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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जया ४०८ जलं जया (स्त्री०) दुर्गा, अम्बिका। १. एक वचन, जिसके सिद्धान्त जरती-जरती (स्त्री०) वार्धक्यपालित स्त्री, वृद्धा स्त्री। (जयो० कथन किया जाए। २. पोदनपुरी के राजा प्रजापति की १०/२७) रानी। (वीरो० ११/१७) जरसान्वित (वि०) वृद्धत्व प्राप्त। (जयो० १८/४१) जयिन् (वि०) जेतु शीलमरण-विजेता। जरन्तः (पुं०) वृद्ध पुरुष। जयेच्छु (वि०) विजयाभिलाषी, जय/विजय का इच्छुक। (जयो० जरद्गव (वि०) वृद्ध बलीवर्द, बूढा बैल (जयो० २३/६७) ८/४६) (दयो० २० ) जयैषिणी (वि०) विजयाभिलाषिणी, विजय की कामना करने जरसाञ्चित (वि०) वार्धक्यविभूषित। (जयो०९/७२) वाली। (जयो० ६/११६) जरा (स्त्री०) [जु+अ+टाप्] बुढ़ापा, वृद्धावस्था। (जयो० जयोक्ति (स्त्री०) जयकार, जयध्वनि, जयघोष। जयनाद-(जयो० १/३६) वयो हानि, वय जीर्णता। (वीरो० ९/७) जीर्यन्ति १२/९) विनश्यन्ति रूप-वयो-बल-प्रभृतयो गुणा यस्यामवस्थायां जयोदयः (पुं०) जयोदय नामक महाकाव्य, जिसमें २८ सर्ग प्राणिनः सा जरा। (भ०आ०टी० ७१) हैं। जो हस्तिनापुर नरेश के विजय अभियान से लेकर जराजीर्ण (वि०) वयोवृद्ध, निर्बलता, क्षीणता। वैराग्य तक के चित्र को चित्रित करने वाला है इसके | जरायिक (वि०) जर से निकला। जरायुरेव जरः तत्र आय: रचनाकार महाकवि भूरामल आचार्य ज्ञानसागर हैं। इसको जरायः जरायो विद्यते येषां ते जरायिक:-'गो-महिषीसं० १९८३ की सावन सुदी पूर्णिमा के दिन पूर्ण किया मनुष्यादयः सावरण-जन्मानः' गया। (जयो० १/१) लोकधराङ्कात्मकसंगणिते जराधीनः (पुं०) वार्धक्यापन्न, वृद्धावस्था। (जयो० ७/४६) विक्रमोक्तसंवत्सरे हिते। श्रावणमासमितिं प्रति याति पूर्ण जरायु (नपुं०) मांस एवं रुधिर् का जाल। जालवत्प्राणि-परिवरणं निजपर-हितैकजाति।। (जयो० २८/१०९) लोकाः त्रयः विततमांस-रुधिरं जरायुः कथ्यते। तत्र कर्मवशादुत्पत्त्यर्थ धराः पृथिव्यः अष्टौ नय-आत्मा चैक इत्थमङ्गानां वामतो माय आगमनं जरायः, जरायुरेव: जरः। गतिरिति नियमात् परिवर्तिते १९८३ तमे हितकरे। श्रीमान् जरायुज (वि०) जरायु में उत्पन्न होने वाला। 'जरायौ जाता श्रेष्ठिचतुर्भुजः स सुषुवे भूरामलोपाह्वयं वाणीभूषण-वर्णिनं जरायुजाः' यत्प्राणिनामानायवत् जालवत् आवरणं प्रविततं घृतवरी देवी च यं धीचयम्। तत्काव्यं लासतात् स्वयं विधि पिशितरुधिरं तद्वस्तु वस्त्राकारं जरायु'-जरायौ जाता जरायुजाः। श्री लोचनाया जयराजस्याभ्युदयं दधद् वसु दृगित्याख्यं च जरासन्धः (पुं०) नाम विशेष। (वीरो० १७/४२) सर्ग जयत्।। जरित (वि०) [जरा+इतच्] वृद्ध, बूढ़ा, क्षीण, निर्बल। जयोदयप्रकाश (पुं०) जय कुमार के अम्युदय का कथन। जरिन् (वि०) वृद्धा, बूढ़ी। (जयो० १२/११) (दयो० १/१) जरी (वि०) वृद्ध स्त्री। जय्य (वि०) [जि+यत्] जीतने योग्य, प्रहार्य। जरूधं (नपुं०) मांस। जरठ (वि०) [+अठच्] १. कठोर, ठोस, २. अधिक वय जर्जर (वि०) [ज+अर] बूढ़ा, वृद्ध, निर्बल, क्षीण। का परिपक्व। जर्जरित (वि०) [जर्जर+णिच्+क्त] छिन्नाभिन्न, विद्ध। जीर्णजरठः (पुं०) पाण्डुनरेश। शीर्ण, फटा-पुराना, विदीर्ण, अयोग्य, क्षार-क्षर, घिसा-पिटा, जरण (वि०) [+ल्युट्] बूढा, क्षीण, निर्बल, वृद्ध। क्षीण, हीन। कुसुमेषोः शर-जर्जरितापि या जनता जरणार्थ (वि०) परिपाक के लिए। (सुद० १२०) स्ययमितस्तयापि। (जयो० १४/३९) जरत् (वि०) [ज+शत्] वृद्ध, क्षीण काय, निर्बल, जीर्ण। | जर्जरीक (वि०) [जर्जर+ईक] बूढ़ा, वृद्ध, क्षीण, असमर्थ, जरत्कुमारः (पुं०) कृष्ण को मारने वाला (मुनि० २४) अयोग्य, छिन्नभिन्न, विदीर्ण, विखण्डित। (वीरो० १७/४२) जर्तुः (स्त्री०) योनि। जरत्गवः (पुं०) बूढ़ा बैल। जल (वि०) [जल्+अक्] शीतल, ठंडा, जड़। स्फूर्तिहीन, जरती (स्त्री०) वृद्धा, बुढ़िया, अधिक उम्र की नारी। (जयो० निर्बल। ४/५७) जलं (नपुं०) वारि, अम्बु, पानी, नीर। (जयो० १/५) उदक। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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