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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मघवनः ८०३ मङ्गलपूर्तिज उल्लू। ०पेचक। मघवनः (पुं०) इन्द्र। मघा (स्त्री०) [महाघ, हस्य घत्वम् टाप्] मघा नक्षत्र। मघाभवः (पुं०) शुक्रग्रह। मघोन (पुं०) इन्द्र। (जयो० २७/ ) मघोनि/मघोनी (स्त्री०) इन्द्राणी-शचि। (जयो० ५/८९) मङ्क् (सक०) जाना, पहुंचन्म। ०सजाना, अलंकृत करना। मङ्कमकनाशक (वि०) पाप नाशक-लब्ध्वा हि मङ्कमकनाशक एषकश्च। (सुद० १३६) मङ्किलः (पुं०) [मङ्क+इलच्] दावाग्नि, अरण्याग्नि। मङ्करः (पुं०) [मक उरच्] दर्पण, शीशा। मङ्क्षणं (नपुं०) पिंडलियों के रक्षा कवच। मक्षु (अव्य०) [मङ्ख+उन्] शीघ्र, जल्दी से, तुरंत। अत्यंत, बहुत, विशाला मङ्गः (पुं०) [मंल+अच्] नृप चरण, एक औषधि। मङ्ग (सक०) जाना, पहुंचना। मङ्गः (पुं०) [म अच्] नाव का अग्र भाग। उमंग। (सुद० १३६) मङ्गल (वि०) [मग्+अलच्] ०कल्याण, शुभ, अच्छा, मलं गालयति विनाशयति दहति हन्ति विशोधयति विध्वसंयतीति मंगलम्। (धव० १/३१) जो सुख को लाता, मल को गलाता। शास्त्रपारगमन को प्राप्त कराने वाला। 'म' नाम मल का है, जो पाप रूप मल को नष्ट करता वह मंगल है। मङ्गलकरणं (नपुं०) मंगल कार्य वाली। मङ्गलकर्मन् (नपुं०) शुभकर्म। कल्याणकारी कर्म। (दयो०६९) मङ्गलकलश: (पुं०) उज्ज्वलकुम्भ, शुभ घट। (जयो०वृ० १६/१) मङ्गलकारक (वि०) कल्याणकारी। मङ्गलकारिन् (वि०) शुभकारी। स्मरेदिदानी परमात्मनस्तु सदैव यन्मङ्गल कारिवस्तु। (सुद० १३०) मङ्गलकारिणी (स्त्री०) आनंद उत्पन्न करने वाली। शुभदायिनी। (दयो०११२) मङ्गलकारिवस्तु (नपुं०) शुभकारक वस्तु। (सुद० १३०) मङ्गलकार्य (नपुं०) शुभ अवसर, मांगलिक कार्य। मङ्गलकुम्भः (पुं०) मङ्गलकलश, उज्ज्वलकलश, शुभ कार्य के प्रसंग पर स्थापित किया जाने वाला हल्दी, सुपारी, सरसों, अक्षत एवं शुद्ध जल से युक्त नारिकेल एवं वस्त्र से सुसज्जित अशोक पत्र रूप पंखुरियों से युक्त होता है। मङ्गलक्षौमं (नपुं०) मांगलिक वस्त्र, स्वच्छ वस्त्र। मङ्गलगीतं (नपुं०) भद्रगीत, सौख्य से परिपूर्ण गान। (जयो० ६/१२८) शुभ गीत।। मङ्गलगोत्रं (नपुं०) शुभ गोत्र। मङ्गलग्रहं (नपुं०) शुभग्रह, उचित ग्रह। मङ्गलचैत्यं (नपुं०) अर्हत्, चैत्य। ०कल्याणप्रद भगवद् देवालय। मंगलकारी प्रतिमा का स्थान। मङ्गलछायः (पुं०) प्लक्षतरु। मङ्गलतूर्य (नपुं०) उत्सव बिगुल, शंखनाद, उत्तम उद्घोष। मङ्गलदीपकः (पुं०) शुभकारी दीप। (सुद०३/११) ०देदीप्यान दीपा मङ्गल-दीप-कल्पः (पुं०) पुण्य प्रदायी दीप स्थापन। मुदिन्दिरा मङ्गलदीपकल्पः समस्ति मस्तिष्कवतां सुजल्पः। (सुद० १/१२) मङ्गलपात्रं (नपुं०) उत्तम भाजन, शुभसूचक भाण्ड। मङ्गलपाठकः (पुं०) बन्दीजन, चारण, भाट। मङ्गलपूर्तिज (वि०) भला करने वाला। भवाननुज्ञा प्रकरोत्विदा नीमहन् स वै मङ्गलपूर्तिजानि। (समु० ३/४) श्रेष्ठ। हितकर, संतोषजनक, इष्ट। समृद्ध, उन्नत। उत्तम, यथेष्ठ। (जयो० १/५८) मङ्गलं (नपुं०) कल्याण रूपता भौमस्वभावता। (जयो०५/५१) शूरा बुधा वा कवयो गिरीश्वराः सर्वेऽप्यमी मङ्गलतामीप्सवः। (जयो० ५/९१) ०शुभत्व, कल्याण कारित्व। प्रसन्नता, सौभाग्य, आनन्द। सुखी, हर्ष। ०शुभकामना। ०शुभावसर, उत्सव। अच्छा आचरण, इष्ट कामना। गालयदि विणासयदे घादेदि दहेदि हंति सोधयदे। विहंसेदि मलाई जम्हा तम्हा य मंगलं भणिद। (ति०प०१/९) ०पूत, पवित्र, पुण्य, प्रशस्त, शिव, शुभ, कल्याण, ०भद्र एवं सौख्यादि मंगल के नाम है। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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