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मलमूत्रकुण्डः
८२४
मल्ल
मलमूत्रकुण्डः (पुं०) मलस्थान। (जयो० १५/९३)
मलिनत्व (वि०) मलिनता, अपवित्रता। (जयो० २३/४१) __०मलय चन्दन।
मलिना (स्त्री०) रजस्वला स्त्री। मलमासः (पुं०) लौंद का महिना।
मलिनिमन् (पुं०) [मलिन्+इमनिच्] गंदगी, अपवित्रता, मलयः (पुं०) मलय पर्वत।
अशुद्धता। मलयगिरिः (पुं०) मलयाचल पर्वत। (सुद० ७१)
०कालिमा, कालापन। मलयगंधः (पुं०) चंदन की सुरभि।
मलिनी (स्त्री०) रजस्वला स्त्री। मलयज (वि०) चंदन से उत्पन्न।
मलिम्लुचः (पुं०) [मलिन्+म्लुच्क ] लुटेरा, चोर। मलयपर्वतः (पुं०) मलयगिरि।
०राक्षस। मलयरजस् (पुं०) चंदन की रज, चंदन चूरी।
डांस, पिस्सू। मलयवातः (पुं०) चंदन की गंध से परिपूर्ण हवा, मलयाचल
०खटमल। की पवन।
०वायु, पवन। मलयसमीरः (पुं०) मलयाचल की पवन।
०अग्नि। मलयाचल (पुं०) मलयगिरि। चंदनाद्रि।
मलीमस (वि०) [मल ईमसच] मैला, अपवित्र, गन्दा। मलयादिः (पुं०) मलयगिरि।
अस्वच्छ, मलिन।
कलुषित, कलंकिता मलयानिलः (पुं०) मलयगिरि की हवा। मलयोत्पन्नः (पुं०) चंदन लकड़ी। (जयो० १३/७९)
अपराध, दोष। मलयोद्भव (नपुं०) चंदन की लकड़ी।
दुष्ट, नीच, तुच्छ।
अव्यवहारिक, सदोष, मल में जो दुष्कर्म जनित किया मलविसर्जनं (नपुं०) मल परित्याग।
है। (मुनि० १८) मलस्रावः (पुं०) मलविसर्जना (सुद० १०२)
०काला। मलाका (स्त्री०) [मलेन मनोमालिन्येन अकति कुटिलं गच्छति
मलीमसः (पुं०) अयस्क, लोहा। मल+अक्+अच्+टाप्] ०हथिनी, दूती।
हरा कसीस। ०सखी, ०कामुक स्त्री।
मलेच्छखण्डः (पुं०) म्लेच्छखण्ड चक्रपाणे: समम्लेच्छा आयाता मलाड़ी (वि०) मलिन अंगों वाली। 'मलमेवाङ्ग यस्य स
मलेच्छखण्डतः। (हित० २७) मलाङ्गी भवति' (जयो० ५/८६)
मलोत्कर (वि०) मल समूह। मलापहः (वि०) मल दूर करने वाला। मलं किट्टादि अपहरतीति |
मलोत्सर्गकर (वि०) पापमल विसर्जित करने वाला। (वीरो० मलापहः (जयो० १९/९) मलायपहरकं (नपुं०) परिशोधन (जयोवृ० २/८१) दोषनाशन
| मलोत्सर्जनं (नपुं०) पुरीष परित्याग। (जयो० ३/१०)
मल/पाप परित्यज। (जयोवृ०१९/४) 'मलस्य पुरीषस्य मलिका (स्त्री०) राजरानी, राजी। (जयो०० ९/७७)
पापस्योत्सर्जनं परित्यजनम्। (जयोवृ० १९/९) मलिन (वि०) [मल+इनन्] मैला, गंदा, म्लान। (जयो०७० | मलौषधिः (वि०) मल नाशक दवा। मलौषधि नामक ऋद्धि, ६/११)
जिसके प्रभाव से जिह्वा, ओष्ठ, नासिका और श्रोत्रादि के घिनौना, अपवित्र, अशुद्ध। (सुद० ५/३)
मल को नाश किया जाता है। ०कलुषित, कलंकित, आविल। (वीरो० १/१०)
मल्ल् (सक०) थामना, ग्रहण करना। काला, अन्धकारमय।
मल्ल (वि०) [मल्ल्+अच्] बलिष्ठ, शक्तिमान। पापी, दुष्ट, नीच, समल। (जयो०वृ० १/३८)
०अच्छा, उत्कृष्ट। मलिनं (नपुं०) पाप, दोष अपराध।
मल (जयो० १६/७) हृद्रेतकृत्सम्भवतीव भल्लः परत्रयोमट्ठा।
दीपशिखांशमल्लः। (जयो० १६/७) 'शरीरैकदेशवर्ती मल्लः' ०सोहागा।
(जैन०ल० ३९४)
१८/२८)
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