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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्म कथ्य पंचविधमाचारं चारंति चारयन्तीत्याचार्याः चतुर्दशविद्यास्थानपारगाः एकादशाङ्गधरा। पांच प्रकार के आचार का जो आचरण करते हैं, उनके अनुसार चलते हैं, वे आचार्य हैं। वे चौदह विद्या स्थानों में पारगामी एवं ग्यारह अंगों के धारी होते हैं। वे ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य से परिपूर्ण बौद्धिक एवं आध्यात्मिक विचारधारा से युक्त सूत्र का व्याख्यान करते हैं। स्वयं स्वाध्याय में लीन दूसरों को भी स्वाध्याय की ओर लगाते हैं। उनके श्रुत से प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग के विषय प्रकाश में आते हैं, जो श्रुत कहलाते हैं। वे श्रुत जिन वचन हैं, जिन्हें आगम, जिनवाणी, सरस्वती, आप्त वचन, आज्ञा, प्रज्ञापना, प्रवचन, समय, सिद्धांत आदि कहा जाता श्रुत के धारण करने वाले श्रुतधराचार्य कहलाते हैं। वे प्रबुद्ध होने से प्रबुद्धाचार्य, उत्तम अर्थ के ज्ञाता होने से सारस्वताचार्य आदि कहलाते हैं। उनकी रचनायें तीर्थ बन जाती हैं। क्योंकि वे तीर्थंकर की वाणी हैं जिन्हें आचार्य गुणधर, आचार्य धरसेन, आचार्य पुष्प दन्त, आचार्य भूतवलि, आचार्य मंछ, आचार्य नागहस्ती, आचार्य वज्रयस, आचार्य कुन्दकुन्द, आचार्य वट्टकेर, शिवार्य, स्वामी कार्तिकेय आदि प्राकृत मनीषियों के साथ-साथ संस्कृत के सूत्रकार, काव्यकार, कथाकार, पुराण काव्य प्रणेता आदि ने सारस्वत मूल्यों की स्थापना की। तावार्थसूत्र के सूत्रकर्ता उमास्वामी ने दस अध्यायों में वीतराग वाणी के समग्र पक्ष को प्रस्तुत कर दिया। आचार्य समन्तभद्र की भद्रता के आचार विचार आदि के साथ-साथ दार्शनिक मूल्यों की स्थापना के लिए आप्तमीमांसा जैसे ग्रंथ को लिखकर संस्कृत दार्शनिक साहित्य को पुष्ट किया। उन्होंने स्वयंभूस्त्रोत, स्तुतिविद्या, युक्त्यानुशासन, रत्नकरण्ड श्रावकाचार जैसे सारगर्भित ग्रन्थों की रचना की। वे कवि हृदय सारस्वताचार्य हैं जिन्होंने ई० सन द्वितीय शताब्दी में जीवसिद्धि, प्रमाणसिद्धि, तावविचार, कर्म आदि पर पर्याप्त प्रकाश डाला। आचार्य सिद्धासेन ने अनेकान्तसिद्धि के लिए सन्मतिसूत्र ग्रंथ की रचना की और उन्हीं ने कल्याण मंदिर स्त्रोत काव्य की रचना की। वे नय और प्रमाण की व्यापक दृष्टि को लिए हुए उक्त ग्रंथों को मूल्यवान् बनाते हैं। __ आचार्य पूज्यपाद को आचार्य देवनंदी भी कहा गया वे एक कुशल व्याकरणकार हैं। उन्होंने जैनेन्द्र व्याकरण की सूत्रबद्ध रचना की। उनकी तावार्थ सूत्र पर लिखी गई वृत्ति सर्वार्थसिद्धि के नाम से प्रसिद्ध है वे योग, समाधि, आदि के विषय को आधार बनाकर समाधितन्त्र एवं इष्टोपदेश की रचना करते हैं। पात्र केशरी का पात्र केशरी स्त्रोत भावपूर्ण है। आचार्य जोइन्दु प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश के काव्यकार हैं, उनका परमात्म प्रकाश (अपभ्रंश) योगसार, श्रावकाचार आध्यात्मसंदोह, सुहासिततंत्र जैसे संस्कृत रचनाएं भी प्रसिद्ध हैं। आचार्य मानतुंग का भक्तामर स्त्रोत जन-जन में प्रिय है। आचार्य विमल सूरि का प्राकृत का काव्य पउमचरियं रामायण के विकास में योगदान प्रदान करता है। आचार्य रविसेन ने भी राम से संबंधित पद्म चरित्र नामक ग्रंथ की रचना की, जो संस्कृत में सर्वबद्ध है। आचार्य जहानदीना वरांगचरित्र भी चरित्रकाव्य की परंपरा का सन्दरतम् अलंकत ग्रन्थ हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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