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वासक
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वास्तुविद्या
वासकं (नपुं०) वस्त्र, परिधान। वासकणी (स्त्री०) प्रतियोगिता स्थल। वासगत (वि०) निवास को प्राप्त हुआ। वासज (वि०) सुगन्धित। वासतः (पुं०) गधा, गर्दभ। वासताम्बूलं (नपुं०) सुगन्धित पान। वासतेय (वि०) निवास करने योग्य। वासनन् (नपुं०) [वास ल्युट] सगन्धित करना. धप देना।
निवास करना, रहना, स्थित होना, पात्र, आधार। वासना (स्त्री०) [वास्+णिच्+युच्+आप] कामेच्छा।
०मिथ्याविचार, कुभावना, कुअभिलाषा।
०आदर, रुचि। वासन्त (वि०) वसंतकालीन। वासभवनं (नपुं०) निवासस्थान, घर। वासमन्दिरं (नपुं०) निवासस्थल, घर, मकान। वासयष्टिः (पुं०) सुगन्धित चूर्ण। वासरः (पुं०) दिवस, दिन। (वीरो० ४/२५, वीरो० १/२१) वासरं (नपुं०) देखो ऊपर। वास सज्जा (स्त्री०) घर की शोभा। वासस् (नपुं०) [वस् आच्छादने असि णिच्च] वस्त्र परिधान,
पोशाक, कपड़ा। (जयो० १३/६४) वासस्थितिः (स्त्री०) वस्त्र स्वरूप। (सुद० ११७) वासिः (पुं०/स्त्री०) [वस्+इञ्] छेनी, बसूला।
निवास, आवास, गृह, घर। वासित (भू०क०कृ०) [वास्+क्त] सुगन्धित, सुवासित, गंध
युक्त हुआ, तर किया गया। •वस्त्र धारक, परिधानयुक्त।
विख्यात, प्रसिद्ध, विश्रुत। वासितं (नपुं०) कलरव, गुनगुन, कूजना। वासिनी (स्त्री०) निलयभूता, परिशोधकारिणी। (जयो०१३/५८) वासिष्ठ (वि०) वशिष्ट सम्बंधी। वासिष्ठः (पुं०) वशिष्ट ऋषि की संतान। वासुः (पुं०) [सर्वोऽत्र वसति-वस्+उण] ०आत्मा।
परमात्मा।
विश्वेश्वर। वासुकिः (पुं०) एक नागराज। वासुदेवः (पुं०) वसुदेव की संतान कृष्ण। वासुपूज्यः (पुं०) बारहवें तीर्थकर वासुपूज्य। (भक्ति० १९)
वासुरा (स्त्री०) रात्रि, रजनी, रात। 'रात्रिरपिवान वासुरा न
रात्रिर्जाता' (जयो० १५/५४) पृथ्वी, भूमि। स्त्री। 'वासुरा वारितायास्यान्निशाभूम्याश्च वासुरा' इति
विश्वलोचन' (जयो०वृ० १५/५४) । वासू (स्त्री०) [वास्+ऊ] तरुणी, कुमारी, युवती। वास्तव (वि०) [वस्तु+अण्] सचमुच, यथार्थ में, सारयुक्त,
समीचीन।
निर्धारित, निश्चित। वास्तवा (स्त्री०) [वास्तव+टाप्] प्रभात, उषा, प्रात:काल,
अरुणोदय। वास्तविक (वि०) यथार्थ रूप, सारगर्भित, समीचीन।
स्वाभाविक, सच्चा। वास्तविकार्थ (वि०) तत्त्वार्थ। (जयोवृ० ३/६७) वास्तिकं (नपुं०) अज समूह। वास्तव्य (वि०) वास्तविक, यथार्थ, सचमुच, समीचीन। नो
चेत्परिस्खलत्येव वास्तव्यादात्मवर्त्मन:' (वीरो० ११/३९)
०[वस्+तव्यत्] निवासी, रहने वाला, रहने योग्य। वास्तव्यः (पुं०) आवासी, निवासी। गृही, गेही। वास्तव्यं (नपुं०) निवास, गृह, आवास।
०वसति, निवास स्थल। वास्तु (पुं०/नपुं०) गृह स्थान। 'वास्तु अगारम्' वास्तु च गृहम्
(त०७० ७/२९) घर बनाने का स्थल, भवनभूखण्ड। निवासस्थान। (जयो० १/५२)
०भूमि, गृह, आवास (जयो० ३/७१) वास्तुकलाः (स्त्री०) भूकला। भूमि पर निर्मित प्रासाद, भवन,
मन्दिर आदि की कला। वास्तुकः (पुं०) बथुआ, एक प्रकार की हरी सब्जी।
(जयो० २८/३४) वास्तुनीतिनिपुणः (पुं०) गृह निर्माण कला में प्रवीण। वास्तुविद।
(जयो० ३/७१) वास्तुमुखं (नपुं०) गृहमुख। 'वास्तुगृहं मुखं प्रधानम्'
(जयो० २/९७) वास्तुयागः (पुं०) घर का आधार शिला, वास्तु पद्धति। वास्तुवासस्थानं (नपुं०) निवास स्थल। (जयो०वृ० ३/६३) वास्तुविधानं (नपुं०) भूखण्ड सम्बंधी नियम। वास्तुविद्या (स्त्री०) गृह विद्या, यह एक ऐसी विद्या है जो गृह
निर्माण के सभी अंशों का खुलासा करती है।
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