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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रारम्भक्रिया प्रारम्भक्रिया ( स्त्री०) छेदन-भेदन आदि की क्रिया, हिंसक प्रवृत्ति, प्राणिघात की प्रक्रिया। प्रारम्भणं (नपुं०) [प्र+आ+रभू + ल्युट् ] आरंभ करना, शुरु करना। प्रारोह: (पुं० ) [प्ररोह+ण] अंकुर, पल्लव, किसलय । प्रार्णं (नपुं० ) [ प्रकृष्टमृणम् ] मूल ऋण, प्रधान | प्रार्थक ( वि० ) [ प्र+अर्थ+ ण्वुल् ] ० प्रार्थना करने वाला, स्तुतिकर्ता । • अनुरोधक, याचक, इच्छुक । प्रार्थकः (नपुं०) [प्र+अर्थ+ ल्युट् ] ०याचना, अनुरोध, निवेदन । ० कामना, इच्छा। ० विनती, स्तुति | प्रार्थना ( स्त्री० ) अर्चना, स्तुति । ० अनुनय, विनय, अनुरोध । ( सुद० १३४ ) प्रार्थकीकृत् (वि०) प्रार्थना किया गया। (जयो०वृ० ४ / ८ ) प्रार्थय् (सक०) प्रार्थना करना, अनुरोध करना। प्रार्थयेत् (जयो० २/१२२) प्रार्थयन्ती ( वर्त० कृ० ) अनुनय करती हुई । ( सुद० ९४) प्रार्थिका ( स्त्री०) प्रार्थना, स्तुति। (मुनि० २८ ) प्रार्थित (वि० ) [ प्र+अर्थ+क्त] • अनुरोधित, व्याचित । ० आमन्त्रित, विनम्रता युक्त । ० समीरित। (जयो० १२ / ५१ ) प्रार्थित (भू०क० कृ० ) अनुरोध किया गया। ० पूछा गया, आवेदन किया गया। ० अभिलषित, इच्छित । ० आक्रान्त, शत्रु द्वारा विरोध किया गया। प्रार्थिन् (वि० ) [ प्र+अर्थ+ णिनि] प्रार्थना करने वाला, अनुरोध करने वाला । ० याचित, अनुरोधित। प्रालम्ब (वि० ) [ प्र + आ + लम्ब्+अच्] झूलता हुआ, लटकता हुआ। प्रालम्ब: (पुं०) मोतियों से युक्त हार, आभूषण । प्रालम्ब (नपुं०) वक्षस्थल पर लटकने वाला हार । प्रालम्बकं (नपुं०) कंठाहार | प्रालम्बिका ( स्त्री० ) [ प्रालम्ब+कन्+टाप्] सोने का हार, स्वर्ण हार | प्रालेयं (नपुं० ) [ प्र+ली+ण्यत्] ओस, हिम, कुहरा । प्रालेयकल्पः (पुं०) तुषारपात, हिमपात (सुद० ८६ ) ७४१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रालेयरश्मि (स्त्री०) शशि, चन्द्रमा । प्रालेयलेशः (पुं०) हिम, ओला । प्रालेयांशुः (पुं०) चंद्रमा । प्रालेयादि (पुं०) हिमालय । प्रावट: (पुं०) [प्र+अव्+अट्+अच्] जव, जौ । प्रावणं (नपुं० ) [ प्र+आ+वन्+घ] ०खुरपा, कुदाल, फावड़ा। ० उत्तरीयवस्त्र | प्रावृष् प्रावचनं (नपुं०) श्रुतधर्म, तीर्थ, मार्ग, प्रवचन सम्बंधी । ० जीवादि तत्त्व बोधक वचन। प्रावरणं (नपुं० ) [ प्र+आ+ वृ + ल्युट् ] ०ओढ़नी, चादर, दुपट्टा । ०कोट, परकोटा-' ततः पुनः प्रावरणं वदामि' (वीरो० १३/६) ० परिधि, ०घेरा, प्राकार । प्रावरणीयं (नपुं०) [प्र+आ+ वृ + अनीयर् ] उत्तरीय वस्त्र, दुपट्टा, ओढ़नी । प्रावारः (पुं०) [प्र+आ+वृ+घञ्] उत्तरीय वस्त्र, ओढ़नी, चोंगा। प्रावारकः (पुं०) [प्रावार+कन् ] उत्तरीय वस्त्र, दुपट्टा । प्रावारकीटः (पुं०) दीमक । प्रावारिक (वि०) उत्तरीय वस्त्र निर्माता। प्रावर्तत (भू०) बभूव, हुआ। (जयो० १/११) प्रावर्तित (वि०) प्राभृतदोष, उपहार दोष । प्रावास (वि० ) [ प्रवास्+अण्] यात्रा सम्बंधी, यात्रा किए जाने योग्य। प्रावासिक (वि० ) [ प्रवास + ठक् ] यात्रा के लिए उपयुक्त। प्राविश ( सक० ) [ प्र + विश्] आना, पहुंचना | (जयो०वृ० १/७४) ० प्रच्छन्न, ढका हुआ। प्रावृतः (पुं०) चादर ओढ़नी । प्रावीण्य (वि०) चतुराई, कुशलता। ०प्रवीणता, दक्षता । प्रावृट ( स्त्री०) वर्षायोग (समु० ५ / १६, वीरो० ४/१०) प्रावृत (भू०क० कृ० ) [ प्र + आ + वृ+क्त] ०घिरा हुआ, आवरण युक्त। प्रावृतं (नपुं० ) ०परदा, घूंघट, बुरका । प्रावृतिः (स्त्री० ) [ प्र + आ + वृ + क्तिन्] ०घेरा, बाड़, बाधा, For Private and Personal Use Only आवरण | ०परदा । प्रावृत्तिक ( वि० ) [ प्रवृत्ति + ठक् ] गौण, अप्रधान | प्रावृत्तिकः (पुं०) दूत, संदेशवाहक । प्रावृष् (स्त्री०) [प्र+आ+ वृष् + क्विप्] वर्षाऋतु, वर्षायोग। (सुद० ७८) (जयो० २२/१२)
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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