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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जक्षणं ४०१ जघनं जक्षणं (नपुं०) [जक्ष ल्युट] उपभोग, भक्षण, भुंजन। जगदीशसुतः (पुं०) भरत। ऋषभ को जगदीश कहा गया, जगज्जयी (वि०) विश्वविजेता, लोकजयी। (जयो० ११/२२) उनका पुत्र भरत। जगदीशस्यादीश्वरस्य सुतो भरतचक्रवर्ती। जगज्जिगीष (वि०) विश्व विजेता, लोकजयी। (जयो० १४/३१) (जयो० वृ० २३/८९) जगज्जेता (वि०) विश्वजयी, लोकजयी। जित्वाऽक्षाणि | जगदीश्वरः (पुं०) ऋषभदेव। (हित०सं०६) धर्मश्चार्थश्च समावसदिह जगज्जेता स आत्मप्रियः। (वीरो० १८/२७) कामश्च, मोक्षश्चेति चतुष्टयम्। साध्यत्वेन मनुष्यस्य समाह जगत् (वि०) संसार, लोक, विश्व। (सुद० ४/१४) (जयो० जगदीश्वरः।। (लि०६) १/१०) किं किमस्ति जगति प्रसिद्धिमत्कस्य सम्पदथ जगदेकतात (पुं०) जगत् के अद्वितीय गुरु ऋषभ को जगत् कीदृशी विपद्। द्रव्य नाम समये प्रपश्यतां नो वितर्कविषया का गुरु कहा गया क्योंकि उन्होंने सर्वप्रथम जगत् के हि वस्तुता।। (जयो० २/४९) भयंकरा सा जगतोऽथ रात्रि प्राणियों के हितार्थ असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्पादि (सम्य० १/१) का कथन किया था। २. चेतन-अचेतन द्रव्य समुदाय का नाम जगत् है। द्रव्यों जगदेकदेवः (पुं०) आदीश्वर ऋषभदेव, नाभेयज, आदिब्रह्म। के समुदाय को जगत् कहते हैं। 'जगत् चेतनाचेतनद्रव्य- जगतां सर्वेषां जीवानामेको देवः, प्रकाशगत। ऋषभः (जयो० संहतिः।' (भ०आ०टी० ८२) चराचर का समुदाय भी वृ २७/१) जगत् है। 'ईशिता तु जगतां पुरुदेव:। (जयो० ४/४९) जगदेकविभूषणं (नपुं०) एकमात्र अद्वितीय आभूषण स्वरूप। जगत्कर्तृ (पुं०) सृष्टिकर्ता। भूषणैर्भूषयामास जगदेकविभूषणम्। (वीरो० ७/३७) जगत्चक्षुः (पु०) सूर्य। जगदेवः (पुं०) जगन्नग, संसार का देव। (जयो० १/१०) जगत्तत्त्वं (नपु०) विश्व के पदार्थ। जगत्तत्त्वं स्फुटीकर्तु जगत्पालः (पुं०) विश्वम्भर। (वीरो० ५/२३) मनोमुकुरमात्मनः' (वीरो० १०/१५) जगन्नगः (पुं०) जगदेव। (दयो० १/१०) जगत्तिलकः (पु०) संयम का शिरोमणि। (पु० १/९७) जगन्नाथ: (पुं०) विश्व का स्वामी, ऋषभदेव का एक नाम। जगत्पूत (पुं०) सम्यक् गुरु, सच्चे गुरु। (जयो० १/१०४) जगन्मोहकर (वि०) जगत् को मोह उत्पन्न करने वाला। यन्त्रं जगत्समस्त (वि०) सम्पूर्ण लोक (जयो० वृ० १/१५) जगन्मोहकर स्वभावात्समङ्कितं मन्मथमन्त्रिणा वा। (जयो० जगतश्छाया: (स्त्री०) संसार प्रणाली। जगतः शरीरधारिण: ११/५८) प्राणिसत्छाया प्रतिमूर्ति। (जयो० ) जगन्मोहिनी (स्त्री०) लक्ष्मी (सुद० १/४०) जगती (स्त्री०) भूमि, पृथिवी। (जयो० १३/२४) जगन्निवासः (पुं०) परमात्मा, संसार का स्थान, लोक का जगतीतलं (नपुं०) भूतल, पृथिवीतल। (समु० ८/१३) (भक्ति० आधार। ३१) कस्यापि प्रार्थना कश्चिदित्येवमवहेलयेत्। जगन्मान्य (वि०) विश्व मान्यता वाला। (वीरो० २२/७) मनुष्यतामराप्तश्चेद्यथा त्वं जगतीतले।। (सुद० १३४) जगनुः (स्त्री०) अग्नि, आग। जगतीश्वरः (पुं०) नृप, राजा। जगप्रसूत (वि०) जग की उत्पत्ति। (वीरो० १७/१) जगतीरुहः (पुं०) तरू, वृक्षा जगराः (पुं०) कवच। जगद्गुरु (पुं०) ऋषिराज। (जयो० १/३३) जगराग्र (पुं०) कवच प्रान्त। (जयो० ७/१०७) जगद्व्यापिन् (वि०) विश्वव्यापी (वीरो० १०/३९) जगल (वि०) [जः जातः सन् गलति-गच्+अच्] चालाक, जगंदल (नपं०) जगत् में अन्तर। (सुद० ४/१) धर्त। जगदन्तः (पुं०) संसार के भीतर। (सुद०८१) जगलं (नपुं०) १. कवच, २. गोबर। जगद्विभूषणं (नपु०) संसार का अलंकरण। (सुद० ३४) जग्घ (वि०) [अद्+क्त] भुगित, खादित, खाया हुआ। जगद्धितं (नपुं०) लोक कल्याण (सुद० २/२६) जग्घिः (स्त्री०) [अद्+क्तिन्] भोजन, खाना। जगदम्बिका (स्त्री०) देवी। जगतां प्राणिनामम्बिका प्रतिपालि | जघनं (नपुं०) [ह्नअच्, द्वित्वम्] श्रोणी, नितम्ब। (जयो० के यमि तस्या देव्या। (वीरो० १/३५) वृ०३/६०) १. कूल्हा, चूतड़, पुट्ठा, २. स्त्रियों का पेडू, जगदाह्लादक (वि०) संसार को आनन्दित करने वाला। (वीरो०८७) | ३. सेना का पिछला भाग, सुरक्षित भाग। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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