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मोक्षधामः
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मोदनिधि
मोक्षधामः (पुं०) मुक्ति स्थान।
०व्यजनशील। (जयो०वृ० २१/२७) सिद्धशिला।
०परममुक्ति, छुटकारा। मोक्षपथः (पुं०) मुक्तिमार्ग।
मोचन (वि०) छूटने वाला, स्वतंत्र होने वाला। मोक्षपुरः (पुं०) अमृत धाम। (जयोवृ० १९/३१)
मोचनं (नपुं०) समाप्त करना। (सुद० १०२) छोड़ना, मुक्त मोक्षपुरुषार्थत्व (वि०) मोक्ष पुरुषाधूता। (जयो० १/२४)
करना। मोक्षप्रदा (स्त्री०) मुक्तिदायिनी। (जयो० २/३८)
मोक्ष, मुक्ति । मोक्षप्रदायक (वि०) मोक्ष प्रदान करने वाला।
त्यागना, उत्सर्जन करना। चार पुरुषार्थों में अन्तिम मोक्ष पुरुषार्थ की प्रधानता। मोचनपट्टकः (पुं०) छन्ना, पानी छानने का छन्ना। मोक्षफलं (नपुं०) मुक्तिफल।
मोचयित (वि०) छुड़ाने वाला, स्वतंत्र करने वाला। मोक्षभावः (पुं०) मुक्ति की भावना।
मोचाटः (पुं०) गूदा, फल। सिद्धभाव।
मोटकः (पुं०) बटी, गोली। मोक्षमार्गः (पुं०) मुक्ति पथ, परम धाम। (जयो० २/६८)
मोट्य (सक०) मोटी बनाना, हस्ट-पुष्ट करना। स्वरोटिका दर्शन, ज्ञान और चारित्र का होना।।
__मोटयितुं हि शिक्षते। (वीरो० ९/९) सिद्धिपथ। श्रद्धानाधिगमोपेक्षाः शुद्धस्य स्वात्मनो हि याः।
मोटी (स्त्री०) अतिविशाल, विपुल, व्यापक, विस्तृत, अधिक
(सम्य० ४६) मां मानमटतीति मोटी। (जयो० ६/३) सम्यक्त्वज्ञानवृत्तात्मा मोक्षमार्गः स निश्चयः।। (सम्य०
मोतिया (स्त्री०) पुष्प विशेष। (वीरो० १३/४) ८३)
मोदः (पुं०) [मुद्+घञ्] हर्ष, आनन्द, खुशी। 'किमु संपज्जदि णिव्वाणं देवासुर-मणुय-राय--विहवेहिं।
सम्भवतान्मोदो मोदके परिभक्षिते' (वीरो०८/१) जीवस्स चरित्तादो दंसण-णाणप्पहाणादो।। (सम्य०८४)
०प्रमोद-भूयात्कस्य न मोदायेति वदन् श्रेष्टिसत्तमः। (सुद० मोक्षलणं (नपुं०) मोक्षस्वरूप। (जयो० १/९५)
३/४७) मोक्षसाधनं (नपुं०) मोक्षमार्ग, दर्शन, ज्ञान और चारित्र की
०लाडला, प्रिय। (सम्य० ६८) ___एकता।
०अनुपम उल्लास। जिनप परियामो मोदं तव मुखभासा। मोक्षमुखं (नपुं०) अतीन्द्रिय सुख, परमार्थ सुख, परमानन्द।
(सुद०७४) मोक्षाभिलाषी (वि०) मुमुक्षु। (भक्ति० ५)
मोककर (वि०) प्रियता को प्रदान करने वाले। परा तु तं मोक्षोपायः (पुं०) मोक्ष के साधन। दर्शन, ज्ञान और चारित्र
मोदकरं विचाया (सम्य० ६८) की एकता, रत्नत्रयात्मक साधन।
मोदकः (पुं०) लड्डू, मिष्ठान्न। (जयो० ३/६०, सुद० १२६) मोंगरा (स्त्री०) पुष्प। (वीरो०१३/४)
मोदकास्वादन (जयो० ४/५३) ०मोंगरा जाति के पुष्प।
मोदकं (नपुं०) देखो ऊपर। मोघ (वि०) [मुह+घ+अच्] व्यर्थ, निष्फल, लाभरहित,
मोदक (वि०) प्रिय; सुहावना। (समु० १/५) असफल।
मोदकास्वादनं (नपुं०) मिष्ठान्न का स्वाद। (जयो०१० ४/५१) निरुद्देश्य, निष्प्रयोजन।
मोदकोक्त (वि०) मोदक रूप में कथित, प्रसन्नत युक्त कहा ०परित्यक्त।
गया। (जयो० १२/११६) मोघः (पुं०) बाड़, घेरा, परिधि।
मोदनं (नपुं०) [मुद्+ल्युट्] हर्ष। मोघं (नपुं०) व्यर्थ, बिना प्रयोजन के।
०आनन्द, मोघोलिः (स्त्री०) बाड़, नाकाबन्दी।
कल्याण। मोचः (पुं०) [मुच्+अच्] कदली, केला। (जयो० ११/२०) ०प्रसन्नता। (जयो० १२/११५) मोचकः (पुं०) शिग्रवृक्ष, कदलीतरु। मोचकः कदलीतरो ०प्रहर्षण। (जयो० १०/९६)
तत्प्रसूनेऽपि शिग्र च निर्माचकविरागिणो इति विश्वलोचनः। | मोदनिधि (स्त्री०) हर्षातिरेक, प्रसन्नता का भण्डार। (समु० (जयो० २१/२७)
६/१५)
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