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जामिः
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जितकाशिन्
जामिः (स्त्री०) [जम्+इन्] १. बहन, पुत्री, पुत्रवधू, २. जाल्मक (वि०) [जाल्म+कन्] घृणित, पापी, कुकर्मी, दुराचारी। नजदीकी सम्बन्ध, गुणवती स्त्री।
जावन्य (वि०) [जवन+ष्यञ्] शीघ्रता, गतिशीलता। जामित्रं (नपुं०) जन्मकुण्डली का सातवां स्थान/घर।
जाह्नवी (स्त्री०) [जह्नु अण्डीप्] गङ्ग नदी। जामेयः (पुं०) [जाम्या भगिन्या अपत्यम् ढञ्] भानजा, बहन का पुत्र। जि (सक०) जीतना, विजय प्राप्त करना, दमन करना, हराना, जाम्बवं (नपुं०) [जाम्बा: फलं अण् तस्य] १. सोना, स्वर्ण, पराजित करना, नियन्त्रण करना, दबाना। २. जामुन का तरु।
जिः (पुं०) राक्षस, पिशाच। जाम्बवत् (पुं०) [जाम्ब+मतुप्] ऋच्छराज। लंका पर आक्रमण जिगत्नुः (नपु०) प्राण, जीवन। कर राम की सहायता करने वाला नृप।
जिगीषा (स्त्री०) [जि+सन्+अ+टाप्] १. जीतने की इच्छा, जाम्बीरं (नपुं०) चकोतरा।
जीतने की अभिलाषा। (जयो० वृ० ११/२८) २. चेष्टा, जाम्बूनदं(नपुं०) [जम्बूनद्+अण्] १. स्वर्ण, सोना, २. धतूरा। व्यवसाय, जीवनचर्या, जायमान (शानच्) उत्पन्न होने वाला। (सम्य० १२३) जिगीषु (वि०) जीतने का इच्छुक, जीतने का इच्छुक वादी। जाया (स्त्री०) [जन्+यक्+टाप्] पत्नी, भार्या।
-पराजेतुमिच्छर्जिगीषुः जायानुजीविन् (पुं०) नट, अभिनेता।
जिघत्सु (वि०) भूखा, क्षुधा पीडित। जायापतिः-दम्पती।
जिघांसा (स्त्री०) [ह्न+सन्+अ+टाप्] मारने की इच्छा, जायिन् (वि०) [जि+णिनि] जीतने वाला, दमन करने वाला। विनाशेच्छा। जायुः (स्त्री०) १. औषधि। २. वैद्य। (सम्य० ५१)
जिघांसु (वि०) [ह्न+सन्+उ] घातक, विनाशक, चटने आए। जार: (पुं०) [जीर्यति अनेन स्त्रियाः सतीत्वं-ज+घञ् जरयतीति (वीरो० २१/१०) १. मारने का इच्छुक (दयो० ९६) २. जार:] प्रेमी, उपपति, यार।
बुभुक्षु। (जयो० वृ० २/१२८) जारजः (पुं०) चुगलखोर, दोगला।
जिघृक्षा (स्त्री०) [गृह् । सन्अ+टाप्] ग्रहण करने की इच्छा। जारजन्मन् (पुं०) चुगलखोर।
जिघ्र (वि०) [घ्रा+श] १. सूंघने वाला, २. निरीक्षण करने जारभरा (स्त्री०) व्यभिचारिणी स्त्री।
वाला। जारिणी (स्त्री०) [जार+इनि+ङीप्] व्यभिचारिणी स्त्री। जिघ्रासः (पुं०) घ्राण निरोध, नाक वन्द करके श्वास रोकना। जालं (नपुं०) [जल्+ण] १. जाल, फंदा, पाश, २. गवाक्ष, जिघ्रास-मरणं (नपुं०) घ्राण निरोध पूर्वक मरण।
खिड़की, झरोखा। ३. संग्रह, राशि, ढेर। ४. भ्रमजाल, जिज्ञासा (स्त्री०) [ज्ञा+सन्। अ+टाप्] पृच्छा, चाह, अभिलाषा, जादू, धोखा, छल, व्यर्थ, प्रपञ्च (जयो० १६/७५)
इच्छा, पिपासा (दयो०८९) (जयो० वृ०३/२६) (जयो० जालकं (नपुं०) [जालमिव कायति-कै+क] १. जाल, फंदा। २३/७४)
२. गवाक्ष, झरोखा। (जयो० वृ० १५/५३) उपगवाक्ष। ३. जिज्ञासु (वि०) [ज्ञा+सन्+उ] जानने का इच्छुक, ज्ञानेप्सु, छल, भ्रम, जादू।
प्रयत्नशील पृच्छेच्छु। जालक्षः (पुं०) गवाक्ष, झरोखा।
जिज्ञीषु (वि०) जीतने के इच्छुक वादी। जालपाद् (पुं०) कलहंस।
जित् (वि०) जीतने वाला, परास्त करने वाला, हराने वाला। जालप्रसारः (पुं०) जाल का फैलाव। (दयो० ९७)
(सुद० १/२९) जालिकः (पुं०) [जाल+ठन्] १. मछुआरा, मछली पकड़ने | जित (भू०क०कृ०) [जि+क्त] १. जीता हुआ, अभिजित, वाला। २. बहेलिया, चिड़ीमार, ३. मकड़ी, ४. ठग।
० अभिभूत, पराभूत, ०वशीभूत, प्रभावित, ०पराजित। जालिका (स्त्री०) १. जाली, २. जोंक, ३. लोहा धूंघट।
(जयो० ३/४४) २. स्वभाविकवृत्ति निर्बाध गति से संचार जालिनी (स्त्री०) [जाल+इनि+ङीप्] चित्रयुक्त वृक्ष।
करना। जाल्म (वि०) [जल्+णिक्] १. क्रूर, निष्ठुर ०कठोर व्यक्ति, जितकर्म (वि०) कर्मजयो।
अविवेकी, शठ, मूर्ख, कुकर्मी, आचरण हीन, दुराचारी। जितकषाय (वि०) कषाय को जीतने वाला। निष्ठुर (दयो० २३) २. निर्धन, गरीव, ३. नीच, ०अधम। जितकाशिन् (वि०) विजय से आशान्वित।
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