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जिह्वालौल्यं
४१७
जीवनयात्रा
जिह्वालौल्यं (नपुं०) लालच, लाभ। जिह्वाशल्यः (पुं०) खदिर वृक्ष। जिह्वास्वादः (पुं०) चाटना, चखना, जिह्वोल्लेखनी (वि०) जीभ से खरचने वाला। जीन (वि०) [ज्या। क्त] वृद्ध, बूढ़ा, क्षीण। जीनः (पुं०) चर्म थैली। जीमूतः (०) [जयति नभः जीयते अनिलेन जीवनस्योदका
मूतं बन्धो यत्र] १. मेघ, बादल। २. इन्द्र। जीमूतकूटः (पुं०) एक पर्वत। जीमूलवाहनः (पुं०) इन्द्र। जीमूतवाहिन् (पु०) धुआ। जीयः (वि०) जीवन। (वीरो० १८/३९) जीयादिदानी (वि०) जुदा जुदा। (समु० १/५) जीरः (पुं०) [ज्या रक्] १. असि, तलवार, २. जीरा। जीरकः (पुं०) जीरा। जीरणः (पु०) जीरा, एक औपधि गुण से परिपूर्ण जीर्ण (वि०) [+ क्त] १. पुराना, पुरा, पुरातन, २. सड़ा,
गला, फटा हुआ, नष्टकाय। जीर्णः (पु०) वृद्ध, स्थविर। जीर्णं (नपुं०) १. गुग्गल। २. क्षीणता, ३. बुढ़ापा। जीर्णकरः (वि०) जीर्ण हुआ, क्षीण शुष्क। जीर्ण-ज्वरः (पुं०) पुराना बुखार, बहुत दिनों का ताप। जीर्णपणः (पुं०) कदम्ब वृक्षा जीर्णवाटिका (स्त्री०) पुरानी वाटिका, सूखी बावड़ी, क्षत-विक्षत
वाटिका। जीर्णवजं (नपुं०) वैक्रान्तमणि। जीर्ण (स्त्री०) १. वृद्धावस्था, २. क्षीणता, कृशता, दुर्बलता। | जीव् (अक०) १. जीना, जीवित रहना, प्राणयुक्त होना।
जीविष्यामि (जयो० वृ० ३/९७) २. निर्वाह करना,
आजीविका करना, आश्रित रहना। जीव (वि.) जीवित, विद्यमान, प्राणवान्। जीवः (पु०) पाण, चेतना, चैतन्य शृणूत चेद बुद बुद् बुद्धि
जीवः' (वीरो० १४/२१) श्वास, आत्मा, (सम्य० १५५) जीवो मतिं न 'हि कदाप्यूपयाति तत्त्वात्' (सुद० १२९) २... जीवद्रव्य-जीवाश्च केचित्तवणवः स्वतन्त्राः' (सम्य० २२) (सम्य० २१) ३. जीवन, अस्तित्व। (दयो० ३५) ४.
व्यवसाय! जीवकः (पुं०) १. जीवधारी, २. सेवक, ३. प्राणक-(जयो० ।
२१/२७) ४. कुश, वृक्ष, (जयो० २१/३२) जीबन्धरकुमार
(वीरो० १५/२४) जीवकदुमः (पुं०) कुश, आसन, प्राणधारी वृक्षा 'आसनो
जीवकद्रुमे' (जयो० २१/३२) जीवकर्मन् (नपुं०) जीवकृत कर्म। 'इदं करोमि तु जीवकर्म'
(सम्य० ३३) जीवग्रहं (नपुं०) देह, शरीर। जीवग्राहः (पुं०) जीवित पकड़ा गया कैदी। जीवघातः (पुं०) जीवन विनाश। (दयो० ३५) अस्तित्वात
(वीरो० २२/७) अस्तित्व की समाप्ति। जीवजीव: (पुं०) चकवा, चकोरपक्षी। जीवनकाल: (पुं०) जीवन का समय। (जयो० वृ० ३/१) जीवद (वि०) जीवनदायका जीवं ददातीति जीविदो मरणासन्नो
(जयो०६/७५) जीवदयाः (स्त्री०) जीवों के प्रति दया। (जयो० वृ० १/२१) जीवदशा (स्त्री०) जीवन की अवस्था। जीवधनं (नपुं०) पशुधन।। जीवधर्मन् (नपुं०) जीवन का ध्येय। जीवधारी (वि०) जीवनधारी, प्राणधारी। जीवन (वि०) [जीव+ ल्युट्] जीवन दायक, प्राणार्षण (जयो०
२२/५५) प्राणप्रद, प्राणप्रदाता। प्राणधारक (जयो० ९/१४) (सुद०४/२५) 'दुर्दशा: किमिव जीवनं नयेत्' (जयो० २/९४) १. जल-नदीपक्षे जीवनं जलम् (जयो० वृ० २२/५५) (जयो० वृ० १४/७९) २. वृत्ति- (वीरो० १८/२२) स्वाध्यायमेतस्य भवेदथाधो यञ्जीवनं नाम समस्ति साधो:'
(वीरो० १८/२२) जीवनदायिनी (वि०) प्राणदायिनी, जीवन प्रदात्री (जयो० ७०
१/९६) जीवनत्रुटिः (स्त्री०) जीवन का अपघात, अपमरण, अकालमृत्यु
(सुद० ११६) जीवननायकः (वि०) प्राणाधार, जीवनाधार (जयो० १२/१८) जीवन-निर्वहणं (नपुं०) आजीविका, जीवन की वृत्ति। (सुद०
१३१) (जयो० वृ० ३/७) जीवनमूल्य (नपुं०) जल का मूल्य। (जयो० ३/१५) जीवन-यापनं (नपुं०) आजीविका, जीवन की वृत्ति, जीविका
चलाने का माध्यम्। (दयो० ४९) जीवनयात्रा (स्त्री०) जीविका, आजीविका, जीवनवृत्ति (वीरो०
१८/७)
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