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गमनीय
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गर्दभः
गमनीय (पुं०) [गम्+अनीयर] सुगम, सुबोध, अभिप्रेय, निहित, गरुडव्यूहः (पुं०) सैन्य व्यवस्था। सेना की तीन व्यवस्थाएं उपयुक्त, वाञ्छित।
हैं-'चक्रव्यूह, मकरव्यूह और गरुडव्यूह। 'गरुडव्यूहात्मकं गम्भारिका (स्त्री०) एक वृक्ष विशेष।
स्वसैन्यं रचयन् सन् सङ्ग्रामकरम्। (जयो० वृ० ७/११३) गम्भीर (वि०) १. ग्रुर्वी, अगाध, पर्याप्त।
गरुत् (पुं०) [गृ+रति] १. पक्षी के पर, २. निगलना। (जयो० गम्भीरः (पुं०) कमल, नींबू।
वृ०६/८) गम्य (वि०) गया हुआ। (सम्य० १/२२)
गरुत्मत् (वि०) [गरुत्+मतुप् । गरुड पक्षी वाला। गर (वि०) [गीर्यते-गृ+अच्] निगलने वाला, खाया जाने गरुलः (पुं०) गरुड पक्षी। वाला,
गरेणुः ( स्त्री०) हथिनी, हस्तिनो। (जयो० १३/१०८) गरः (पुं०) पेय पदार्थ, रस। १. रोग, २. निगलना। ३. विष, गर्गः (पुं०) [गृ+ग] १. सांड। २. गर्ग ऋषि।
जहर-'गर विषमिवाचरन्ति (जयो० ११/११) गरन्ति गर्गरः (पुं०) [गर्ग इति शब्दं राति-गर्ग रा+क] १. भंवर, आचारार्ये क्विप् प्रत्ययः' (भक्ति०१७) 'कमलाय | जलावर्त, २. मथानी। जलाद्वह्निर्भिषजो रोगिणे गरम् (दयो० ६४) दीपात्तमोऽ- | गर्गरी (स्त्री०) गगरी, मटका। (जयो० २१/५६) ध्वनीनाय प्रतिभाति समुत्थितम्।। (दयो० ६४) 'गरेण । गर्गाटः (पुं०) [गर्ग इति शब्देन अटति गर्ग+अट्+अच] एक नस्या दिव मोदकस्य' (समु० १/२१)
मछली विशेष। गर (नपुं०) तर करना, छिड़कना।
गर्जू (अक०) गर्जना, दहाड़ना, चिल्लाना, गुर्राना। 'जगर्ज गरणं (नपुं०) १. निगलना, २. विष भक्षण करना।
___चाहंश्रुणु विप्र! (समु० ३/३१) एवं प्रकारणे समुज्जगर्ज गरघ्नी (स्त्री०) एक मछली।
(सुद० १२/३६) गरद (वि०) विषदाता।
गर्जः (पुं०) [ग घञ्] गड़गड़ाहट, हस्ति चिंघाड, बादलों गरपरिणति (स्त्री०) विषफल, विष का प्रभाव। (जयो० वृ० की गर्जना। ११/११)
गर्जनं (नपुं०) [गर्जु+ल्युट] १. दहाड़ना, गर्जना, गड़गड़ाना, गरभः (पुं०) [गृ+अभच्] भ्रूण, गर्भस्थ शिशु।
२. आवेश 'मोदनोदनिधिगर्जनमेष' (जयो० ३/५७) (जयो० गरलः (पुं०) [गिरति जीवन-गृ+अलच्] विष, जहर।
५/५७) क्रोध, संग्राम, युद्ध। ३. स्पष्टपरिभाषण- 'मेघस्य गरित (वि०) [गर इतच्] विषयुक्त।
गर्जनं स्पष्टपरिभाषणम्'। (जयो० १२/४९) गरिमन् (पुं०) [गुरु इमनिच्] बोझ, बड़प्पन, महिमा, श्रेष्ठता। गर्जनयान्वित (वि०) गर्जन युक्त। गर्जना करता हुआ। इति गरिमा (स्त्री०) ऋद्धि विशेष, वज्र से गुरुतर बनाने की सिद्धि। गर्जनयान्वित स्वतो मयवर्गो व्रजति स्म वेगतः। (जयो० १३/३३) गरिष्ठ (वि०) [गुरु+इष्ठन्] १. अधिक, भारी, प्रबल बोझ गर्जा (स्त्री०) [ग+टाप्] गरज, गड़गड़ाहट।
युक्त। २. पचाने में अधिक भारी। ये नीरस प्रेमत आहरन्ति गर्जित (वि०) [ग+क्त] गर्जता हुआ, गड़गड़ाता हुआ। गरिष्ठमिष्टं स्वशनं गरन्ति। (भक्ति०१७)
गर्तः (पुं०) [गृ+तन्] गड्ढा, खाई, कोटर, छिद्र, गुफा। गरिष्ठाहारः (पुं०) अपाच्य आहार।
(सुद० १०१) गर्ने भीतिमये कदापि न पतेद्धास्यं पिशाचं गरीयस् (वि०) [गुरु-ईयसुन्] प्रगाढ, अतिगाढ़, अधिक त्यजेत्। (मुनि०३)
कोमल। नगरी च गरीयसी सुधार सेनैवमलङ्कृता बुधाः। । गर्ततुल्य (वि०) गड्ढे समान। मत्वाऽर्धसम्पूरितगर्त-तुल्यामुवाह (जयो० १०/९) अलका नगरी गरीयसी (समु० २/१०) नाभिं सुकृतैककुल्या। (सुद० २/४७) गरीयसि स्वस्य गुणेऽप्य तोषः (समु० १/१८)
गर्तिका (स्त्री०) [गर्तः अस्त्यास्याः गठन् ] जुलाहे का यंत्र गरुडः (पुं०) [गरुद्भ्यां डयते-डी-3] [गृ+उडच्] पक्षी गर्तः खड्डी।
नाम। गोविंद वाहन, पुरुषोत्तम वाहन। 'गोविंदस्य वाहनं गर्द (अक०) शब्द करना, दहाड़ना। गर्दति, गर्दयति। गरुडं दृष्ट्वा अहीनां सर्पाणां तत्त्वं स्वरूपं यत्तद्दर्प विषमुज्झित्य गर्दतोयः (पुं०) तरंगित जल। पलायते।' (जयो०६/७९)
गर्दभः (पुं०) [ग अभच] गधा। विप्लवो गर्दभेणेव गरुडध्वजः (पुं०) विष्णु।
वडवायाभवन्नसौ। (हित०सं०१७)
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