित विवेचना। (सम्ब० १४८) विडालजातः (पुं०) विलाब पुत्र। (जयो० २०/३०)
* विभङ्ग। (जयो०१० ३/१०) विडीजं (नपुं०) [वि+डी+क्त] पक्षियों की उड़ान।
* चिन्तन, समझ, विचार। 'किं करोमीति वितर्कमाप्त, विडुलः (पुं०) [विड्+कुलन्] बेंत।
(जयो०० २४/९०) विडूरज (नपुं०) [विज्र+जन्+ड] वैडूर्यमणि, नीलम।
* श्रुत ज्ञान, द्वादशांग रूप ज्ञान। सम्यक् रूप से ग्रहण विडोजस् (पुं०) [विट व्यापक अजो यस्य] इन्द्र।
किया गया विवेचन। विडोजस् देखो ऊपर।
विशेषेण विशिष्टं वा तर्कणं सम्यग्ग्रहणं वितर्कः श्रुतज्ञानम्।' वितंसः (पुं०) [वि+तंस्+घञ्] पिंजरा।
(जैन० १००) * रस्सी, श्रृंखला, सांकल।
* सन्देह, वस्तु में निर्णयात्मकता की कमी। * जाल।
वितर्ककारकः (पुं०) विवेचन का विषय। (जयो०वृ० १/२४) वितंडः (पुं०) [वितंड+टाप्] आक्षेप, छिद्रानुवेषण, दोषपूर्ण वितर्कगतः (पुं०) युक्ति युक्त, तर्कसंगत।
आलोचना, दार्शनिक कथन में निरर्थक तर्क-वितर्क। वितर्कणं (नपुं०) तर्क करना, विवेचन, निष्पादन। * चम्मच, सुवा।
वितर्कणा (स्त्री०) निरूपणा, विवेचना, व्याख्या, कथन। * गुगुल, धूप।
(वीरो०वृ० ३/६) वितत (भू०क०कृ०) [वि+तन्+क्त] * आयत, विशाल, वितर्कदृष्टिः (स्त्री०) विवेचन की दृष्टि। व्यापक, विस्तीर्ण, विस्तृत।
* संदेह की दृष्टि। * बिछाया हुआ, फैलाया हुआ।
वितर्कधरः (वि०) चिंतन युक्त। * निमग्न। (सुद० ९२)
वितर्कपात्रं (नपुं०) कल्पना पात्र। * चिन्तन शील। * सम्पन्न, निष्पन्न, कार्यान्वित।
वितर्कभावः (पुं०) विभङ्ग भाग। * विचार-परिणाम। * विस्तारित। (जयो० १३/४९)
वितर्कमतिः (स्त्री०) विचारशील बुद्धि। * आच्छादित, प्रच्छन्न, ढका हुआ।
वितर्कविधात्री (वि०) तर्क पैदा करने वाली। (जयो० ५/७४) विततः (पुं०) पटह शब्द, भेरी ध्वनि, सुघोष।
वितर्क विषयः (पुं०) अनुमान का विषय। (जयो० २/४९) विततिः (स्त्री०) [वि+तन्+क्तिन] * रेखा, पंक्ति। वितर्कसत्त्वं (नपुं०) न्यायशास्त्र। * परिमाण, संग्रह।
* वितर्कणा का विषय। (वीरो० ३/६) * गुल्म, लताझुण्ड।
वितर्दिः (स्त्री०) [वि+त+इन्] छज्जा, बरामदा। * विस्तार, प्रसार, फैलाव।
* चौकोतरा चबूतरा। वितथ (वि०) [वि+तन्+क्थन्] मिथ्या, झूठ, अलीक युक्त। वितलं (नपुं०) [विशेषेण तलम्] विशेष खण्ड, पृथ्वी का भाग। * निरर्थक, निष्प्रयोजन।
वितस्ता (स्त्री०) नदी। वितत्थ (वि०) [वितथ्यत्] मिथ्या, सारहीन, असत्य युक्त, वितस्ति: (स्त्री०) [वि+तस्+ति] बारह अंगुल का माप। दो निरर्थक।
__ पैर की दूरी-द्वाभ्यां पादाभ्यां वितस्तिः (जैन०ल० १०१) वितद्वः (स्त्री०) झेलम नदी।
वितान (वि०) फैलाना, विस्तार करना, प्रसार। वितनु (वि०) अनङ्ग, शरीर रहित। (जयो० ३/८८)
___ * चादर। (सुद० ११७)
For Private and Personal Use Only