________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विकथानुयोगः
विकसः
निधारणा
वचनपद्धतिर्विकथा' (जैन०ल० ९९६) 'विरुद्धा विनष्टा । विकलचरणं (नपुं०) अणुव्रतादि का अपूर्ण पालन। वा कथा विकथा, सा च स्त्रीकथादिलक्षणा' | विकलता (वि०) विच्छिन्नता। (जयो० २३/६०) (जैन०ल. ९९६)
०दुःखमय अवस्था। विकथानुयोगः (पुं०) कामोत्तेजक कथाओं का प्रयोग।
किन्त्वद्यापि न वेत्सि तां विकलतां तन्नासि मोक्तं क्षमः। विकथाप्रपञ्चः (पुं०) विकथाओं का विस्तार, स्त्रीकथा, (मुनि० १९) भक्तकथा, राजकथा, चोरकथा आदि का विस्तार।
विकलप्रत्यक्षः (पुं०) परिमित ज्ञान होना, द्रव्य, क्षेत्र, काल अवादि कृत्वा विकथाप्रपञ्चं,
और भाव की अपेक्षा परिमितज्ञान होना। कौत्कुच्यमौखर्यकटूक्तिकं च।
विकलविकल्प (वि०) विकल्प से दूर। (वीरो० १७/४६) कुतः कदाचित् परिषत्क्रमे तत्,
विकला (स्त्री०) निर्धन, दरिद्र (जयो०५/१०७) अपरिपूर्णा सम्प्रार्थ्यते नाथा मृषा क्रियेत।। (भक्ति० ४६)
__ (जयो० २७/६१) विकम्प (वि०) [विशेषेण कम्पो यस्य] अधिक कांपने वाला,
विकला (स्त्री०) [विगतः कर्ता यस्याः] कला का साठवां भाग। अथिर चित्त वाला, चंचल, चलायमान।
विकलादेशः (पुं०) अंशों की कल्पना, साध्य विशेष का विकरः (पुं०) [विकीर्यते हस्तपादादिकमनेन वि+क+अप]
निर्धारण। विकार, रोग, व्याधि, बीमारी।
नयाधीन। विकलादेशः नयाधीनः। (स०स १/६) विकरणं (नपुं०) [वि+कृ+ल्युट] गणद्योतकचिह्न।
'निरंशस्यापि गुणभेदादंशकल्पना विकलादेशः'। (त०वा० विकरणपरिणामः (पुं०) जलदानलक्षण। (जयो०वृ० १५/४८)
४/४२) विकराल (वि०) भयानक, डरावना, भयपूर्ण। (दयो० ४०)
०बोधजनक वाक्य। विकर्णः (पुं०) [विशिष्टौ कौँ यस्य] एक कुरुवंशी राजकुंवर।
विकलित (वि०) व्यतीत, समाप्त। (वीरो० ६/३२) विकर्तनः (पुं०) [विशेषेण कर्तनं यस्य] ०सूर्य।
विकल्पः (पुं०) [वि+क्लप्+घब] ०भेद, प्रकार, विविधता। ०मदार पादप। विकर्मन् (वि.) [विरुद्ध कर्म यस्य] अनुचित रीति से कार्य
भूल, अज्ञान, अशुद्धि। करने वाला।
०कूटयुक्ति, मायाचार। ०पापकर्मी, निषिद्धकार्य वाला।
शंका, संदेह, अनिश्चय। विकर्मक्रिया (स्त्री०) अवैध कार्य, अनीतिपूण आचरण।
संकोच, हर्ष-विषाद रूप परिणाम। विकर्मगुणः (पुं०) अनैतिक गुण, दुराचरण।
विकल्पजालः (पुं०) अनिश्चयता का जाल, संदेह का जाल। विकर्मपद्धति (स्त्री०) दुश्चरण रीति।
(मुनि० २६) विकर्मस्थ (वि०) निषिद्ध कार्यों में रत।
विकल्पनं (नपुं०) [वि+क्लृप्+ल्युट्] ०संदेह में पड़ना, अनिश्चय विकर्षः (पुं०) [वि कृष्+घञ्] रेखांकन।
होना। तीर, बाण।
अनिर्णय की स्थिति, विशेष कल्पना, विशेष विचार। विकर्षणं (नपुं०) [वि+कृष्+ल्युट] रेखांकन, फेंकना, विक्षेपण।
प्रसूनबाणः स कुतो न वायुर्वेदी त्रिवेदीति विकल्पनायुः विकल (वि०) [विगतः कलो यत्र] ०दूर। (वीरो० १७/४६) (जयो० १/७६) रहित, शून्य, अभाव युक्त। (सम्य० ४१)
विकल्पना (स्त्री०) विशेष कल्पना। (वीरो० १७/२७) ०अपरिपूर्ण। (जयो० २७/६१)
विकल्पधी (स्त्री०) निर्णय रूप बुद्धि। विच्छिन्न, त्रस्त, डरा हुआ, भयभीत।
विकल्पबुद्धि (स्त्री०) संकल्प-विकल्प युक्त बुद्धि। (समु०३३) ०क्षीण, मुाया।
विकल्मषः (वि०) [विगतः कल्मषो यस्य] निष्पाप, विक्षुब्ध, क्लान्त, थका हुआ, कमजोर।
कलंकरहित, निर्दोष। विशुद्ध, ०पूर्णशुद्ध। ०उत्साहहीन, अवसन्न, हतोत्साह।
विकस् (अक०) विकसित होना, खिलना, हर्षित होना। सदोष, अधूरा। (दयो० ८८)
(सुद०८७) मनो विकसति नियति रेषा (सुद० १२४) ०अपाहिज, विकलांग।
विकसः (पुं०) [वि+कस्+अच्] चन्द्र, शशि।
For Private and Personal Use Only