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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिह्वालौल्यं ४१७ जीवनयात्रा जिह्वालौल्यं (नपुं०) लालच, लाभ। जिह्वाशल्यः (पुं०) खदिर वृक्ष। जिह्वास्वादः (पुं०) चाटना, चखना, जिह्वोल्लेखनी (वि०) जीभ से खरचने वाला। जीन (वि०) [ज्या। क्त] वृद्ध, बूढ़ा, क्षीण। जीनः (पुं०) चर्म थैली। जीमूतः (०) [जयति नभः जीयते अनिलेन जीवनस्योदका मूतं बन्धो यत्र] १. मेघ, बादल। २. इन्द्र। जीमूतकूटः (पुं०) एक पर्वत। जीमूलवाहनः (पुं०) इन्द्र। जीमूतवाहिन् (पु०) धुआ। जीयः (वि०) जीवन। (वीरो० १८/३९) जीयादिदानी (वि०) जुदा जुदा। (समु० १/५) जीरः (पुं०) [ज्या रक्] १. असि, तलवार, २. जीरा। जीरकः (पुं०) जीरा। जीरणः (पु०) जीरा, एक औपधि गुण से परिपूर्ण जीर्ण (वि०) [+ क्त] १. पुराना, पुरा, पुरातन, २. सड़ा, गला, फटा हुआ, नष्टकाय। जीर्णः (पु०) वृद्ध, स्थविर। जीर्णं (नपुं०) १. गुग्गल। २. क्षीणता, ३. बुढ़ापा। जीर्णकरः (वि०) जीर्ण हुआ, क्षीण शुष्क। जीर्ण-ज्वरः (पुं०) पुराना बुखार, बहुत दिनों का ताप। जीर्णपणः (पुं०) कदम्ब वृक्षा जीर्णवाटिका (स्त्री०) पुरानी वाटिका, सूखी बावड़ी, क्षत-विक्षत वाटिका। जीर्णवजं (नपुं०) वैक्रान्तमणि। जीर्ण (स्त्री०) १. वृद्धावस्था, २. क्षीणता, कृशता, दुर्बलता। | जीव् (अक०) १. जीना, जीवित रहना, प्राणयुक्त होना। जीविष्यामि (जयो० वृ० ३/९७) २. निर्वाह करना, आजीविका करना, आश्रित रहना। जीव (वि.) जीवित, विद्यमान, प्राणवान्। जीवः (पु०) पाण, चेतना, चैतन्य शृणूत चेद बुद बुद् बुद्धि जीवः' (वीरो० १४/२१) श्वास, आत्मा, (सम्य० १५५) जीवो मतिं न 'हि कदाप्यूपयाति तत्त्वात्' (सुद० १२९) २... जीवद्रव्य-जीवाश्च केचित्तवणवः स्वतन्त्राः' (सम्य० २२) (सम्य० २१) ३. जीवन, अस्तित्व। (दयो० ३५) ४. व्यवसाय! जीवकः (पुं०) १. जीवधारी, २. सेवक, ३. प्राणक-(जयो० । २१/२७) ४. कुश, वृक्ष, (जयो० २१/३२) जीबन्धरकुमार (वीरो० १५/२४) जीवकदुमः (पुं०) कुश, आसन, प्राणधारी वृक्षा 'आसनो जीवकद्रुमे' (जयो० २१/३२) जीवकर्मन् (नपुं०) जीवकृत कर्म। 'इदं करोमि तु जीवकर्म' (सम्य० ३३) जीवग्रहं (नपुं०) देह, शरीर। जीवग्राहः (पुं०) जीवित पकड़ा गया कैदी। जीवघातः (पुं०) जीवन विनाश। (दयो० ३५) अस्तित्वात (वीरो० २२/७) अस्तित्व की समाप्ति। जीवजीव: (पुं०) चकवा, चकोरपक्षी। जीवनकाल: (पुं०) जीवन का समय। (जयो० वृ० ३/१) जीवद (वि०) जीवनदायका जीवं ददातीति जीविदो मरणासन्नो (जयो०६/७५) जीवदयाः (स्त्री०) जीवों के प्रति दया। (जयो० वृ० १/२१) जीवदशा (स्त्री०) जीवन की अवस्था। जीवधनं (नपुं०) पशुधन।। जीवधर्मन् (नपुं०) जीवन का ध्येय। जीवधारी (वि०) जीवनधारी, प्राणधारी। जीवन (वि०) [जीव+ ल्युट्] जीवन दायक, प्राणार्षण (जयो० २२/५५) प्राणप्रद, प्राणप्रदाता। प्राणधारक (जयो० ९/१४) (सुद०४/२५) 'दुर्दशा: किमिव जीवनं नयेत्' (जयो० २/९४) १. जल-नदीपक्षे जीवनं जलम् (जयो० वृ० २२/५५) (जयो० वृ० १४/७९) २. वृत्ति- (वीरो० १८/२२) स्वाध्यायमेतस्य भवेदथाधो यञ्जीवनं नाम समस्ति साधो:' (वीरो० १८/२२) जीवनदायिनी (वि०) प्राणदायिनी, जीवन प्रदात्री (जयो० ७० १/९६) जीवनत्रुटिः (स्त्री०) जीवन का अपघात, अपमरण, अकालमृत्यु (सुद० ११६) जीवननायकः (वि०) प्राणाधार, जीवनाधार (जयो० १२/१८) जीवन-निर्वहणं (नपुं०) आजीविका, जीवन की वृत्ति। (सुद० १३१) (जयो० वृ० ३/७) जीवनमूल्य (नपुं०) जल का मूल्य। (जयो० ३/१५) जीवन-यापनं (नपुं०) आजीविका, जीवन की वृत्ति, जीविका चलाने का माध्यम्। (दयो० ४९) जीवनयात्रा (स्त्री०) जीविका, आजीविका, जीवनवृत्ति (वीरो० १८/७) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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