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प्रारम्भक्रिया
प्रारम्भक्रिया ( स्त्री०) छेदन-भेदन आदि की क्रिया, हिंसक प्रवृत्ति, प्राणिघात की प्रक्रिया।
प्रारम्भणं (नपुं०) [प्र+आ+रभू + ल्युट् ] आरंभ करना, शुरु
करना।
प्रारोह: (पुं० ) [प्ररोह+ण] अंकुर, पल्लव, किसलय । प्रार्णं (नपुं० ) [ प्रकृष्टमृणम् ] मूल ऋण, प्रधान | प्रार्थक ( वि० ) [ प्र+अर्थ+ ण्वुल् ] ० प्रार्थना करने वाला, स्तुतिकर्ता ।
• अनुरोधक, याचक, इच्छुक ।
प्रार्थकः (नपुं०) [प्र+अर्थ+ ल्युट् ] ०याचना, अनुरोध, निवेदन ।
० कामना, इच्छा।
० विनती, स्तुति |
प्रार्थना ( स्त्री० ) अर्चना, स्तुति ।
० अनुनय, विनय, अनुरोध । ( सुद० १३४ ) प्रार्थकीकृत् (वि०) प्रार्थना किया गया। (जयो०वृ० ४ / ८ ) प्रार्थय् (सक०) प्रार्थना करना, अनुरोध करना। प्रार्थयेत् (जयो० २/१२२)
प्रार्थयन्ती ( वर्त० कृ० ) अनुनय करती हुई । ( सुद० ९४) प्रार्थिका ( स्त्री०) प्रार्थना, स्तुति। (मुनि० २८ ) प्रार्थित (वि० ) [ प्र+अर्थ+क्त] • अनुरोधित, व्याचित ।
० आमन्त्रित, विनम्रता युक्त ।
० समीरित। (जयो० १२ / ५१ )
प्रार्थित (भू०क० कृ० ) अनुरोध किया गया।
० पूछा गया, आवेदन किया गया।
० अभिलषित, इच्छित ।
० आक्रान्त, शत्रु द्वारा विरोध किया गया।
प्रार्थिन् (वि० ) [ प्र+अर्थ+ णिनि] प्रार्थना करने वाला, अनुरोध करने वाला । ० याचित, अनुरोधित।
प्रालम्ब (वि० ) [ प्र + आ + लम्ब्+अच्] झूलता हुआ, लटकता हुआ।
प्रालम्ब: (पुं०) मोतियों से युक्त हार, आभूषण । प्रालम्ब (नपुं०) वक्षस्थल पर लटकने वाला हार ।
प्रालम्बकं (नपुं०) कंठाहार | प्रालम्बिका ( स्त्री० ) [ प्रालम्ब+कन्+टाप्] सोने का हार,
स्वर्ण हार |
प्रालेयं (नपुं० ) [ प्र+ली+ण्यत्] ओस, हिम, कुहरा । प्रालेयकल्पः (पुं०) तुषारपात, हिमपात (सुद० ८६ )
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प्रालेयरश्मि (स्त्री०) शशि, चन्द्रमा । प्रालेयलेशः (पुं०) हिम, ओला । प्रालेयांशुः (पुं०) चंद्रमा ।
प्रालेयादि (पुं०) हिमालय ।
प्रावट: (पुं०) [प्र+अव्+अट्+अच्] जव, जौ । प्रावणं (नपुं० ) [ प्र+आ+वन्+घ] ०खुरपा, कुदाल, फावड़ा। ० उत्तरीयवस्त्र |
प्रावृष्
प्रावचनं (नपुं०) श्रुतधर्म, तीर्थ, मार्ग, प्रवचन सम्बंधी । ० जीवादि तत्त्व बोधक वचन।
प्रावरणं (नपुं० ) [ प्र+आ+ वृ + ल्युट् ] ०ओढ़नी, चादर, दुपट्टा । ०कोट, परकोटा-' ततः पुनः प्रावरणं वदामि' (वीरो० १३/६)
० परिधि, ०घेरा, प्राकार ।
प्रावरणीयं (नपुं०) [प्र+आ+ वृ + अनीयर् ] उत्तरीय वस्त्र, दुपट्टा, ओढ़नी ।
प्रावारः (पुं०) [प्र+आ+वृ+घञ्] उत्तरीय वस्त्र, ओढ़नी, चोंगा। प्रावारकः (पुं०) [प्रावार+कन् ] उत्तरीय वस्त्र, दुपट्टा । प्रावारकीटः (पुं०) दीमक । प्रावारिक (वि०) उत्तरीय वस्त्र निर्माता।
प्रावर्तत (भू०) बभूव, हुआ। (जयो० १/११) प्रावर्तित (वि०) प्राभृतदोष, उपहार दोष ।
प्रावास (वि० ) [ प्रवास्+अण्] यात्रा सम्बंधी, यात्रा किए जाने योग्य। प्रावासिक (वि० ) [ प्रवास + ठक् ] यात्रा के लिए उपयुक्त। प्राविश ( सक० ) [ प्र + विश्] आना, पहुंचना | (जयो०वृ० १/७४)
० प्रच्छन्न, ढका हुआ। प्रावृतः (पुं०) चादर ओढ़नी ।
प्रावीण्य (वि०) चतुराई, कुशलता। ०प्रवीणता, दक्षता । प्रावृट ( स्त्री०) वर्षायोग (समु० ५ / १६, वीरो० ४/१०) प्रावृत (भू०क० कृ० ) [ प्र + आ + वृ+क्त] ०घिरा हुआ, आवरण युक्त।
प्रावृतं (नपुं० ) ०परदा, घूंघट, बुरका ।
प्रावृतिः (स्त्री० ) [ प्र + आ + वृ + क्तिन्] ०घेरा, बाड़, बाधा,
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आवरण | ०परदा ।
प्रावृत्तिक ( वि० ) [ प्रवृत्ति + ठक् ] गौण, अप्रधान | प्रावृत्तिकः (पुं०) दूत, संदेशवाहक ।
प्रावृष् (स्त्री०) [प्र+आ+ वृष् + क्विप्] वर्षाऋतु, वर्षायोग। (सुद० ७८) (जयो० २२/१२)