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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नारीदलं ५४४ नासादारु विचारतोऽहं परिवारलोके पुनः पदेनैव तथावलोके। (दयो० ३७) करोति नारी जनुरत्रसाथक विनाव्रतैर्जीवनमस्त्यपार्थकम्।। _ (समु० ४/३२) नारी बिना क्वनुश्छाया निश्शाखस्य तरोरिव। (वीरो०८/४) नारीदलं (नपुं०) स्त्री समूह। (जयो० १४/९६) नारीप्रसंगः (पुं०) कामासक्ति। नारीरत्न (नपुं०) स्त्रीरत्न, श्रेष्ठ स्त्री। नार्यणः (पुं०) [नारीणाभङ्गमिव शोभनमंगं यस्य] संतरा, नारंगी। नाल (वि०) नरकुल का बना हुआ। नालं (नपुं०) नाल, पोला, खोखला, नालदण्ड, कमलदण्ड। ० धमनी, शरीर की नालिका। ० हरताल। ० मूठ। ० नाली, नहर, जलप्रवाह की नाली। नाला (स्त्री०) [नल्+ण+टाप्] पोला डंठल, कमलनाल। नालिः (स्त्री०) [नल+णिच् इन] ० नालिका, शरीर की धमनी। ० कमलनाल। ० समय द्योतक यन्त्र। ० नहर, नाली। नाली देखो ऊपर। प्रणालिका। नालिकः (पुं०) [नलमेव नालमस्त्यस्य ठन्] भैंसा। नालिकं (नपुं०) कमलदण्ड। नालिका (स्त्री०) ० वाद्ययन्त्र, बांसुरी। ० कमलपुष्प। ० एक प्रमाण, माप, साढ़े अड़तालीस लव प्रमाण काल। 'अड़तीस लवे अद्धलवं च घेत्तूण एगा णालिया होदि।' (धव० ३/६५) नालिकेरः (पुं०) नारियल, श्रीफल। (जयो० २४/८०) नाली (स्त्री०) नालिका, साढ़े अड़तालीस लव प्रमाण काल। नालीकः (पुं०) मिथ्याभाषण/झूठ रहित सत्य, यथेष्ठ। अलोकस्य विरोधी-'नालीक: पिण्डजेप्यज्ञे' इति विश्वलोचने (जयो०३० २८/६४) ० नालीकानां मूर्खाणां विप्रिय इति। ० नाल्यां कायति-बाण। १. भाला, २. कमल, ३. कमलदण्ड। नालीकिनी (स्त्री०) [नालीक-इनि+ङीप्] कमल गुच्छ, कमलसमूह। नावा (पुं०) नौका, जलयान। (सुद० १०३, जयो० २२/५२) नावान्तः (वि०) १. गहरी नदी, २. नाव का प्रान्त। 'नावा जलयानेन कृत्वान्तः प्रान्तो यस्या ता' यद्वा न विद्यतेऽवान्तो यस्यास्या नावान्ता (जयो० २२/५५) नाविकः (पुं०) [नावा-तरति-ठन्] चालक, पोतवाहक, मल्लाह, नौयात्री। १. कर्णधार, ले जाने वाला, पार उतारने वाला। नाविन् (वि०) मल्लाह, केवट। नाव्य (वि०) [नावा तार्य नौ यत्] जहाज को ले जाने वाला। नाव्यं (नपुं०) नयापन, नूतनता। नाशः (पुं०) [नश्+घञ्] ध्वंस, घात, विनाश, क्षय, हानि। ० 'दृग्मोहनाशान्ननुजायमानं' (सम्य० १२३) ० नाशः पुनः स्वभाव प्रच्यवनम्। • मृत्यु, मरण। (सम्य० ५९) ०संकट। ० परिकार, परित्याग। ० अभाव। 'कुज्ञाननाशेऽपि भवेत्तथा नः'। (सम्य० १३७) नाशक (वि०) [नश् णिच्ण्वुल] विध्वंसक, घातक, विनाशक, अन्तक। (जयो०वृ० १/९४) नाशगत (वि०) नाश को प्राप्त, क्षय को प्राप्त। नाशन (वि०) नष्ट करने वाला, घात करने वाला, क्षय करने वाला, हटाने वाला, समाप्त करने वाला। नाशनं (नपुं०) विनाश, घात, विध्वंस, नष्ट होना, दूर करना। नाशिन् (वि०) [नश्+णिनि] विध्वंसक, घातक, नष्ट करने योग्य, क्षय करने योग्य। (जयो० ३/१४) नाष्टिकः (पुं०) [नष्ट ठञ्] खोई हुई वस्तु का स्वामी। नासा (स्त्री०) [नास्+अ+टाप्] नाक, घ्राण। (जयो० १/६१, जयो० ५/८३) ० घ्राणेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रियों में द्वितीय घ्राणेन्द्रिय। नासाग्रं (नपुं०) नाक का अग्रभाग। नासाछिद्रं (नपुं०) नथुना। नासादृशा (स्त्री०) नासाग्रदृष्टि। 'योग-भोगयोरन्तर खलु नासादृशा समस्य। (सुद०७०) नासादृष्टिः (स्त्री०) नासाग्रदृष्टि, ध्यान की एक अवस्था, जिसमें नासाग्रदृष्टि को महत्व दिया जाता है। नासादृष्टिरथ प्रलम्बितकरो ध्यानैकतानत्वतः' श्रीदेवाद्रिवदप्रकम्प इति योऽप्यक्षुब्धभावं गतः।। नासादारु (नपुं०) नासिक की लकड़ी, चौखट के ऊपर का भाग। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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