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महाशुक्रः
८३०
महीबला
स
महाशुक्रः (पुं०) दसवां स्वर्ग। (वीरो० ११/१६)
महिरः (पुं०) [मह+इलच्, तस्य रत्वम्] सूर्य, दिनकर। महाशुक्ला (स्त्री०) सरस्वती, भारती।
महिला (स्त्री०) [मह+इलच्+टाप्] स्त्री जाति। नारी। पृथ्वी महाशुभ्रं (नपुं०) रजत, चांदी।
को लाभ पहुंचाने वाली। महाश्वेता (स्त्री०) सरस्वती, भारती।
महिषः (पुं०) भैंसा। (वीरो० १/३१) महासंक्रान्ति (स्त्री०) मकर संक्रान्ति।
महिषघातिनी (स्त्री०) दुर्गा। महासती (स्त्री०) साध्वियों में अग्रणी, महाव्रतधारण करने महिमथनी (स्त्री०) दुर्गा। वाली सती।
महिषि (स्त्री०) [महिष+ङीष] भैंस। (सुद० ४/२६) महासत्ता (स्त्री०) समस्त पदार्थ में व्याप्त सत्ता, ०असीम
राजरानी। अस्तित्व। प्रभुत्व, विशालता।
०पटरानी। (सुद० १/२२, वीरो० ३/२४) महासत्त्वः (पुं०) कुबेर।
०पट्टराज्ञी। (जयो० ११/८२) (समु० ६/४३) महासिद्धिः (स्त्री०) विशेष सिद्धि
महिषी देखो ऊपर। महासुखं (नपुं०) परम सुख।
महिषी (स्त्री०) सेविका, दासी। महास्कंधः (पुं०) उष्ट्र, ऊँट।
०व्यभिचारिणी स्त्री। महास्थली (स्त्री०) पृथ्वी, भूमि।
महिषीचरी (स्त्री०) रानी (सुद० १३३) महास्थानं (नपुं०) विशेष स्थान, परम पद।
महिषीसनायता (वि०) पटरानी युक्त। (दयो० ४) महाहिमवन् (पुं०) पूर्व समुद्र से पश्चिम समुद्र तक लम्बा
महिष्मत् (वि०) [महिष+मतुप्] बहुत सी भैंसें रखने वाला।
मही (स्त्री०) [मह्+अच्+ङीष्] भूमि, पृथ्वी, धरणी, धरा। पर्वत। (त०सू० ३/११)
स्थान। (जयो० ९/१) महि (स्त्री०) भूमि, धरणी। 'महि शब्दो ह्रस्वेकारान्तोऽपि
मही, छांछ। (जयोवृ० १०/१५) कविभिः सम्मतोऽस्ति धरिणि शब्दवत्। (जयो० २५/७४)
०भूसम्पत्ति, भूवैभव। महिका (स्त्री०) [मह्+क्वुन्+टाप्] ०कोहरा, धुंध।
महीकंपः (पुं०) भूकम्प, भूचाल। महित (भू०क०कृ०) [मह+क्त] ०पूजित। (जयो० २८/८)
महीक्षित् (वि०) पृथ्वीदर्शक। (जयो०१०/५६) ०सम्मानित, श्रद्धेय।
महीक्षित् (पुं०) राजा, नृप। ०पूजनीय, अर्चनीय, आदरणीय।
महीज (पुं०) वृक्ष, तरु, पादप। महिता (स्त्री०) [मह्+क्त+टाप्] पूजनीया, माननीया पूज्या
मंगलगृह। वसुधा महिला तावद्युक्ता नवसुधान्वयैः (जयो० ३/७८)
महीजं (नपुं०) अदरक। महामान्या। विरम विरम भो स्वामिनि त्वं महितापि
महीतलं (नपुं०) धरातल, भूभाग। जनेन।। (सुद० ८७)
महीदानं (नपुं०) भूदान। महिमन् (पुं०) [महत्+इमनिच्] यश, गौरव, प्रतिष्ठा, कीर्ति।
महीधरः (पुं०) पर्वत, पहाड़। महिमहित (वि०) पृथ्वी पर पूजित, भू भाग पर पूजनीय।
महीध्रः (पुं०) पर्वत, गिरि। (जयो० ५/५३)
महीनाथः (पुं०) नृप, राजा। महिमा (स्त्री०) यश, गौरव। (सुद० १०९) महाशरीर विधान,
महीपः (पुं०) नृप, राजा। (जयो० १/२४) नरनाथ। (जयो० महत्त्व (जयो० ९/८८)
९/४०) (सुद० ११२) महिमान (वि०) महिमा युक्त, प्रतिष्ठित। (सुद० ३/६) महिभुज् (पुं०) नरनाथ, नरपति, राजा, महाराज। (जयो०९/१) महिमानः (पुं०) पृथ्वी परिमाण। तेजस्ते जयतादपि मित्रं (समु० ४/३) विजयनाज्जयनामहीभुजः समभवत्समरेऽपि महिमा तव महिमानविचित्र:। (जयो० ९/८८)
महीरुजः। (जयो० ९/१) महिभुजः शशिनाऽसौ प्रतिकारिणी महिमाविषयक (वि०) गौरव युक्त। (जयो० २६/५९)
सजः। (वीरो० ६/४०) महिमोहविस्मयी (वि०) पृथ्वी पर आश्चर्यजनक विचार वाला। | महीबला (स्त्री०) चौहानवंशी कीर्तिपाल की रानी। (वीरो०
'महिम्नि विषये य ऊहोय विचारस्तेन। (जयो० २६/५९) १५/५१)
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