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भ्रष्टधर्म
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०क्षीण, ओझल, नष्ट।
मुर्शाया हुआ, मलीन। भ्रष्टधर्म (वि०) क्षीण धर्म वाला। भ्रस्ज् (सक०) तलना, भूनना, सेकना। भ्राज् (अक०) चमकना, प्रकाशित होना।
जगमगाना, कान्ति युक्त होना। (जयो० ५/४७) भ्राजः (पुं०) [भ्राज्+क] सूर्य का एक भेद। भ्राजक (वि०) [भ्राज्+ण्वुल्] चमकाने वाला, देदीप्यमान। भ्राजकं (नपुं०) [भ्राज्+अथुच्] ०कान्ति, प्रकाश, आभा।
उज्जवलता, सौंदर्य। भ्राजिन् (वि०) [भ्राज्+णिनि] चमकने वाला, जगमगाने
वाला। भ्राजिष्णु (वि०) [भ्राज्+इणुवच्] उज्ज्वल, दीप्तिमान। भ्राजिष्णुः (पुं०) शिव, विष्णु। भ्रातृ (पुं०) [भ्राज्+तृच्] भाई। सहोदर। (सुद० ९७) (जयो०
८५८९, ११/६८)
घनिष्ट मित्र, सगा सम्बंधी। भ्रातृजः (पुं०) भतीजा, भाई का लड़का। भ्रातृजा (स्त्री०) भतीजी, भाई की लड़की। भ्रातृजाया (स्त्री०) भौजाई, भाभी, भाई की पत्नी। भ्रातृद्वितीया (स्त्री०) कार्तिक शुक्ला द्वितीया। बहन के घर
भाई को आमंत्रित करने की तिथि। भ्रान्तृपुत्रः (पुं०) भतीजा। भ्रातृश्वसुरः (पुं०) जेठ, पति का बड़ा भाई। भ्रांतृव्यः (पुं०) भतीजा। भ्रान्त (वि०) [भ्रम+क्त] ०भटका हुआ, भूला हुआ।
कुपथगामी। ०अपने विचारों में दृढ़ नहीं रहने वाला।
इधर-उधर घूमने वाला, चक्कर खाया हुआ। भ्रान्तं (नपुं०) [भ्रम्+क्तिन्] ०भूल, त्रुटि, गलती, भ्रम, संदेह।
अनिश्चय, आशंका।
घबराहट, उद्विग्नता। भ्रान्तिमत् (वि०) [भ्रान्ति+मतुप्] घूमने वाला, भटने वाला।
०संदेहयुक्त, भ्रमित, शंकित। (वीरो० १२/१३) भ्रान्तिमदलंकारः (पुं०) भ्रान्तिमान अलंकार। जिसमें दो वस्तुओं
को पारस्परिक समानता के कारण एक वस्तु को भूल से अन्य वस्तु समझ लेना। भ्रान्तिमानन्यसंवित्ततुल्यदर्शने। (जयो० २४/१८) भ्रमन्ति ये यं परितो मदोत्कटाः कटाः श्रयन्ते ननु चेतनात्मनाम्। मनांसि सेवार्थममुष्य पर्वतावतार उर्वीध्रपतेरिति भ्रमम्।
भ्रान्तिमानालंकारः (पुं०) भ्रान्तिमान अलंकार (वीरो० २/१३)
(जयो० १३४/६३) (जयो०८८) धान्यस्थली पालक-बालिकानां, गीतश्रुतेर्निश्चलतां दधानाः चित्तेऽध्वनीनस्य विलेप्यशङ्का,
मुपादयन्तीह कुरङ्गरङ्काः।। (वीरो० २/१३) भ्रान्तिहेतुकोत्प्रेक्षा (स्त्री०) भ्रान्तिमान अलंकार के साथ उत्प्रेक्षा।
समुलसन्नीलमणिप्रभाभिः, समङ्किते यद्वरणेऽथवा भीः। राहोरनेनैव रविस्तु साचि श्रयत्युदीचीमथवाऽप्यवाचीम्।।
(जयो० २/२९) भ्रामः (पुं०) [भ्रम्+अण्] घूमना। हिंडन, परिभ्रमण।
आसक्ति, मूर्छा, मोह।
त्रुटि, अशुद्धि, गलती। भ्रामक (वि०) [भ्रम्+णिच्+ण्वुल्] घुमाने वाला, आवर्तित
करने वाला। भ्रामकः (पुं०) चुम्बक पत्थर। भ्रामर (वि०) भ्रमर सम्बंधी। भ्रामरं (नपुं०) चुम्बक पत्थर। ०चक्कर काटना, घूमना। भ्रामरी (स्त्री०) भ्रमर जैसी वृत्ति, मुनिचर्या। (जयो० २३/४६) भ्रामरीवृत्तिः (स्त्री०) मुनिचर्या की एक पद्धत्ति, जिसमें मुनि
आहार के समय जो वृत्ति अपनाता है वह भ्रमर के समान
होती है। (मुनि० १०) भ्राश् (अक०) चमकना, सुशोभित होना। भ्राष्ट्रः (पुं०) [भ्रस्+ष्ट्रन्] भाड भडभूजा, कड़ाही। (वीरो०
१२/१८)
प्रकाश, चमक, अग्नि। भ्राष्ट्रपदं (नपुं०) भाडस दृश। 'ब्रह्माण्डकं भाष्ट्रपदेन शप्तम्। ___(वीरो० १२/१८) भ्रुकुटिः (स्त्री०) भौंह, अक्षि चितवन। भ्रूड् (सक०) संचय करना, एकत्रित करना। भ्रू (स्त्री०) भौंह। भ्रूभङ्ग (नपुं०) भ्रुकुटिविकृति, चलायमान चितवन। भ्रूणः (पुं०) प्रार्य, कलल।
०बच्चा शिशु। स्त्री के गर्भ में पलने वाला शिशु, जो
कलल रूप है, अविकसित है। धृयुगः (पुं०) धनुषाकार। (जयो० ) भ्रेज (अक०) चमकना, प्रकाशित होना।
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