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गिरीन्द्रः
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गुञ्जा
गिरीन्दः (पुं०) सुमेरु, हिमालय।
गीतिः (स्त्री०) १. स्तुति, गान, संकीर्तन। सार्हत्सद्गुण गीतिरेव गिरीशः (पुं०) सुमेरु, हिमालय।
सुदृशा क्लृप्ता प्रतीतिस्तु मे। (जयो० ८/८५) २. प्रशंसा, गिरीश्वरः (पुं०) शिव, महादेव। १. प्रशस्त वाणीश्वर। गिरां गुणस्तवन। सा गीतिं जगाविति पुन : कलितप्रशंसा (सुद०
वाचामीश्वरोऽधिपः प्रशस्तवाणीश्वरोऽसि। (जयो० २४/४४) १२३) २. गिरीश्वरः शिवोऽथ च गिरीणामीश्वरः कैलासः। (जयो० गीतिका (स्त्री०) [गीति कन्+टाप्] गाना, गीत, लघुस्तुति। २२/४४) गिरीश्वरः पर्वत मुख्यो महादेवश्च। (जयो० गीतिन् (वि०) सस्वर पाठ युक्त। २४/६) ३. उर्वीध्रपतिः (जयो० ) ४. बृहस्पति-गिरामीश्वरा गीतिपरायणं (नपुं०) गीतिकाव्य में निपुण। (सुद० १२३) वाग्मिनो बृहस्पतिः। (जयो० वृ० ५/८१) ५. सुमेरू
गीतिरीतिः (स्त्री०) गीति के प्रकार, संगीत की विविधकला। पर्वत-प्रतिभाति गिरीश्वरः स च। (वीरो०७/१९)
यातु ताल-लय-मूर्च्छनादिभिर्जुनकीर्तनकलाप्रसादिभिः। गिरीशसानु (पुं०) पर्वतराजशृंग भाग। गिरीशस्य पर्वतराजस्य
गीतिरीतिमपि तच्छृतात्पुनर्म वाक्त्वमिह विश्वमोहनम्।। सानुःशृंग भागस्तस्मात् गगनरूप पर्वतोपरिमस्थलात्। (जयो०
गीतिशास्त्राद् गीतानां रीतिः प्रकार: (जयो०२/६०) वृ० १५/१३)
गीतिशास्त्रं (नपुं०) संगीतशास्त्र। (जयो० २/६०) गिल् (सक०) निगलना, चबाना।
गीर्ण (वि०) []+ क्त] निगला हुआ, वर्णित, कथित, वर्णन गिल (वि०) निगला गया, उदरस्थ किया गया।
किया गया. गाया गया। गिलः (पुं०) नींबू वृक्षा
गीर्णिः (स्त्री०) [गृ+क्तिन्] प्रशंसा, यश। गिलगिलः (पुं०) मगरमच्छ, घड़ियाल।
गी देवी (स्त्री०) सरस्वती, भारती। गिलनं (नपुं०) [गिल्+ल्युट] निगलना, खा लेना।
गीर्वाण (पुं०) सुर, देवता। गिलित (वि०) [गिल्+क्त] निगला हुआ, खाया हुआ।
गीर्वाण-वाणी (स्त्री०) देववाणी। सनाभयस्ते त्रय एव गिष्णुः (वि.) गाने वाला। गी: (स्त्री०) १. वाणी, भाषा, वचनवाक्। मम सुलोचनायास्तु
यज्ञानुष्ठायिनो वेदपदाऽऽशयज्ञाः। गीर्वाणवाण्यामधि
कारिणोऽपि समो ह्यमीषामपरो न कोऽपि।। (वीरो० १४/३) गीर्वाणी (जयो० वृ० २४/४४) नियोगिने तस्य समस्ति नो गीः। (जयो० वृ० २७/६) २. सरस्वती (जयो० १२/१८)
गु (सक०) मलोत्सर्ग करना, गीत (वि०) गया गया, उच्चरित किया गया, घोषित किया।
गु (स्त्री०) रश्मि, किरण। (जयो० वृ० १/९६) गीतं (नपुं०) गीत, गाना, भजन, कथन, प्रणीत, संकीर्तन,
गुग्गुलः (पुं०) राल, गोंद, गुग्गल, गूगल नामक औषधि। लयात्मक शब्द। धान्यस्थली-पालक-बालिकानां
(जयो० १९/७६) गीतश्रुतेनिश्चलतां दधानाः। (वीरो० २/१३)
गुग्गुलधूपः (पुं०) गुग्गल औषधि की धूप। (जयो० १९/७५) गीतकं [गीत+कन्] स्तोत्र, स्तुति, गान।
गुच्छ: (पुं०) गुच्छा, फूलों का समूह। [गु+क्विप्-गुत्) मयूरपंख। गीतक्रमः (पुं०) गान परम्परा।
गुच्छकः (पुं०) गुच्छा, पुष्प समूह, गुलदस्ता। कशिम्ब (जयो० गीतज्ञ (वि.) गानकला में प्रवीण।
१५/६२) गीतनियुक्तिः (स्त्री०) गीत शब्द, गान भाव। केवलं न भविता गुज् (अक०) गुंजार करना, गूंजना, भनभनाना। गुं गुं शब्द
मृदुभुक्तिः सम्भविष्यति च गीतनियुक्तिः । (जयो० ४/५२) करना, गुन गुनाना।
'गीतानां नियुक्तिरपि सम्भावष्यति' (जयो० वृ० ४/५२) गुजः (पुं०) [गुज+क] गूंजना, गुनगुनाना। गीतप्रिय (वि०) गान विद्या कुशल, गान विद्या प्रेमी। गुञ् (अक०) गूंजना, शब्द टकराना। (सुद० ८२) आम्रस्य गीतमोदिन् (पुं) किन्नर, गन्धर्व।
गुञ्जत्कलिकान्तराले लीकमेतत्सहकारनाम। (वीरो०६/२१) गीतवती (वि०) गान करने वाली, गाने वाली। 'विपिनेऽस्यकुतोऽपि | गुञ्जनं (नपुं०) [गुन्+ ल्युट्] गूंजना, भिनभिनाना, मंद मंद
कौतुकान् मिलिता गीतवतीसु तासु का। (समु० २।८) शब्द करना, ध्वनि करना। 'गर्जनं वारिदस्येव दुन्दुभेरिव गोतवन्त (वि०) गीतज्ञ, गीत गाने वाला। निवार्यमाणा अपि गुञ्जनम्' (वीरो० १५/१)
गीतवन्तः सत्यान्वितैरागमिभिर्हदन्तः। (वीरो० १८/५३) । गुञ्जा (स्त्री०) [गुञ्ज+अच्+टाप्] धुंधची, गुमची, काजीफल, गीता (स्त्री०) कर्म प्रधान गेयात्मक काव्य।
कृष्णला। गुञ्जा नामक लता में लगने वाला फल, जो
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